मंगलम् गुरुदेवाय
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दशम पद
- मंगलम् गुरुदेवाय, मंगलम् ज्ञानदायिने ।
- मंगलम् पर्तिवासाय, मंगलम् सत्य साईने ॥१०॥
भावार्थ
हे दिव्य गुरुदेव आप हम सभी के लिए मंगलकारी हो। आप हमको सुज्ञान प्रदान कीजिए। हे पुट्टपर्ती (प्रशान्ति निलयम) वासी भगवान श्री सत्य साई बाबा! आप हम सभी का मंगल करें। आप हम सभी का कल्याण करें।
व्याख्या
मंगलम् | मंगल, कल्याण |
---|---|
गुरुदेवाय | सद्गुरु |
ज्ञानदायिने | दिव्य ज्ञान प्रदान करें |
पर्तिवासाय | पवित्र पुट्टपर्थी में प्रगट होने वाले भगवान साई |
आंतरिक महत्व
भगवान रूप सद्गुरु हमारा कल्याण करें।
वह हमें दिव्य ज्ञान प्रदान करें।
पवित्र पुट्टपर्ती में प्रगट होने वाले भगवान हम पर कृपा करें|
भगवान श्री सत्य साई बाबा हमें आशीर्वाद दें।
हे सद्गुरु भगवान हमें दिव्य ज्ञान और विवेक प्रदान करें, जिससे हमें सत् चित आनंद की प्राप्ति हो।
ये अन्तिम पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर ताल और लय से युक्त हैं, इन्हें मंत्र के रूप में उच्चारित कर सकते हैं।
ज्योति स्वरूप, प्रेतेश्वर, सद्गुरु श्री सत्य साई बाबा आपको शत कोटि नमन।
कहानी
जब बाबा केवल 9 वर्ष के थे तभी से वे उन लोगों के सम्बन्ध में,जो गलत काम करते थे, बड़ी-बड़ी मूँछें रखते थे और गाँवों में पाश्चात्य शैली के वस्त्र पहिनते थे, कविताएँ लिखा करते थे और उन्हें गाया करते थे। समाज के सुधार के लिए यह उनका बहुत ही साहसी और निर्भीक कदम था। उन्होंने ऐसे धनाढ्यों के संबंध में भी लिखा जो आलसी और आडम्बरयुक्त जीवन बिताते थे जबकि गरीब मजदूर दिनभर धूप में परिश्रम करते थे| इन शरारती पदों और गीतों को किसने लिखा ? इस बात को जानने के लिए जाँच की गई| सत्या ने जातिप्रथा की क्रूरताओं के बारे में भी लिखा। वे लिखते रहे, उन्हें कोई चुप नहीं करा सका।
शेषमराजू सत्या के बड़े भाई थे। वे अपने छोटे भाई सत्या के इन कार्यकलापों से बड़े चिंतित थे। लोगों ने उन्हें यह विश्वास दिला दिया कि सत्या के ऊपर कोई अन्य ‘आत्म’ का प्रवेश हो गया है, कुछ ग्रह बाधा का चक्कर है। इसलिए वे उन्हें उरवकोंडा ले गए, जहाँ उसे अपनी देखरेख में उन्होंने रखा। पर सत्या ने शिक्षा और सुधार के लिए अपने ये चमत्कार एवं कविता लिखना जारी रखा।
उरवकोंडा से वापस आने पर एक दिन जब ईश्वराम्बा सत्या की मालिश कर रही थी तो उन्होंने देखा कि उसका बायाँ कंधा बुरी तरह घायल है। जब उन्होंने सत्या से पूछा कि यह क्या हो गया है? क्या यह कुएँ से पानी भरकर कंधे में टोंगकर लाने से हुआ है ? तो उसने स्वीकार किया कि हाँ उसे सुबह-शाम 6 बार भाई के परिवार के लिए, साथ ही दो अन्य परिवारों के लिए पानी लाना पड़ता है | माता ईश्वराम्बा की आँखों में आँसू छलक आए परंतु सत्या ने कहा, “अम्मा में पानी प्रसन्नतापूर्वक लाता हूँ। मैं इस सेवा के लिए ही आया हूँ”।