- Sri Sathya Sai Balvikas - https://sssbalvikas.in/hi/ -

शांति

Print Friendly, PDF & Email [1]
[vc_row][vc_column el_class=”hi-Vesper”][vc_column_text el_class=”hi-Vesper”]

सत्य और धर्म की अनुगामिनी होती है शांति, क्योंकि यह एक अनुभूति है। मनुष्य को शांति के लिए ज्यादा अथक परिश्रम करने की जरूरत नहीं होती। केवल मन वचन में यदि सत्य का पालन करे और कर्म में धर्म का,तब शांति स्वतः प्राप्त हो जाती है। शास्त्र का कहना है कि मन को वश में करने से शांति मिलती हैं। मन वश में हो तो मौन की स्थिति उत्पन्न होगी जो वस्तुतः शांति है।

कई पीढ़ियों का अनुभव यह बताता है कि सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति से स्थायी शान्ति तथा खुशी आज तक कभी किसी को नहीं मिली। यह केवल एक मृगतृष्णा है। शांति का स्रोत तो मनुष्य के भीतर स्थित होता है जो वास्तविक आनंद प्रदान करता है। सन्त त्यागराज ने विश्व को एक गीत के माध्यम से यह सत्य बताया था कि, आनंद बिना शांति का मिलना असंभव है।

हमे चंदन की लकड़ी के समान बनना होगा। जो कुल्हाड़ी उसको काटती है, उसे भी अपनी सुगन्ध प्रदान करती है। एक अगरबत्ती स्वयं जल कर सुगंध दूर तक फैलाती है। उसी तरह एक सच्चे साधक को अपने अंतस में शांति बनाये रखना चाहिए और सदा आनंदित रहना चाहिए।

यह कहानी क्रोध को काबू में कैसे रखना चाहिए उसे दर्शाती है। आगे आने वाले वर्षों में हम अपने अंदर व्याप्त शत्रुओं को कैसे जीतें यह जानेंगे।

[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]