दैवीय मार्गदर्शन

Print Friendly, PDF & Email
दैवीय मार्गदर्शन

जूनियर बाल विकास कक्षाओं मे हमें, अन्य धर्मों की विशिष्ट विशेषताओं के बारे में बताना चाहिए, जिससे उनमें दूसरे धर्मों और आस्थाओं के विषय मे कोई गलत अवधारणा न रहे। विभिन्न धर्मों के नियम, संस्कार, एक दूसरे से भिन्न प्रतीत हो सकते हैं पर उनका उद्देश्य एक ही होता है। विभिन्न धर्मों के धार्मिक अनुष्ठान एवं पद्धतियाँ अलग-अलग क्यों होती हैं, उनको बहुत सरल रूप में बच्चों को समझा कर, प्रतिस्थापित करना होगा।

सभी धर्मों में प्रार्थना का महत्व, पूजा के विविध आयामों का पालन करना, सभी एक परमपिता की सन्तान है, इस बात के महत्व को समझना, सभी से प्रेम करना, ऐसे वैश्विक मूल्य जरूर होते हैं। सभी धर्मों का अंतिम उद्देश्य समान होता है। इस तथ्य से अवगत कराने के लिए, कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझाएँ। आभूषण विभिन्न आकृति के होते हुए भी, मुख्य सामग्री स्वर्ण होता है, गाय किसी भी रंग की क्यों न हो दूध सफेद ही होता है। वस्त्र किसी भी डिज़ाइन, कोट, कमीज़, धोती, साड़ी के हो, उसको तैयार कपड़े से ही करते हैं।

जिस प्रकार वस्त्र चाहे किसी भी डिज़ाइन या नाप के हों, पैंट, शर्ट, बुशकोट, घाघरा, साड़ी, पहनावा विभिन्न हो सकता है पर तैयार तो कपड़े से ही होता है। उसी तरह, हिन्दू धर्म मानने वाले के अपने रीति नियम होते हैं, जो वेदों पर आधारित होते हैं। इस्लाम पंथी अपने क़ुरान में दिए निर्देशों का पालन करते हैं। ईसाई धर्मावलंबी, बाइबिल में निर्देशित नियम को मानते हैं। परंतु ये सारी अवधारणाएँ केवल एक उद्देश्य से की जाती है,ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्त हो। बाह्य नियम चाहे कुछ भी क्यों न हों।

सभी धर्म, मानवता में प्रेम, करुणा, भाईचारा, सबके प्रति समभाव रखना सिखाते हैं। प्रत्येक धर्म सहिष्णुता, प्रेम के मूल्यों पर ध्यान देना सिखाता है। ये मूल्य, वेद, बाइबिल, क़ुरान, आदि में निहित हैं। पारसी धर्म में भी यही कहा गया है कि प्रार्थना जीवन को निर्मल करने में सहायक होती है। हमें अपने दुर्गुण पवित्र अग्नि में समर्पित कर, अच्छे विचार, अच्छे शब्द, अच्छे कर्म इन तीन प्रधान नियमों का पालन कर धर्म के पथ पर चलते रहना होगा। बुद्ध ने भी उपनिषद के अनुसार कहा, यह जीवन और दुनिया दुःखो का सागर है। सर्वम् दुःखं,से उबरने के लिए अष्टांग नियम, का पालन कर शान्ति प्राप्त करनी होगी।

इस तरह सभी धर्म एक ही सत्य को विभिन्न नियम आयाम और रीति के द्वारा प्राप्त करते हैं। मानसिक विरोधाभास के चलते, हम उनको अलग समझते हैं। बच्चों को यह समझाना होगा, कि अनेकता में एकता का मूलभूत भाव, अपने धर्म के प्रति सच्चा प्रेम और विश्वास रखते हुए दूसरे धर्मों को सम्मान देना जरूरी है।

वैचारिक मतभेद, घृणा, असहिष्णुता आदि के विचारों को बच्चों के मन में न आने दें। और यदि इस तरह के विचार दिखें तो इस खरपतवार को मन से बाहर निकालने में मदद करें ताकि वे मानवता के उत्थान के लिए, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक सत्य को समझ सकें। समय-समय पर इस संसार में अनेक गुरुओं, पैगंबरों ने अलग-अलग क्षेत्रों में जन्म लेकर, वहाँ की भोगोलिक तथा समकालीन परिस्थितियों के अनुसार मानव चेतना को प्रस्फुटित करने तथा सत्य को स्थापित करने का महत् कार्य किया है। उनमें सभी की शिक्षाएँ समान हैं। यदि इन बुनियादी शिक्षाओं को बच्चों के कोमल मन में बालविकास के माध्यम से स्थापित कर दें तो वे इस सार्वभौमिक सत्य को समझ जायेंगे।

आवश्यक नहीं कि, बालविकास में ऐसे भिन्न धर्मो के बच्चे आते हों, परंतु जिस किसी क्षेत्र में ऐसे बच्चे हों, उनको सही मार्गदर्शन जरूर दें।

[स्त्रोत: दिव्य निर्देश बालविकास हेतु (बालविकास गुरू सम्मेलन 1975]

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

error: