श्री हनुमान जी की कहानी

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श्री हनुमान जी की कहानी

श्री हनुमान जी, अंजनी और वायु देवता के पुत्र और भगवान राम के दूत के रूप में जाने जाते हैं। उन्होने विपदा के समय कठिन से कठिन कार्य सरलता से किये। हनुमान के अलावा अन्य कोई भी उस स्थिति का मुकाबला नहीं कर सकता था। लेकिन वह अपने आपको राम का सेवक ही मानते थे, अभिमान तो उन्हें छू भी नहीं सका था। इसलिये उन्हें रामदूतम् भी कहा जाता है अर्थात् “भगवान राम के दूत।” श्री राम ने किसी और को अपना दूत क्यों नहीं स्वीकार किया? क्योंकि हनुमान जी “बुद्धिमत्ताम वरिष्ठम” हैं अर्थात् बुद्धिमानों में सर्वश्रेष्ठ।

जब विभीषण ने भगवान राम के आगे समर्पण किया और श्री राम की सेना में जुड़ने की इच्छा व्यक्त की, तब श्री राम ने हनुमान जी से पूछा कि अब विभीषण का क्या किया जाय और उन्होंने विभीषण को लंका का राजा घोषित कर दिया।

जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए तब द्रोणाचल पर्वत से सूर्य अस्त होने से पहले संजीवनी बूटी लेने के लिए केवल पवन पुत्र हनुमान जी ही वायु की गति से गए और पर्वत पर पहुँचकर समय से लौट आये। जब सीता जी की खोज करनी थी तब हनुमान जी ही समुद्र लाँघकर गये और लंका पहुँचे।

परन्तु सबसे अच्छा कार्य जो हनुमान जी ने किया वह भरत को श्री राम के आगमन का समाचार देना था। श्री राम को किष्किन्धा जाकर सुग्रीव का आतिथ्य स्वीकार करना था, उन्हे अयोध्या वापस आने में देर हो रही थी। यहाँ अयोध्या में भरत चौदह वर्ष से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे और वह एक मिनट भी ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे। आग में कूदकर वह अपना जीवन समाप्त करने जा रहे थे। ऐसे क्षण में हनुमान जी ने श्री राम के आने की सूचना समय से वहाँ पहुंचाई और भरत का जीवन बचाया। हनुमान जी बहुत महान थे, इसलिये हमें सदैव उनको नमन करना चाहिये।

हनुमान की भक्ति

श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात्, एक बार सीताजी सहित लक्ष्मण,भरत तथा शत्रुघ्न ने हनुमान को राम सेवा से पृथक करने की योजना बनाई। वे चाहते थे कि राम के लिए सभी विभिन्न सेवाकार्य उन्हीं के बीच में विभाजित हो जाएंँ। उन्हें लगा कि हनुमान को पहले से ही प्रभु सेवा के काफी अवसर मिले हैं। इसलिए, उन्होंने भोर से शाम तक, छोटे से छोटे कार्यो की एक सूची तैयार की और प्रत्येक कार्य को आपस में बांँट लिया। फिर हनुमानजी की उपस्थिति में उन्होंने वह सूची भगवान को भेंट की। राम ने नई प्रक्रियाओं के बारे में सुना, सूची पढ़ी और एक मुस्कान के साथ अपनी स्वीकृति दी। उन्होंने हनुमान से कहा कि सभी कार्य दूसरों को सौंपे गए हैं और अब वे आराम कर सकते हैं।

हनुमान ने प्रार्थना की कि सूची को पुनः पढ़ा जाना चाहिए और जब यह किया गया, तो उन्होंने एक चूक देखी – ‘जब कोई जम्हाई लेता है तो उंगलियांँ चटकाने’ का कार्य। स्वाभाविक था कि एक राजा होने के नाते, भगवान राम को स्वयं ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह एक सेवक के द्वारा किया जाना चाहिए। अतएव उन्होंने राम से विनती की। राम उस कार्य को हनुमान को सौंपने के लिए तैयार हो गए।

यह हनुमान के लिए सौभाग्य की बात थी, क्योंकि यह उनके लिए प्रभु के साथ उनके निरंतर सान्निध्य का अवसर था क्योंकि कोई कैसे भविष्यवाणी कर सकता है कि जम्हाई कब आएगी? उन्हें हर समय भगवान के सुंदर चेहरे का दर्शन होता था। जैसे ही जम्हाई आने वाली होती, वे सतर्कता पूर्वक तैयार रहते थे। वह एक मिनट के लिए भी दूर नहीं हो सकते थे, न ही वह एक पल के लिए भी आराम कर सकते थे। आपको खुश होना चाहिए कि भगवान का सेवा कार्य आपको हमेशा उनकी उपस्थिति में रखता है और उनके आदेशों को पूरा करने के लिए हमेशा सजग भी रखता है।

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