गणेश-सिद्धांत

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गणेश-सिद्धांत

भारतीय जिन उत्सवों और त्योहारों का आयोजन करते हैं, वे आध्यात्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से अर्थपूर्ण होते हैं। प्रत्येक उत्सव को दैवीशक्ति के कारण घटित एक घटना माना जाता है। ऐसे पवित्र दिन प्रत्येक घर को स्वच्छ किया जाता है। शरीर की शुद्धि के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्नान करता है। विशेष पूजा की जाती है। भगवान को नारियल भेंट किया जाता है और दिन भर प्रार्थना की जाती है।

गणेश चतुर्थी का महत्व विभिन्न व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है। गणपति की मूर्ति का अर्थ इस प्रकार है – उन्हें हाथी का मस्तक दिया गया है, क्योंकि यह प्राणी बुद्धिमत्ता, विवेक तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। हाथी सदा अत्यंत सावधान रहता है और उसे आसपास के वातावरण का उचित ज्ञान होता है। उसकी स्मरण शक्ति भी प्रखर होती है। वह घनघोर जंगल में भी बड़े शान से घूमता रहता है। वह कठिन मार्ग से जैसे ही निकलता है कि अन्य के लिए मार्ग अपने आप तैयार हो जाता है। वह दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक सिद्ध होता है क्योंकि वह उसका सहज स्वभाव है। गणपति ही सबका मार्गदर्शन करते हैं। गणपति को ‘बुद्धि प्रदायक’ व ‘सिद्धि विनायक’ के नाम से जाना जाता है। ‘विनायक’ शब्द का अर्थ है – बेजोड़ नेता (अर्थात् विशेष नायक या नेता) वह देवताओं में प्रमुख हैं इसलिए उन्हें गणपति कहते हैं। रुद्रगण, महागण आदि गुणों के वे स्वामी हैं। मानव शरीर की आंतरिक तथा बाह्य समस्त दिव्य शक्तियों के वे मालिक हैं।

जब महर्षि व्यास ने गणेशजी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की, तब गणेशजी ने एक क्षण का भी विलम्ब ना करते हुए इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। इतना ही नहीं उन्होंने कलम प्राप्त करने के लिए भी समय नष्ट न करते हुए अपना दंत तोड़कर हाथ में लिया और लिखने के लिए तैयार हो गये। इस प्रकार वे सदैव दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते थे।

विनायक, बुद्धि और सिद्धि का मूर्तरूप हैं। गणेश पूजन का महत्व क्या है? जीवन यात्रा में मनुष्यों को बहुत से विघ्नों का सामना करना पड़ता है। इन विघ्नों को कम से कम करने तथा विघ्नों को दूर करने के लिए गणपति की प्रार्थना की जाती है इसलिए उन्हें विघ्नेश्वर के नाम से जाना जाता है। सभी पंथों के लोग गणपति को महत्वपूर्ण देवता मानते हैं। किसी भी धार्मिक कार्य में सर्वप्रथम गणेशजी की ही पूजा की जाती है। विश्व में सब कुछ भगवान शंकर के तत्त्व से व्याप्त है, इस सत्य को श्रीगणेश ने प्रस्थापित किया। एक बार गणेश और उनके भाई सुब्रमण्य (कार्तिकेय) में पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने हेतु होड़ लगी और गणेशजी ने अपने माता-पिता की प्रदक्षिणा कर यह दावा किया कि उन्होंने पृथ्वी की प्रदक्षिणा पूर्ण कर ली है।

देवताओं के आह्वान, प्रतिष्ठापान और आराधना करते समय पहले गणेशजी का स्मरण किया जाता है अतः गणेशस्थापना के पश्चात् ही अन्य देवों की स्थापना होती है। नवरात्रि, दीपावली, संक्रांति तथा शिवरात्रि आदि सभी उत्सव, गणेशोत्सव के बाद ही आते हैं। इस पवित्र दिवस में श्रीगणेश के रूप में साकार होने वाले वैश्विक, शाश्वत सत्य का चिंतन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। पूर्ण शुद्धता तथा श्रद्धा से गणपति की पूजा कर, उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से उच्च्तम ध्येय प्राप्त करने की दिशा में किये जाने वाले प्रयत्नों के मार्ग में आने वाले, समस्त अवरोध टाले जा सकते हैं और प्रगति अवश्य होती है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन यह उत्सव आयोजित किया जाता है। इसका आधार ज्योतिषशास्त्र में भी है। चतुर्थी की रात्रि को हाथी के मस्तक के आकार का अत्यधिक तेजपुंज नक्षत्र दिखाई देता है। हाथी के चौड़े मस्तक से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान उनके भक्तों के कार्यों के सम्बन्ध में विशाल ह्रदय, सहिष्णुता और सहानुभूति से ओत-प्रोत हैं।

