शबरी मोक्ष
श्री राम व लक्ष्मण सीताजी की खोज में दक्षिण भारत की ओर चल पड़े| वहाँ उनकी भेंट एक वृद्ध असहाय स्त्री से हुई, जिसका नाम था शबरी| शबरी के गुरू मातंग ऋषि ने, देह त्यागने से पूर्व यह भविष्यवाणी की थी, कि एक दिन प्रभु राम स्वयं उनके घर आएँगे, जिससे शबरी के जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाएगा|
भगवान श्रीराम को देखते ही शबरी का शरीर प्रेम से पुलकित हो गया। उसके नयनों से प्रेमाश्रु बह निकले।वह भाव से ओतप्रोत स्वर में बोली- “हे राम! मेरे गुरू की मनोकामना पूरी हो गई| मेरा आश्रम कुछ ही दूरी पर है| कृपया अपने पावन चरणों से उसे धन्य कर दीजिए|” यह कहते हुए शबरी, अपने प्रिय प्रभु के चरणों में नतमस्तक हो गई।
उसकी भक्ति तथा प्रेम पूर्ण विनती से भगवान अति प्रसन्न हुए। उन्होंने उसके आग्रह को स्वीकार कर, आश्रम में प्रवेश किया। प्रभु के आगमन से, वृद्ध शबरी को मानों, नये प्राण मिल गए। इतने वर्षों से जिनकी प्रतीक्षा में उसकी आंखें पथरा गईं थीं, वे नयी ऊर्जा से भर गईं। वह श्री राम के लिए, नदी से ताजा जल व फल ले आई| उसने एक-एक कर बेर फलों को चखा और फिर उन्हें श्री राम को दिया ताकि उसके प्रिय प्रभु को सबसे मीठे व अच्छे फल मिलें|
श्री राम, शबरी की इस श्रद्धा, भक्ति व अपार प्रेम से अति प्रसन्न थे|
उन्होंने कहा, “माँ! मुझे अपने भक्तों से सिर्फ श्रद्धा ही चाहिए, बाकी सब स्वयं मिल जाएँगे| मैं हमेशा श्रद्धा में मिली हुई अटूट प्रेम की मधुरता ही चाहता हूँ|”
इस प्रसंग के अंतर्गत गुरू, बच्चों को इस भाव-पक्ष से अवगत कराएँ कि, जब वह प्रेम से परिपूर्ण होकर प्रार्थना व अपने कार्य को करते हैं तो, भगवान उनके हृदय में विराजित होते हैं तथा दर्शन देते हैं।
मूल्यपरक शिक्षा– प्रार्थना, निर्मल मन से करनी चाहिए, जो प्रेम व श्रद्धा से परिपूर्ण हो|
प्रेम विहीन कार्य सफल नहीं होता।
प्रेम पूरित कार्य ही प्रभु को स्वीकार्य है।
[गुरू, शबरी की कहानी सुनाकर, उनकी, श्री राम के प्रति अटूट प्रेम व श्रद्धा के भाव को बता सकते हैं|
शबरी के जीवन का एकमात्र उद्देश्य, एकमात्र इच्छा बस यही थी कि वह श्री राम के दर्शन करे तथा उनके चरणकमल को स्पर्श करे| वह रामरस की मधुरता में मग्न थी|
वृद्धावस्था में जप व ध्यान की जगह, वह, प्रतिदिन, अपने आश्रम को, श्री राम के स्वागत के लिए सजाती थी| आश्रम के मार्ग को साफ करते-करते उसने अपने हृदय को भी शुद्ध कर लिया| मार्ग में लटकी हुई लताओं को वह हटा देती थी ताकि श्री राम की जटाएं उनमें न फँसे| शबरी ने, बड़े बड़े पत्थरों को तोड़ दिया था, ताकि वह सीता माता के कोमल चरणों में न चुभें| वह प्रतिदिन कानन जाकर पुष्प व फल एकत्रित करती थी ताकि श्री राम के शुभागमन पर उन्हें अर्पित कर सके| श्री राम के आने पर उन्होंने हर फल को चखकर, मीठे फल ही राम को दिए| उसने, पत्थर की शिला बनाकर राम, लक्ष्मण व सीता के बैठने के लिए तैयार किया, ताकि अगर वह जंगल की राह पर चलते-चलते थक जाएँ, तो उनका प्रयोग कर सकते हैं| शबरी के मन में आस थी कि अवश्य ही प्रभु उनके द्वारा तैयार किए पत्थरों पर विश्राम करें व इस प्रकार उनका हृदय राम – हृदय बन गया|
जो साधना शबरी ने श्री राम का सानिध्य पाने के लिए की थी, वह हम जरूरतमंदों की सेवा करके भी,कर सकते हैं तथा प्रभु को अपने प्रेम से अवगत करा सकते हैं| इस सेवा से हम खुद में राम पाते हैं|