पेड़-पौधों में सजीवता
डा.जे.सी. बोस एक महान जीव शास्त्री थे । उन्होंने संसार को सिद्ध करके दिखा दिया कि पौधों में जान होती है और वे भी महसूस करते हैं। जगदीशचंद्र बोस, भगवानचंद्र बोस तथा अबला बोस के सुपुत्र थे । भगवानचंद्र, पेशे से न्यायाधीश थे । वे शिक्षा शास्त्री एवं वैज्ञानिक खोज के प्रेमी थे तथा अबला बोस एक विनम्र सहृदय महिला थीं।
जे.सी.बोस को सर्वप्रथम ऐसे स्कूल में प्रवेश दिलवाया गया, जहाँ बंगाली माध्यम से शिक्षा दी जाती थी | उन्हें गरीब बच्चो में स्वतत्रंतापूर्वक मिलने जुलने एवं खेलने दिया जाता था | बचपन से ही बालक जगदीश में ज्ञानपिपासा एवं तीव्र जिज्ञासा थी | वह कई वस्तुओं के बारे में जानना चाहता था | जुगनू क्या है? हवा क्यों चलती है? और पानी क्यों बहता है? वह पोखर में मेंढक एवं मछली पालते थे | वे उगते पौधे को जड़ से उखाड़ते एवं उसकी जड़ प्रणाली का अध्ययन करते। उन्होंने कई चूहे, पालतू जानवर, गिलहरियाँ एवं बिना विष के सर्प पाल रखे थे |
जे.सी.बोस के यहाँ एक नौकर था, जो उन्हें बहादुरी की कहानियाँ सुनाया करता था | माता अबला बोस उन्हें रामायण एवं महाभारत की कथाएँ सुनाती थीं | जे.सी.बोस भारत की प्राचीन संस्कृति से बहुत प्यार करते थे |
जे.सी.बोस को उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड भेजा गया था | भारत वापस लौटकर वे प्रेसीडेंसी कालेज कोलकाता में प्रोफेसर हो गए। उन्होंने कठोर परिश्रम करके, एवं धन बचाकर स्वतः की एक प्रयोगशाला बनवाई ताकि वे अनुसंधान कर सकें| प्रयोग के लिए उन्होंने अपने उपकरण खुद ही बनाए ।
विद्युत उनका प्रिय विषय था | उन्होंने दिखलाया कि जब विद्युत, किसी पौधे में प्रवाहित की जाती है, तो पौधा उत्तेजित हो जाता है, या परेशान हो जाता है | उन्होंने एक ऐसा उपकरण बनाया जो पौधों पर, विद्युत की प्रतिक्रिया को दर्शाता था |
जे.सी.बोस को रायल सोसायटी में आमंत्रित किया गया ताकि वे अपना सिद्धांत प्रतिपादित करें। उन्होंने सिद्ध किया कि पौधों में विष का इंजेक्शन दिया जाता है तो उन्हें पीड़ा होती है, और अंत में वे मर जाते हैं | उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि कुछ पौधे सीधे क्यों बढ़ते हैं और कुछ सीधे क्यों नहीं बढ़ते | बोस ने ऐसा उपकारण बनाया जो पेड़ को छूने की प्रतिक्रिया को दर्शाता था | उन दिनों कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि कोई भारतीय वैज्ञानिक ऐसी खोज कर सकता है या ऐसे संवेदनशील उपकरण बना सकता है । बोस ने बतलाया कि पौधों में प्रकाश के लिए प्यास होती है। वे तापमान के बढ़ने व घटने के साथ खुलते एवं बंद होते हैं।
जे.सी. बोस, टैगौर एवं विवेकानंद से बहुत प्रभावित थे। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी एक तीव्र इच्छा पूर्ण कर ली थी। वह थी एक रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना, ताकि युवा लोग प्रोत्साहित हों, वैज्ञानिक आविष्कार किए जाएँ। उन्होंने विदेशों में कई व्याख्यान दिए कई लेख लिखे तथा अनेकों नए उपकरण बनाए।
श्री जगदीशचंद्र बोस, भारत के महान वैज्ञानिकों में से एक थे | उन्होंने अपना जीवन विज्ञान को समर्पित कर दिया था | उनकी अमेरिका एवं यूरोप में भी प्रशंसा हुई एवं आदर मिला। अपने संपूर्ण जीवन काल में इस महान वैज्ञानिक को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि वे अपनी प्रयोगशाला को परिपूर्ण करने में समर्थ नहीं थे | उन्होंने अपने प्रयोगों के लिए खुद ही अपने उपकरणों को ईजाद किया था। उनका मत था कि किसी व्यक्ति को अपने कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए । वे धनलोलुप नहीं थे | वे सारा जीवन मितव्ययी ही बने रहे | उनका विश्वास था कि ज्ञान, धन कमाने के लिए नहीं है, अपितु इसका उपयोग सबकी भलाई के लिए होना चाहिए। सन् १९२० में रायल सोसायटी लंदन ने इन्हें फेलोशिप से सम्मानित किया | धन, सत्ता एवम् प्रशंसा उन्हें आकर्षित न कर सकी। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से कठोर परिश्रम किया ताकि देश की कीर्ति बढ़े तथा विश्व में ज्ञान का भंडार बढ़े |
जे.सी.बोस ने यह भी बतलाया कि, पौधे बिना जड़ के पानी ग्रहण कर सकते हैं। उन्होंने सिद्ध किया कि कोशिकाएँ मानवीय ह्रदय के समान फैलती एवं सिकुड़ती हैं । जब पाश्चात्य लोगों ने पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि भारत के ऋषि मुनि पहले से ही यह बातें जानते थे | वे जीवन की एकात्मता के बारे में जानते थे | उन्होंने दिखला दिया कि किस प्रकार बार-बार उपयोग में आने पर एक ब्लेड भी थक जाती है |
प्रश्न-
- जे.सी.बोस के पिता के बारे में आप जो जानते हैं उसे लिखिए।
- उनकी विशेष रुचि का विषय क्या था?
- उन सभी बातों को लिखिए जिन पर उन्होंने विश्वास किया और पौधों के बारे में विश्लेषण किया।