श्रुत्वा तवाद् भुत
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सप्तम पद
- श्रुत्वा तवाद् भुत चरित्रमखण्ड कीर्तिम्
- व्याप्तां दिगन्तर विशाल धरातलेऽस्मिन् ।
- जिज्ञासुलोक उपतिष्ठति चाश्रमेऽस्मिन्
- श्री सत्य साई भगवन् तव सुप्रभातम् ॥७॥.
भावार्थ
आपके चरित्र की चमत्कारिक, अद्भुत कहानियाँ और दूर-दूर तक फैली प्रसिद्धि को सुनकर सत्य की खोज करने के उत्सुक जिज्ञासु लोग आपके आश्रम के प्रांगण में बैठे, दर्शनों की और अन्तः जागरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
व्याख्या
श्रुत्वा | सुनने के बाद |
---|---|
तवाद् भुत | आपके अद्भुत, आश्चर्यजनक |
चरित्रमखण्ड | चरित्र के कभी समाप्त न होने वाले कथानक |
कीर्तिम् | आपकी प्रसिद्धि |
व्याप्तां | फैली है |
दिगन्तर | देशो दिशाओं में क्षितिज के उस पार तक |
विशाल | महान |
धरातलेऽस्मिन् | पृथ्वी के धरातल पर, प्रांगण में |
जिज्ञासुलोक | शीघ्र जानने के उत्सुक |
उपतिष्ठति | प्रतीक्षा कर रहे हैं |
च | और |
चाश्रमेऽस्मिन् | आश्रम में |
आंतरिक महत्व
भगवान बाबा का जीवन चरित्र चमत्कारों से परिपूर्ण है। आध्यात्मिक खोज करने वाले जो भगवान और जगत के बारे में सत्य की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। संसार के कोने-कोने से आपकी दिव्य उपस्थिति में अपनी जिज्ञासा को शांत करने आए हैं।
दिव्यता कैसे आकर्षित करती है ?
यह पद भगवान बाबा की जीवनी से तथा भक्तों के विभिन्न प्रकार के अनुभवों से हमारा परिचय कराता है। हे भगवान! मेरी अन्त:चेतना में आपके दिव्य सत्य का उदय हो। आपकी दिव्यानुभूति का ही केवल मुझे स्मरण रहे और मैं हमेशा के लिए आपका रहूँ यही मेरी तीव्र अभिलाषा है।
भगवान की दिव्यता हमें परिवर्तित करने, हमारा पुनर्निर्माण करने और नया स्वरुप प्रदान करने के लिए ही आकर्षित करती है। भगवान के इस अवतार की उपस्थिति में हम अपने व्यक्तित्व को महान बना सकते हैं, यह अवसर हमें मिला है। हमने अपने मन को पवित्र करने के लिए साधना प्रारम्भ कर दी है। उनकी लीलाओं को सुनकर हमारे विचार परिष्कृत हुए हैं। हम उनकी महानता और दयापूर्ण प्रेम के अनेकानेक कृत्यों को अधिक से अधिक सुनना चाहते हैं, जिससे हमें प्रेरणा प्राप्त हो सके। इसके बाद ही हम उसकी इच्छानुसार कार्य करने के लिए यंत्र बन सकते हैं। हम उसकी कृपा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
जीवन का अर्थ हमारे सामने अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है जिससे हम अधिक से अधिक मनन करने लगते हैं। हम ध्यान प्रारम्भ करते हैं और अपने मन में भगवान दिव्यस्वरूप का चिन्तन करते हैं।
जब हम पुट्टपर्ती जाते हैं, वहाँ हम बहुत से विदेशी भक्तों को देखते हैं, जो सुदूर देशों से आते हैं, उनमें मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, ज्यू आदि अनेक धर्मावलम्बी होते हैं। सभी भक्त भगवान सत्य साई की लीलाओं का अमृत पान करते हैं और उनके आरोग्यवर्धक तथा प्रेरणा प्रदान करने वाले स्पर्श का लाभ प्राप्त करते हैं। वे भारत जैसी आध्यात्मिक धरा पर ईश्वर की अनुकम्पा से अपने मन को परिवर्तित करने आते हैं। वहाँ जाति, वर्ण, रंग या मत का कोई भेदभाव नहीं है। भगवान सबका मार्गदर्शन करते हैं, सत्य की खोज करने वाले सभी भक्तों को स्वीकार करते हैं।
