विचार, शब्द और कर्म मे एकता
विचार, शब्द और कर्म मे एकता
विचार, वचन और कर्म में सत्यता के महत्व को जानने के लिए
(पैराग्राफ के बीच, और बिंदुओं पर रुकें।)
चरण 1 : “सबसे पहले, अपनी कुर्सियों पर एक आरामदायक स्थिति में या फर्श पर पालथी लगाकर बैठें। सुनिश्चित करें कि आपकी पीठ और सिर दोनों सीधे हैं। गहरी सांँस लें और सांँस छोड़ते हुए आराम करें। एक और गहरी सांँस लें… और दूसरी…”
चरण 2 : “अब शरीर में किसी भी तनाव को आराम दें। अपने पैर की उंगलियों को फैलाएंँ, फिर उन्हें आराम दें। पिंडली की मांँसपेशियों को कस लें और तनाव दें, फिर उन्हें आराम दें। अपने ऊपरी पैरों और जांघों की मांँसपेशियों को तनाव दें और उन्हें आराम दें। अपने पेट की मांँसपेशियों को अंदर खींचें। फिर उन्हें आराम दें। कंधों को पीछे खींचें, फिर उन्हें आराम दें। कंधों को ऊपर और नीचे करें। बाएंँ देखें, आगे देखें, दाएंँ देखें, आगे देखें। अब चेहरे की मांँसपेशियों को कस लें और उन्हें आराम दें। अपने पूरे शरीर में विश्रांति का अनुभव करें – सभी तनाव दूर हो गये हैं। आप अच्छा महसूस कर रहे हैं।”
चरण 3 : कल्पना कीजिए कि आप एक प्यारे से पार्क में हैं।
गर्मी के दिन हैं… सूरज चमक रहा है और आप आनंदित हो…
एक गेंद, उछ्लकर आती है और आपके पास एक झाड़ी के नीचे गिरती है। यह वैसी गेंद नहीं है, जिसे आपने पिछले सप्ताह खोया था…
तभी एक लड़की दौड़ कर आती है और पूछती है कि कहीं कोई गेंद देखी है क्या… आप वो गेंद रखोगे, या उसको सच बताओगे….
आप झाड़ी की ओर इशारा करते हैं…
आप दोनों झाड़ी की ओर दौड़ते हो और गेंद ढूंढते हो और उसे दे देते हो… वह खुश है… आप भी खुश हो कि आपने सच कहा।
चरण 4 : “अब अपना ध्यान कक्षा में वापस लाएंँ, अपनी आँखें खोलें और खिंचाव करें, क्योंकि व्यायाम समाप्त हो गया है। अपने पास बैठे व्यक्ति को देखकर मुस्कुराएंँ।”
[BISSE लिमिटेड द्वारा प्रकाशित ‘सत्य साई एजुकेशन इन ह्यूमन वैल्यूज़’ से उद्धृत]