चित्रावती तट
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तृतीय पद
- चित्रावती तट विशाल सुशान्त सौधे
- तिष्ठन्ति सेवक जनास्तव दर्शनार्थम् |
- आदित्य–कांतिरनुभाति समस्त लोकान्
- श्री सत्य साई भगवन् तव सुप्रभातम् ॥३॥
भावार्थ
चित्रावती नदी के तट पर स्थित शांति और सौम्यता के प्रतीक प्रशांति निलयम के विशाल प्राँगण में भक्तजनों का समुदाय आपके दर्शनार्थ प्रतीक्षारत बैठा हुआ है। सूर्य की किरणें समस्त संसार में अपनी आभा से प्रकाशित कर रही हैं। हम अपने अन्त करण में स्थित दिव्यता को जगाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
व्याख्या
चित्रावती | पुट्टपर्ती में बहने वाली नदी |
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तट | किनारा |
विशाल | बड़ी, महान, चौड़ी |
सुशान्त | शान्त |
सौधे | पवित्रता का स्थान |
तिष्ठन्ति | प्रतीक्षा करते हुए बैठे हैं |
सेवक जना | सबके या भक्तजन |
तव दर्शनार्थम् | आपके दर्शनों के लिए |
आदित्य | सूर्य |
कांतिरनुभाति | प्रकाशों की किरणों जो चारों और अपनी प्रभा बिखेर रही हैं |
समस्त | सभी |
लोकान् | संसार में |
आंतरिक महत्व
व्याख्या :
अब दिन का प्रारम्भ हो गया है, सूर्योदय हो गया है अर्थात् अज्ञान की गहन निद्रा से जगाने के लिए ज्ञान का सूर्य उदित हो गया है। भगवान श्री सत्य साई बाबा के रूप में सद्गुरु ने हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया है। हमारा मन जो काम, क्रोध, लोभ, माह, मद, मत्सर जैसी बुराइयों या वासनाओं से परिपूर्ण है, अब बाबा की कृपा से सत्य, सदाचरण, शांति और प्रेम जैसे सद्गुणों का निवास बनता जा रहा है। सूर्योदय होते ही रात को जागने वाले पक्षी कीट पतंगे आदि छुप जाते हैं, वे भाग जाते हैं। वे दिन के प्रकाश का सामना नहीं कर पाते, इसी प्रकार ज्ञान का प्रकाश उदित होते ही बुराइयाँ दूर चली जाती हैं। वे ज्ञान का सामना नहीं कर सकतीं।
अब हमारी दसों इंद्रियाँ चंचल मन द्वारा शासित नहीं हैं। वरन् ज्ञान और विवेक द्वारा शासित हैं।
अब हम यहाँ से अन्नमय कोष से आत्मा तक पहुँचने की यात्रा प्रारम्भ करते हैं।
मेरी आत्मा में सत्य का सूर्योदय हो गया है | आपके महान तेज से मेरे शरीर के अवयवों में दिव्य चेतना जागृत हुई है। वे अपने दिव्य रहस्य को समझ गए हैं और शांति की किरणें अब उससे प्रस्फुटित होंगी।
भगवान का दर्शन एक आंतरिक अनुभूति है परंतु एक महान वैज्ञानिक डॉ. फ्रेंक बरनोवस्की ने बताया कि हम स्वामी के चारों तरफ सुंदर रंगों का औरा (प्रभा मंडल) देख सकते हैं। उन्होंने किरलियन कैमरे का उपयोग करके सफेद, गुलाबी, नीला, सुनहरा और चाँदी के समान चमकीला प्रकाश बाबा के शरीर के चारों ओर की परिधि में विकीर्ण होते हुए देखा। उन्होंने कहा कि इससे पहले उन्होंने पृथ्वी पर किसी भी व्यक्ति के चारों तरफ ऐसा औरा (प्रभा मंडल) नहीं देखा।
महान विभूति के दर्शन का आंतरिक महत्व
कहा गया है दर्शनम् पाप नाशकम् अर्थात् महान विभूति के दर्शन मात्र करने से ही हमारे पिछले पाप नष्ट हो जाते हैं। कैसे? डॉ. फ्रेंक बारानोवस्की ने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर बतलाया कि महान व्यक्ति के शरीर के चारों ओर से अत्यधिक प्रकाश पुँज विकीर्ण होता है। साई का दर्शन, भक्तों को प्रेम, शांति और आनंद की किरणों से स्नान करवाता है। हमारी आत्मा से भी इसी तरह का प्रकाश निकलता है।