इस पद में हम अपने आंतरिक छोर अर्थात आनन्दमय कोष तक पहुँच जाते हैं। हमारा मन स्थाई आनंद से प्रफुल्लित हो उठता है। हमें केवल भगवद् चर्चा ही सुनना में अच्छी लगती है। हमारी चेतना मुखरित होकर उच्च स्थिति को पहुँचती है। हम पहले से अधिक अच्छा व्यक्तित्व निर्माण कर पाते हैं। हमें प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर या अपने गुरु की दिव्य अनुभूति होने लगती है।
स्वामी की लीला
चमत्कारी सुरक्षा-वर्ष 1990 वृन्दावन में ग्रीष्मकालिक पाठ्यक्रम के समय एक प्राध्यापक ने भगवान की लीलाओं से सम्बन्धित बड़ी अद्भुत कहानी बतलाई थी।
एक दिन पुट्टपर्ती के महाविद्यालय का एक विद्यार्थी, जिसने कॉलेज द्वारा खेले जा रहे एक नाटक “ईसा मसीह” में भाग लिया होगा, अपने अभिनय का अभ्यास कर रहा था। उसे एक अंधे लड़के की भूमिका निभानी थी, जिसमें ईसा मसीह उसे चमत्कारिक दंग से फिर से दृष्टि प्रदान करते हैं।
जिस समय वह अपना कथानक कह रहा था. स्वामी रंगमंच पर अभ्यास देखने के लिए आए। वे अंदर गए और उस लड़के को देखकर बोले, “साई आ गए हैं, अब तुम अपनी खोई हुई दृष्टि वापस पा सकोगे।
सभी लोग अचम्भित व आश्चर्यचकित थे कि स्वामी का इस तरह का क्या तात्पर्य है क्योंकि नाटक तो ईसा मसीह का होने वाला था। स्वामी की कही हुई बात का कुछ न कुछ अर्थ अवश्य होता है।
कुछ दिनों पश्चात् पर्ती में कॉलेज की प्रयोगशाला में यह विद्यार्थी अपना एक प्रयोग कर रहा था। उसने भूल से सल्फ्यूरिक एसिड के साथ दो रसायन मिला दिए थे, जिससे एक धमाका हुआ। विस्फोटक द्रव्य उसकी आँखों में गया और उसकी दोनों नेत्रों की ज्योति जाती रही, वह दोनों आँखों से अंधा हो गया। किसी अन्य विद्यार्थी ने जब धमाके की आवाज सुनी तो वहाँ दौड़कर पहुंचा, उसकी सहायता की, दोनों आँखें पानी से साफ की, परंतु बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टर को बुलाया गया परंतु वह बहुत भयभीत हो गया, उसने समझा कि दोनों आँखों के रेटीना पर स्थाई प्रभाव पड़ा है जिससे आँखें अच्छी नहीं, हो सकतीं।
शाम को स्वामी ने विद्यार्थी की आँखों में पट्टी बंधी देखी। उन्होंने विभूति सृजित की और उसे खाने को दी। चार दिन बाद आँख की पट्टी खुली और उसे थोड़ा-थोड़ा दिखाई देने लगा। लगभग पंद्रह दिनों बाद वह अच्छी तरह से देख सकता था और एक माह में ही उसकी आँखें पूरी तरह ठीक हो गई, वह पूर्ण स्वस्थ हो गया।
स्वामी ने उस लड़के से कहा, “अगली बार सतर्क रहना।” लड़का बहुत अधिक चिंतित हो गया – “क्या अगली बार फिर ऐसा होगा।” स्वामी सब जानते हैं उन्होंने कहा – “हाँ” ! एक बार फिर प्रयोगशाला में एक विस्फोट हुआ, दुर्घटना हुई तथा उस विद्यार्थी की एक आँख पुन: दृष्टिहीन हो गई। इस बार रेटीना पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे पूरी तरह ज्योति चली गई। इस समय डॉक्टर ने विद्यार्थी को सीधे स्वामी के पास भेज दिया। स्वामी ने विभूति सृजित की तथा उसको आँख में लगा दी। भगवान करुणा के सागर हैं, उनकी कृपा की कोई सीमा नहीं, इस बार उसकी आँख थोड़े दिन में ही ठीक हो गई और अब उस विद्यार्थी की दोनों आँखें पूर्ण स्वस्थ हैं, वह सब कुछ देख सकता है।