मनुष्य तीन प्रकार की प्रवृत्तियों के बन्धनों में बंधा है- काम, क्रोध, लोभ। पहली प्रवृत्ति है- कामना। कामनापूर्ति नहीं हुई तो दूसरी प्रवृत्ति क्रोध सिर उठाती है, किंतु इच्छा पूरी होने पर तीसरी प्रवृत्ति लोभ-मोह की मनुष्य को घेर लेती है। जब कामना हितकारी और कल्याणकारी होती है तब भगवान कृपा की वर्षा करते हैं। गणेशजी को काम, क्रोध, लोभ व्याप्त नहीं हैं। वे सभी मनुष्य, जो अच्छे और दिव्य ध्येय प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, गणेशजी की कृपा प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और उन्हें गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।

गणेशजी की पसन्द का वाहन, देखो – चूहा! चूहा एक ऐसा जीव है जो वासना के कारण (वस्तु की गन्ध से ही) अपना स्वतः का नाश कर लेता है। इसी प्रकार सभी मनुष्य वासनाओं की बलि चढ़ जाते हैं, किंतु मनुष्य को बुरा मार्ग दिखाने वाले और उसके कारण दुर्भाग्य का निर्माण करने वाली वासना को गणेशजी नष्ट कर देते हैं। तदनुसार इतने महाकाय गणपति इतने से चूहे पर बैठकर चलते हैं। फिर भी चूहा पिचकता नहीं। इससे यह स्पष्ट होता है कि आकार छोटा या बड़ा कैसा भी हो, जीव अथवा आत्मा सभी स्थानों पर समान होती है। आकार का महत्व नहीं है, महत्व है जीव अथवा आत्मा का। तीसरी बात यह है कि चूहा क्रोध, गर्व, स्वार्थीपन और लोभ जैसे दुर्गुणों का प्रतीक है। चूहे पर आरूढ़ होकर भगवान गणपति ने यह स्पष्ट किया है कि सभी को उपरोक्त दुर्गुणों को इसी प्रकार वश में रखना चाहिए। गणेश जी का वाहन होने के कारण चूहे का भी गणेश पूजन में भाग होता है। अर्थात् किसी तरह भी – वाहन, अलंकार, उपकरण, सेवक के रूप में परमेश्वर से सम्बन्ध स्थापित होने पर उस वस्तु, प्राणी या मनुष्य को विशेष पवित्र प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। हाथी, सिंह, गरुड़, नाग ये सब तथा अन्य अनेक प्राणी इसी प्रकार पवित्र हुए हैं।

श्री गणेश के चार हाथ भगवान की अलौकिक शक्ति के प्रतीक हैं। गणेशजी के दो हाथ के अलावा दो अदृश्य हाथों का उपयोग भक्तों को आशीर्वाद देने तथा संकटों से रक्षा करने तथा उन्हें उपयुक्त मार्ग पर चलने के लिए करते हैं। उनके एक हाथ में पाश है। उसका उपयोग वे भक्तों का मन आकर्षित कर भगवान के पास पहुँचने वाले उपयुक्त मार्ग पर उन्हें अग्रसर करने के लिए करते हैं। उनके दूसरे हाथ में अंकुश है। उसका उपयोग वे भटकों का अज्ञान दूर करने तथा उन्हें उपयुक्त मार्ग पर चलने के लिए इंगित करने हेतु करते हैं। तीसरे हाथ में मोदक है। भक्तों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए वह मिठाई है और जो भक्त आनन्द की मधुरता को चखने के लिए उन तक पहुँचते हैं, उनके लिए पारितोषिक है। चौथे हाथ से वे सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उन्हें योग्यतानुसार वरदान देते हैं।

गणेशजी के कान बड़ होते हैं। इस कारण वे भक्तों की सभी प्रार्थनाएँ सुन सकते हैं और अच्छे-बुरे में अंतर कर सकते हैं। उनका विशाल उदर यह दर्शाता है कि, सभी उस उदर में समाये हुए हैं।

गणेशजी को सौंपी गई एक और भूमिका देखो। जब भगवान शिव सर्वोच्च भावावस्था में चले जाते हैं और यह भावावस्था अंत में नटराज के तांडव नृत्य के द्वारा प्रकट होती है तब गणेशजी स्वर एवं ताल के स्वामी होने के कारण मृदंग बजाकर ताल देते हैं।

तो इसमें क्या आश्चर्य है कि, समस्त देवताओं के पहले भगवान गणेश की पूजा करने पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

[Source- Balvikas Guru Handbook Published by Sri Sathya Sai Books & Publication Trust, ‘Dharmakshetra’, Mahakali Caves Road, Andheri, Mumbai.]

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