सत्य वचन निभाओ
गदाधर, नामक बालक जब नौ साल का हुआ, तब उसका उपनयन संस्कार हुआ। उनके बड़े भाई रामकुमार कुटुंब के प्रमुख थे, और उस उपनयन संस्कार का प्रबंध उन्होंने करवाया। उपनयन संस्कार पूरा होते ही, बालक ने दृढ़ होकर कहा कि वे, वहाँ के लुहार की पत्नी, धनी लुहारिन के हाथों प्रथम भिक्षा प्राप्त करेंगे।
गदाई, के जन्म के समय धनी लुहारिन ने, माँ चंद्रा देवी के पास रहकर, उनकी ख़ूब सेवा की थी। परन्तु रामकुमार इस बात से सहमत नहीं थे। पिता खुदीराम के दिए, परंपरागत संस्कार के अनुसार, माँ जो ब्राह्मणी हो वही उपनयन के पश्चात् बालक को भिक्षा देती है।
किन्तु गदाई ने हठ किया, “मैंने उनको ही माँ मानकर, उनसे पहली भिक्षा लेने का वचन दिया है। उनको दिया वचन मैं त्याग नहीं सकता |”
जब गदाई बहुत छोटे थे, तब धनी लुहारिन ने उनसे अनुरोध किया था, “मुझे तुम्हारे उपनयन संस्कार के अवसर पर भिक्षा देनेवाली माँ मानोगे?” और गदाई ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था। सभी लोग, एक छोटे बालक के वचन को उतना मान नहीं देना चाह रहे थे, वे बोले “ऐसा वचन निरर्थक है |” परंतु गदाई अपने वचन पर दृढ़ रहे, बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए। उनका कहना था, यदि दिए वचन को न निभाया जाए तो वो असत्य होगा। आखिरकार सभी को उनकी बात माननी पड़ी।
उपनयन संस्कार के पश्चात् जब धनी लुहारिन, भिक्षा देने सामने आयी तब, गदाई की, खुशी का ठिकाना न रहा।
उपनयन के पश्चात् गदाई को रघुवीर जी और सीता देवी की उपासना का अधिकार मिला। यह उपासना इनके लिए मनपसंद काम था। रघुवीर जी के बारे में सोचते हुए, उनकी उपासना के दौरान, वे बाहरी संसार को भूल जाते थे, और घन्टो तल्लीन होकर, परमात्मा के अस्तित्व का अनुभव कर प्रसन्नचित्त रहते थे।
प्रश्न
- गदाई प्रथम भिक्षा किससे लेना चाहते थे?
- रामकुमार ने उनको क्यों रोका?
- गदाई ने उनको क्या उत्तर दिया?
- इस कथा से गदाई के दो सद्गुण बताओ?