मानव – प्रधान रचना
मानव – प्रधान रचना
इस सृष्टि से मनुष्य का उदय हुआ, जो पाँच तत्वों का निर्मिती है तथा प्रेम की ऊर्जा से ओतप्रोत है। मनुष्य सृष्टि में सर्वोच्च है क्योंकि केवल वही अपने बारे में और सृष्टि के बारे में सत्य को समझने की क्षमता रखता है। सृष्टि के बाद से, मनुष्य ईश्वर की ओर एक लंबी तीर्थयात्रा पर है। लाखों जन्मों, अरबों वर्षों के उर्ध्व संघर्ष ने मनुष्य को वर्तमान अवस्था तक पहुँचाया है।
सृष्टि के बाद से इस ग्रह पर अनगिनत प्राणी रहते हैं किन्तु मनुष्य, पशु साम्राज्य का मुकुट है; वह जीवित प्राणियों का शिखर है। यह केवल मनुष्य ही है जो स्वयं की जांँच कर सकता है, और दिव्यता को प्रकट कर सकता है, जो उसकी वास्तविकता है। यही कारण है कि मनुष्य के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ उपहार माना जाता है।’
– श्री सत्य साई
मनुष्य सहज रूप से दिव्य है, आनंद उसका स्वभाव है; मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में दिव्यता निहित है। दुःख एवं कष्ट उसके लिए पराये हैं। मनुष्य कौशल से संपन्न है, जिसके अभ्यास से वह दिव्य आनंद का अनुभव कर सकता है, और प्रेम की सहज शक्ति को प्रसारित कर सकता है।
बाबा ने हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया है कि मनुष्य का प्रकृति के पंच तत्वों से गहरा संबंध है। मनुष्य और प्रकृति के बीच यह संबंध अभिन्न है, क्योंकि मनुष्य भी पांँच तत्वों की अभिव्यक्ति है और उसका स्रोत दैवीय ऊर्जा है। पांँचों तत्व हमारे अंदर भी हैं और बाहर भी; हर समय, हम भीतर और बाहर इन तत्वों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब हम भोजन करते हैं तो कुछ भाग तो आत्मसात हो जाता है और दूसरा भाग प्रकृति में वापस चला जाता है। हम हवा में सांँस लेते हैं, उसमें से कुछ को अवशोषित करते हैं और बाकी को कुछ और तत्वों के साथ बाहर निकालते हैं।
इस प्रकार हर समय प्रकृति के साथ आदान-प्रदान होता रहता है। जहांँ तक भौतिक तत्वों का संबंध है, ‘आप धूल से आते हैं, धूल में ही लौट जाते हैं।’ मानव जीव एक पूरी तरह से एकीकृत इकाई है जो विभिन्न परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखने की जन्मजात क्षमता के साथ काम करती है। मानव शरीर में तत्वों के बीच संतुलन बनाए रखने की प्राकृतिक प्रवृत्ति के साथ एक स्व-उपचार प्रणाली होती है। यह तत्वों की अधिकता को दूर करता है तथा भोजन, हवा, सूरज की रोशनी आदि के माध्यम से आवश्यक तत्वों को ग्रहण करता है। प्रकाश की कोई भी अधिकता, तीव्रता अथवा आवृत्ति में, कोई भी उच्च स्वरमान (पिच )या तेज़ शोर, मनुष्य को परेशान करता है।
‘सृष्टि में पांँच तत्व शामिल हैं। किंतु, मनुष्य में एक छठा तत्व भी है, जो सर्वोच्च प्रेम है।’
– श्री सत्य साई (20 मई 2000)
जीवन की शुरुआत प्यार से होती है। जीवन से निकलने वाली प्रेम की मिठास वह महान और अनोखा सिद्धांत है जो हर चीज का स्रोत है।’
– श्री सत्य साई (13 जनवरी 1992)
मनुष्य तथा पाँच तत्वों के बीच सहजीवी संबंध को प्रकट करते हुए, भगवान बाबा ने प्रकृति की सभी चेतन और निर्जीव वस्तुओं को पवित्रता के स्तर तक बढ़ा दिया है। मनुष्य को इस समग्र संबंध को समझने का सौभाग्य प्राप्त है।
मनुष्य और पाँच तत्वों के बीच सहजीवी संबंध को प्रकट करते हुए, भगवान बाबा ने प्रकृति की सभी चेतन और निर्जीव वस्तुओं को पवित्रता के स्तर तक बढ़ा दिया है। मनुष्य को इस समग्र संबंध को समझने का सौभाग्य प्राप्त है। मनुष्य प्रकृति की सर्वोपरि रचना है। सारा ज्ञान मनुष्य के मस्तिष्क में निहित है। प्रकृति और मनुष्य का संबंध अभिन्न है। वही पांँच तत्व मनुष्य के अंदर भी हैं और बाहर भी। मानव के भीतर पांँच तत्वों का संतुलन उसे शांति और खुशी देगा।