दूपाटि तिरुमलाचार्युलु के विषय में स्वामी का कथन
(स्पोर्ट्स मीट सम्भाषण २०००)
दूपाटि तिरुमलाचार्युलु, (श्री सत्य साई) सुप्रभातम् के रचयिता, यहाँ वास करते थे | वेंकटगिरि राजसी दरबार में वे कार्यरत थे | संस्कृत व शास्त्रों के वे महान पंडित थे | ९० साल की वयोवृद्धवस्था में भी वे मेरे साथ बद्रीनाथ की यात्रा में शामिल हुए | मैंने उनसे पूछा कि इस दुष्कर यात्रा में चलने के लिए वे स्वस्थ थे या नहीं | उन्होंने बड़ी सहजता और विश्वास के साथ कहा कि यदि स्वामी उनके साथ हैं, तो कितनी भी लम्बी या कठिन यात्रा में, बिना किसी असुविधा के वे चल सकते थे | उनके शब्दों में, “साई माता, यदि आपने मुझे छोड़ा तो मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व व्यर्थ हो जायेगा | किन्तु यदि आपने मुझे अपना बनाकर स्वीकार किया तो मुझे लगेगा की सब कुछ मेरे नियंत्रण में है |” यह थी वह भक्ति व शरणागति की अवस्था जिसमें तिरुमलाचार्य ने समस्त जीवन व्यतीत किया | वे सदैव अपनी साई माता की ध्यान में मग्न रहते थे |
स्वामी के सामीप्य में उन्होंने अपना सारा जीवन बिताया, चाहे यहाँ हो या बृन्दावन में | उनकी भक्ति अमाप्य थी | इसी के फलस्वरूप उनका अंत भी अत्यंत शांतिपूर्वक था | उन्हें भली-भाँति पता था की उनका अंत निकट है और उन्होंने इस बात को व्यक्त भी किया था |
जब उनसे पूछा गया कि उन्हें यह कैसे पता था, उन्होंने उत्तर में कहा, “स्वामी मुझे अंदर से आवाज देते हैं |” ऐसा कहकर वे स्नान करने गए, थोड़ा जल लाकर स्वामी के चरण धोए, उस तीर्थ जल का पान किया और स्वामी से बोले, “स्वामी मेरा जीवन सिद्ध हुआ | अब समय आ गया है कि मैं आप में संविलीन हो जाऊँ |” तत्पश्चात वे अपना मर्त्य शरीर त्याग कर स्वामी में विलीन हो गए | संसार में ऐसी अथाह भक्ति रखने वाले मनुष्यों की कोई कमी नहीं है | ऐसे महान व्यक्तियों के कारण ही यह दुनिया कायम है |