हनुमान का लंका में प्रवेश
हनुमान ने अपना रूप एक छोटे से वानर के रूप में बदल दिया और लंका के द्वार में प्रवेश किया, जहाँ उन्हें द्वारपाल लंकिनी नामक राक्षसी ने रोका। उन्होंने उसे एक जोरदार झटका दिया, जिससे वह उबर नहीं पाई। उसने हनुमान को बताया कि यह भविष्यवाणी की गई थी कि जिस दिन लंका का द्वारपाल हार जाएगा, रावण खतरे में पड़ जाएगा। हनुमान ने सीता की खोज जारी रखी, जब वे तुलसी के बगीचे में पहुँचे तब उन्होंने भगवान का मंदिर देखा। इसलिए उन्होंने खुद ब्राह्मण का वेश धारण किया और वहां गए। उनकी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो हरि नाम का जाप कर रहे थे। उन्होंने खुद का परिचय रावण के भाई विभीषण के रूप में दिया। विभीषण एक धर्मपरायण व्यक्ति था।
हनुमान ने बताया कि वह राम के अनुयायी हैं और सीता की खोज में आए हैं, यह सुनकर विभीषण हनुमान के चरणों में गिर गए। विभीषण ने कहा, “मैं राम को देखने के लिए तड़प रहा हूं, लेकिन मैं राक्षस कुल से हूं। क्या राम मुझे अपने दर्शन से अनुग्रहित करेंगे? ” हनुमान ने उन्हें आश्वस्त किया, “राम परिवार, जाति या धर्म के विचारों से प्रभावित नहीं होंगे। वे केवल आपकी भावनाओं की शुद्धता को देखेंगे। वे तुम्हें वह दान देंगे, जिसके लिए तुम तड़प रहे हो; शोक न करें।” विभीषण ने भी हनुमान को अशोक वाटिका पहुंचने के लिए निर्देश दिए, जहां सीताजी को रखा गया था।
गुरू बच्चों को यह बतायें कि भगवान की नजर में सब एक हैं।
हमें भी जाति, धर्म, भौतिक दिखावे, स्थिति, धन आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। समाहित मूल्य- परमेश्वर का पितृत्व और मानव का भ्रातृत्व। हम सब भगवान की संतान हैं।
हनुमान ने अशोक वाटिका की ओर प्रस्थान किया। कूदते हुए एक शाखा से दूसरी शाखा तक पहुंचते-पहुंचते वे पत्तों के झुरमुट के पीछे छिप गए। उन्होंने जल्द ही सीता को एक पेड़ के नीचे बैठा देखा, जो कि राक्षसियों से घिरा हुआ था। तभी रावण वहाँ आया और उसने सीताजी को अपनी रानी बनने के लिए धमकाने की कोशिश की, लेकिन सीता ने रावण की तरफ देखा भी नहीं। वे केवल राम नाम जप रहीं थीं।
बच्चों के लिए मार्गदर्शन- कभी कभी जब हम बुरे लोगों के बीच होते हैं, तो हमें उन्हें देखना भी नहीं चाहिए या अनावश्यक रूप से उनसे बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे आगे वाद-विवाद की स्थिति बन सकती है।
इस समय, हमें हमेशा भगवान के नाम का जप करते रहना चाहिए ताकि भगवान हमारी रक्षा करेंगे। संवर्द्धित मूल्य : वाणी का नियंत्रण सबसे अच्छा आभूषण और आयुध है। नामस्मरण की शक्ति।
हनुमान ने सीताजी के सामने राम की अंगूठी गिरा दी। जब उन्होंने राम की अंगूठी को पहचाना तो वे अत्यंत प्रसन्न हुईं । उन्होंने अपने आसपास देखा तो एक वानर के मुख से राम नाम का उच्चारण सुना। हनुमान जी सीताजी के निकट आये और यह सिद्ध करने के लिए कि वे राम के सच्चे सेवक थे उन्होंने कुछ गोपनीय विवरणों का उल्लेख किया जो केवल राम और सीता को ही ज्ञात थे। उन्होंने अपना सामान्य आकार ग्रहण किया और कहा कि राम की कृपा से ही वे लंका पहुंच सके हैं। वह अपनी माता सीता को राम के पास ले जाना चाहते थे। लेकिन सीताजी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि राम आएंगे और रावण को पराजित कर सम्मान के साथ उन्हें वापस ले जाएंगे।
गुरुओं द्वारा बच्चों को दिया जाने वाला बोध- यद्यपि सीताजी हनुमानजी के साथ जा सकती थीं, किन्तु उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें भगवान राम पर पूरा भरोसा था और उन्हें पूरा विश्वास था कि वह आएंगे और उन्हें बचाएंगे। हमें भी अपने जीवन में कठिन समय के दौरान किसी भी संक्षिप्त मार्ग का सहारा नहीं लेना चाहिए और सही समय का इंतजार करना चाहिए। तब चीजें भगवान की कृपा से हमारे पक्ष में हो जाएंगीं। हम अपनी पूरी कोशिश करें। भगवान से प्रार्थना करें, और बाकी भगवान पर छोड़ दें। समाहित मूल्य : गलत साधन कभी भी नहीं अपनाए जा सकते भले ही वे एक सही अंत के लिए हों। हमारे तरीकों में धार्मिकता अंतिम परिणाम की तरह महत्वपूर्ण है।
