श्लोक
- पूर्वं राम तपोवनादि गमनम्
- हत्वा मृगं कांचनम्।
- वैदेही हरणं जटायु मरणं
- सुग्रीव संभाषणम्।
- वालि निर्दलनम् समुद्र तरणं
- लंकापुरी दाहनम्।
- पश्चात् रावण कुम्भकर्ण हननम्
- एतद्धि रामायणम्।।
भावार्थ
प्रभु श्रीराम अपने पिता दशरथ के वचन पालन हेतु वन गए। वन में सीताजी स्वर्ण मृग (मायारूपी) से आकर्षित हुईं। सीता की इच्छा की पूर्ति करने के लिए राम उस मृग का शिकार करने गए। उसी समय दुष्ट रावण ने सीताजी का हरण किया| जटायु ने सीता की रक्षा करने का प्रयास करते हुए, अपने प्राण त्याग दिये। सीता की खोज में जाते हुए राम की मित्रता सुग्रीव से हुई और उन्होंने अधर्मी बालि का वध किया। उनकी कृपा से हनुमानजी ने समुद्र पार करके लंका में प्रवेश किया और उसे जलाकर श्री विहीन कर दिया। तत्पश्चात् राम ने राक्षसराज रावण एवं कुम्भकर्ण का वध किया और सीता को प्राप्त किया। यही रामायण की संक्षिप्त कथा है।
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---|---|
राम | भगवान श्री राम |
तपोवनादि | अरण्य, ऋषियों का निवास स्थान! |
गमनम् | जाना |
हत्वा | नाश करना! |
मृगं कांचनम् | सोने(स्वर्ण)का हिरण! |
वैदेही हरणं | सीता का हरण! |
जटायु | वह पक्षी जिसने सीता की रक्षा करने का प्रयत्न किया, जब रावण ने सीता का अपहरण किया। |
मरणं | मृत्यु! |
सुग्रीव | वानर समुदाय का एक मुखिया! |
संभाषणं | बातचीत! |
बालि निर्दलनम् | बालि का वध (बालि – वानर दल का अन्य मुखिया एवं सुग्रीव का भाई) |
समुद्र | सागर |
तरणं | पार करना! |
लंकापुरीदाहनं | लंका नगरी को जलाना! |
पश्चात् | बाद में |
रावण कुंभकर्णहननम् | रावण और कुंभकर्ण का वध |
एतद् हि | यही! |
रामायणम् | रामायण है! |