सत्यमेव जयते
‘सत्यमेव जयते’- यह एक प्रसिद्ध संस्कृत वाक्य, जिसका अर्थ है ‘सत्य की ही जीत होती है’, भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है। इन शब्दों को 26 जनवरी 1950 को मुंडक उपनिषद से लिया गया था। भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देखा जाने वाला प्रसिद्ध उद्धरण “सत्यमेव जयते”, वास्तव में नीचे दिए गए मुंडक उपनिषद के श्लोक 3.1.6 का एक हिस्सा है, जो भारतीय दर्शन के 18 प्रमुख उपनिषदों में से एक है।
सत्यमेव जयति नानृतं
सत्येन पंथा विततो देवयान:
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम्
इस श्लोक का अर्थ है सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं। सत्य के द्वारा ही परमात्मा का मार्ग प्रशस्त होता है। ऋषि इस मार्ग का अनुसरण करते हैं, जो उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करता है एवं सत्य के मूल स्रोत तक पहुँचता है। सभी भारतीय मुद्राओं के एक तरफ ‘सत्यमेव जयते’ भी खुदा हुआ है। इन शब्दों का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। लैटिन में इसे ‘वेरिटास विन्सिट’ और तमिल लोग इसे ‘वैमाये वेल्लम’ कहते हैं।
सत्यमेव जयते इस सुवाक्य का प्रयोग, विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों के राजनीतिक नेताओं और यहाँ तक कि टीवी शो द्वारा भी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और सच्चाई का प्रभाव पैदा करने के लिए किया गया है। सच क्या है? इसका तात्पर्य उन शब्दों से नहीं है, जो हम बोलते हैं, यह उससे संबंधित है, जिस तरह से हम जीवन को अपने भीतर धारण करते हैं। हम जैसे हैं वैसे ही हैं।
[संदर्भ: https://youtu.be/hZ5Vn4Rm0oY]
दिव्य संभाषण: ‘सत्यम् वद धर्मम् चर, सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो’, यही हमारे शास्त्र में अंतर्निहित है। वे यह भी कहते हैं– ‘सत्यम नास्ति परो धर्म’ सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं, न ही सत्य से बड़ा कोई कानून।
वेद के अनुसार, धर्मम चर अर्थात्, धर्म को आचरण मे लाओ, सिर्फ इस विषय मे जानकारी रखना ही पर्याप्त नहीं, अपितु, आचरण में चरितार्थ करो। अपने विचार, शब्द और कार्य में इसको परिलक्षित करो।
जो इन विचारों से, जीवन जीता है, उसका चरित्र उच्चतम होता है। उच्चतम चरित्र ही मनुष्य का, सर्वोत्तम अलंकार है, वेदों में यह कहा गया है।
[संदर्भ:दिव्य संबोधन, अप्रैल 15, 1964]
चरित्र का निर्माण, केवल उन्नत कार्य द्वारा ही होता है, और अच्छा चरित्र ही बहुमूल्य धन है|-बाबा