इच्छाओं का निग्रह
इच्छाओं का निग्रह
इच्छाएं परम विनाश की ओर ले जाती हैं। इसे पूरा करने से कभी भी नष्ट नहीं किया जा सकता है। एक इच्छा पूर्ण होने पर बढ़ती है और एक आसुरी रूप धारण कर व्यक्ति को नष्ट कर देती है। तो इच्छाओं को कम करने का प्रयास करो; उन्हें कम करते जाओ।
एक बार एक तीर्थयात्री था, जो गलती से इच्छा-पूर्ति करने वाले वृक्ष कल्पतरु के नीचे बैठ गया! वह बहुत प्यासा था और उसने अपने आप से कहा, “काश कोई मुझे मीठा, ठंडा पानी का प्याला देता।” और तुरंत, उसके सामने स्वादिष्ट ठंडे पानी का एक प्याला आ गया। वह हैरान था लेकिन फिर भी उसे पी गया। फिर, उसने स्वादिष्ट व्यंजनों के भोजन की कामना की और उसके समक्ष भोजन से भरा एक थाल आ गया।
भरपेट स्वादिष्ट भोजन के पश्चात् उसके मन में एक खाट और बिस्तर की इच्छा उत्पन्न हुई; और जब उसने चाहा कि उसकी पत्नी वहां यह सब आश्चर्य देखे, तो वह पल भर में प्रकट हो गई। गरीब तीर्थयात्री ने उसे प्रेत समझ लिया और जब उसने कहा, “ओह, वह एक राक्षसी है!” वह एक राक्षसी के रूप में परिवर्तित हो गई। यह देखकर उसका पति दहशत से काँप उठा और चिल्लाया, “अब वह मुझे खा जाएगी” – राक्षसी ने तुरंत उसका भक्षण कर किया! इस प्रकार वासनाओं की जंजीर व्यक्ति को घुटन की स्थिति में बांधती है। अतः आवश्यक है कि वह अपनी अपरिमित इच्छा करने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखें, अंकुश लगाए। प्रभु से कहो, “तुम ही मेरे लिए काफी हो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।” सोने के गहनों के पीछे लालायित क्यों? भगवान के लिए लालायित रहो। गीता शरणागति का पाठ पढ़ाती है। उसकी इच्छा पूर्ण हो, न कि स्वयं की।
प्रश्न
- तीर्थयात्री ने किस जगह कुछ देर विश्राम किया?
- वह कौन सी चीजें हैं जो वह चाहता था?
- इस लघुकथा से आप क्या सीखते हैं?