प्रस्थान करने से पहले, हनुमान एक छोटे वानर के रूप में बदल गये। उन्होंने कुछ स्वादिष्ट फल खाए और जो फल अच्छे नहीं थे उन्हें फेंक दिया। उन्होंने फूलों को कुचल दिया और पेड़ों को उखाड़ दिया। जब यह खबर रावण के कानों तक पहुँची, तो उसने वानर को पकड़ने के लिए राक्षसों की सेना भेजी लेकिन वह असफल रही। अंत में हनुमान को रावण के सभा कक्ष में ले जाया गया। उन्होंने स्वयं का परिचय श्रीराम के दूत के रूप में दिया।
हनुमानजी ने रावण से कहा कि यदि वह शांति चाहता है तो राम के प्रति श्रद्धा दिखाये तथा सीताजी को मुक्त कर दे। अन्यथा वह और उसका राज्य राम द्वारा नष्ट कर दिया जाएगा। रावण क्रोधित हो गया और उसने वानर की मृत्यु का आदेश दिया। इस समय, विभीषण ने हस्तक्षेप करते हुए कि चूंकि हनुमान एक दूत थे, इसलिए उन्हें मारना सही नहीं था।
इसलिए उनकी पू्ँछ में आग लगाने का निर्णय लिया गया। उनकी पूँछ के चारों ओर कपड़ा बाँधा गया और उसे भिगोने के लिए तेल लाया गया। जब यह किया जा रहा था, हनुमान अपनी पूँछ को बड़ा करते जा रहे थे जिसके कारण भारी मात्रा में कपड़े और तेल का इस्तेमाल किया गया। अंत में उनकी पूँछ में आग लगा दी गयी और उन्हें लंका की गलियों में घुमाया गया। हनुमानजी ने शीघ्र ही लघु रूप धारण कर लिया जिससे रस्सियों का बंधन ढीला हो गया और वे मुक्त हो गये। फिर अपनी जलती हुई पूँछ की मशाल के साथ वे एक भवन से दूसरे भवन पर कूदते गये ।इस प्रकार उन्होंने संपूर्ण नगर में आग लगा दी। फिर आग से मुक्त होने के लिए उन्होंने अपनी पूँछ को पानी में डुबो दिया।
गुरू द्वारा स्वामी के दैवी वचनों का स्पष्टीकरण- वर्तमान समय में की जाने वाली हमारी हर क्रिया भविष्य में प्रतिक्रिया, प्रतिध्वनि और प्रतिबिंब के रूप में अवश्यंभावी है। इसलिए हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो गलत है क्योंकि अंततः हम भी उसी गलत कार्यों के परिणामों से प्रभावित होंगे। ऐसा ही रावण और लंकावासियों के साथ हुआ। उन्होंने हनुमानजी की पूंँछ में आग लगाकर उन्हें चोट पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन अंततः वे खुद उसी आग से प्रभावित हुए। बच्चों को यह भी बताया जा सकता है कि उन्हें किसी को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए, यहाँ तक कि पक्षियों और जानवरों को भी। जैसे उन पर अत्याचार करके या उनकी पूंँछ पर कुछ वस्तुएँ बांधकर यातनाएँ दी जाती हैं आदि।
संवर्द्धित मूल्य : अहिंसा परमो धर्मः।
जैसा जाएगा वैसा ही आएगा; इसलिए आप जो करते हैं उससे सावधान रहें।
अपने शब्दों, कार्यों, विचारों और चरित्र को देखें।
तत्पश्चात हनुमान सीता के पास गए एवं उनसे हुई भेंट का श्रीराम को प्रमाण देने हेतु सीताजी से एक निशानी देने का अनुरोध किया। सीता ने हनुमान को एक रत्नजड़ित आभूषण दिया और उसे राम के पास ले जाने को कहा। तब हनुमान ने समुद्र के ऊपर छलांग लगाई और वापस राम के पास गए। उन्होंने प्रभु राम को विस्तार से सब कुछ सुनाया और उन्हें वह चूड़ामणि दी जो माता सीता ने उन्हें दी थी।
जल्द ही राम ने लक्ष्मण को अभियान के लिए तैयार होने के लिए कहा। राम ने सभी वानर योद्धाओं को आशीर्वाद दिया। जैसे ही वे आगे बढ़े, शुभ संकेतों ने उनका अभिवादन किया। इधर रावण की पत्नी मंदोदरी ने रावण के चरणों में गिरकर उससे सीता को वापस भेजने का अनुरोध किया। लेकिन रावण ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया।
गुरुओं बच्चों को बतायें कि यद्यपि रावण महान था किन्तु अभिमानी भी था।मंदोदरी सहृदय और कोमल मन की थी।
स्वामी हमेशा कहते हैं कि हमें अच्छा बनने के लिए प्रयास करना होगा।
गुरू युवा साई के जीवन से विभिन्न प्रसंगों को सुनाकर अच्छाई के मूल्य पर जोर दे सकते हैं।
मूल्यों में वृद्धि – महानता गुणों में होती है न कि वीरता में। अच्छा बनो, अच्छा करो, अच्छा देखो।