श्लोक
- वन्दे देवंउमापतिं सुरगुरूं वन्दे जगत् कारणम्
- वन्दे पन्नग भूषणम् मृगधरम् वन्दे पशूनां पतिम्।
- वन्दे सूर्य शशांकवह्नि नयनम् वन्दे मुकुन्द प्रियम्
- वन्दे भक्त जनाश्रयम् च वरदम् वन्दे शिवम् शंकरम् ||
भावार्थ
मैं उमापति, देवगुरू, जो ब्रह्मांड के कारण हैं, को नमन करता हूँ। मैं उनको नमन करता हूँ जिनका आभूषण सर्प है, जो मृगधर हैं एवं जो सभी प्राणियों के स्वामी हैं। सूर्य, चंद्रमा और अग्नि जिनके तीन नेत्र हैं और जो विष्णु प्रिय हैं, मैं उन्हें नमन करता हूँ। मैं भगवान शंकर को नमन करता हूँ जो सभी भक्तों को शरण देने वाले हैं, वरदानों के दाता हैं एवं कल्याणकारी हैं।
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---|---|
उमापति | पार्वती के स्वामी |
सुरगुरूं | देवताओं के गुरु |
जगत कारणम | सृष्टि के मूल कारण |
पन्नगभूषणं | सर्प से सुसज्जित |
मृगधरम् | मृग चर्म धारण करने वाले |
पशुनाम् पतिम् | सभी प्राणियों के स्वामी |
सूर्य | सूर्य |
शशांक | चंद्रमा |
वह्नि | अग्नि |
नयनं | आँखें |
मुकुंद प्रियं | विष्णु प्रिय |
भक्त जनाश्रयाम् | भक्तों को आश्रय देने वाले |
वरदम् | वरदान देने वाले |
शिवम् | कल्याणकारी |
शंकरं | आनंददायक |