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भगवान बाबा के कथन

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  1. प्रार्थना प्रातः काल की कुंजी एवं संध्या की अर्गला है।
  2. प्रेम के बिना कर्त्तव्य शोचनीय है, प्रेम के साथ कर्त्तव्य वांछित है, बिना कर्त्तव्य के सहज प्रेम दिव्य है।
  3. स्नेह, आदर, भक्ति एक दूसरे के पदचिन्हों पर चलते हैं ।
  4. कर्मफल की आशा मानव एवं ईश्वर के मध्य एक बाधा है।
  5. मनुष्य भगवान है, भिन्नता केवल यही है कि भगवान जानते हैं कि वह भगवान है, जबकि मनुष्य यह नहीं जानता ।
  6. बिना प्रार्थना के कर्म करना, नेत्रहीन की तरह अंधकार में वस्तु खोजने के समान है, प्रार्थना द्वारा कर्म सच्चा और प्रभावशाली बन जाता है।
  7. दयाभाव से पूर्ण वचन आत्मविश्वास उत्पन्न करते हैं, दयापूर्ण विचार गंभीरता उत्पन्न करते हैं, दयालुता पूर्ण दान प्रेम को जन्म देता है।
  8. कर्म ही पूजा है, कर्त्तव्य ही ईश्वर है।
  9. हड़बड़ी से अपव्य्य होता है, अपव्यय से चिंता होती है, इसलिए जल्दबाजी न करें।
  10. बिना चरित्र के जाति का कोई महत्त्व नहीं है, वह तो सिर्फ एक खाली नाम पत्र है।
  11. प्रेम चिंतन के स्तर पर सत्य है। प्रेम कार्य के स्तर पर शिव है। प्रेम अनुभूति में सौंदर्य है।
  12. मौन की गहराई में ही ईश्वर की आवाज सुनी जा सकती है ।
  13. तुम्हारे अंतस में प्रकाश है ,तुम प्रकाश में हो, तुम और प्रकाश एक ही हो, तुम स्वयं प्रकाश हो।
  14. भगवान के बिना मानव, मानव नहीं है। मानव के बिना भगवान, भगवान है।
  15. प्रथम चरण में मनुष्य शराब पीता है, फिर शराब, शराब को पीती है तथा फिर शराब मनुष्य को पीती है।
  16. भूतकाल वापस लौटकर नहीं आता। भविष्य के बारे में तुम अनिश्चित हो। दिया गया क्षण वर्तमान ही है। इसे अच्छे विचारों, वाणी एवं कर्मो द्वारा पवित्र एवं शुद्ध करो।
  17. सच को अपना पिता मानो। प्रेम तुम्हारी माँ हो। ज्ञान तुम्हारा पुत्र हो। शांति तुम्हारी बहन हो। भक्ति तुम्हारा भाई हो। साधक तुम्हारा दोस्त बने।
  18. हम एक नहीं वरन् तीन हैं ।
    जो दूसरे सोचते हैं कि हम हैं ।
    जो हम सोचते हैं कि हम हैं ।
    जो हम वास्तव में हैं ।
  19. ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। विद्या का लक्ष्य मुक्ति या मोक्ष है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है।
  20. अज्ञान के दासत्व से मृत्यु अच्छी है।
  21. वाणी पर नियंत्रण सर्वोत्तम अलंकार है तथा शस्त्र भी ।
  22. सेवा करने वाले हाथ, प्रार्थना करने वाले होंठों से कहीं ज्यादा पवित्र हैं।
  23. एक ही धर्म है- प्रेम का ।
    केवल एक भाषा है – हृदय की भाषा ।
    एक ही जाति है – मानवता की ।
    ईश्वर एक ही है – जो सर्वव्यापी है।
  24. शरीर को झुकाओ।
    मन को सुधारो।
    इच्छाओं को समाप्त करो।
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