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श्लोक
- करचरण कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
- श्रवण नयन जं वा मानसं वा अपराधं|
- विहितम् अविहितम् वा सर्वमेतत् क्षमस्व
- जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो||
भावार्थ
हे प्रभो! जाने अनजाने मेरी कर्मेन्द्रियों (हाथ, पैर, वाणी), ज्ञानेन्द्रियों (कान तथा नेत्र) अथवा मन से हुए अपराधों के लिये मुझे क्षमा करें| हे करूणा के सागर शिव शंभो,आपकी जय हो|
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---|---|
चरण | पांव |
कृतं | किये गए कार्य |
वाक् | वाचा, वाणी |
कायजं | शरीर द्वारा किये गए कार्य! |
कर्मजं | कर्म से उत्पन्न! |
वा | या, अथवा |
श्रवण | सुनना | |
नयन | आंख, नेत्र! |
मानसं | मन से निर्मित होने वाला, मानसिक! |
अपराधं | गुनाह, बुरे कर्म! |
विहितम् | जानकर, इच्छा से| |
अविहितम् | अनजाने में, अनिच्छा से| |
सर्वमेतत् | यह सब! |
क्षमस्व | क्षमा कर! |
जय | विजय |
करुणाब्धे | दया का सागर! |
महादेव | देवाधिदेव! |
शंभो | कल्याणकारी शिव! |