सत्य ईश्वर की कृपा प्रदान करता है।
काशी महान पवित्र क्षेत्र माना जाता है। वहाँ काशी विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए लोग बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ जाते हैं। काशी जाने से कैलाश यात्रा का पुण्य प्राप्त होता है, ऐसा भक्तों को विश्वास है। एक बार शिवरात्रि के पवित्र पर्व पर हजारों लोगों को काशी विश्वनाथ के दर्शन को जाता हुआ देखकर माता पार्वती जी ने भगवान शिवजी से पूछा, “हे नाथ, जो लोग काशी पहुँचते हैं क्या वे सब कैलाश पहुँच जाते हैं?” भगवान शिव ने कहा, “काशी जाने वाले सभी कैलाश पहुँचते हों, ऐसा नहीं है। कौन कैलाश पहुँच सकता है यह तो मैं तुम्हें दिखाऊँगा।”
भगवान शिव और माता पार्वती ने एक वृद्ध दम्पति का रूप धारण किया। भगवान शिव नब्बे वर्ष के वृद्ध बन गये और माता पार्वती जी अस्सी वर्ष की वृद्धा। वे दोनों काशी विश्वनाथ के मंदिर के सिंहद्वार पर जाकर बैठ गये। बूढ़े बाबा ने अपना सिर बूढ़ी मैया की गोद में रख दिया और पसर गये। मंदिर में काशी विश्वनाथ को गंगा जल चढ़ाने और दर्शन के लिए जाने वाले भक्तों से वह बुढ़िया बड़े आर्त और दीनता भरे शब्दों में प्रार्थना करने लगी, “भक्त जनों। मेरे पति की प्यास बुझाने के लिए, दया करके थोड़ा सा गंगा जल तो इन्हें पिला दो। इनकी दशा खराब है, इसलिए मैं इन्हें छोड़ कर गंगा जल लेने जा नहीं सकती और मुझ में सामर्थ्य भी नहीं है। इनके किस समय प्राण निकल जायें कुछ नहीं कह सकते। आप में से कोई भी थोड़ी सहायता कर दो।”
भक्त जन गंगा जी में स्नान कर गीले वस्त्र पहने हाथों में गंगाजल से भरे पात्र लिये चले आ रहे थे। उस वृद्धा की बात सुनकर वे कहते “यह क्या है? विश्वनाथ के दर्शन किये नहीं उससे पहले ही ये दरिद्र देव कहाँ आ गये?” और शीघ्रता के साथ मंदिर में चले जाते। कुछ कहते, “ठहरो, पहले हम विश्वनाथ भगवान के दर्शन कर आवें फिर तुम्हारे पति को गंगा जल देंगे।” इस प्रकार उनकी किसी ने भी बात नहीं मानी। उसी समय वहाँ एक चोर आया। मंदिर के मुख्य द्वार पर बड़ी भीड़ थी और वह वहाँ लोगों की जेब काटने तथा स्त्रियों के गलों से हार आदि उड़ाने के लिए आया था। उस चोर ने उस बूढ़ी मैया की दीनता भरी पुकार, प्रार्थना सुनी तो उसने उससे पूछा, “अम्मा आप कौन हैं? आप यहाँ क्यों आयी हैं?” “हम काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए आये हैं। लेकिन मेरे पति प्यास के कारण व्याकुल होकर मूर्छित हो गये हैं।
कोई भी थोड़ा सा पानी इनके मुँह में डाल दे तो ये होश में आ जाये, उसके लिए सबसे प्रार्थना कर रही हूँ किन्तु कोई भी दया नहीं दिखाता,” वृद्धा ने उससे कहा। चोर के पास पानी था और वह उस वृद्ध को पानी पिलाने के लिए फौरन तैयार हो गया। बूढ़ी मैया ने उससे कहा, “बेटा ठहरो मेरे पति के किसी भी क्षण प्राण निकल सकते हैं इसलिए तुम इनके मुँह में पानी डालने से पहले, अपने किये हुए किसी पुण्य कार्य की याद करो और फिर पानी डालो।” चोर ने विचार किया कि मैंने असत्य बोलने के अतिरिक्त कोई काम तो किया ही नहीं, क्या याद करूँ। वह बोला, “अम्मा, मैं तो एक चोर हूँ। अब तक मैंने कोई भी पुण्य कार्य नहीं किया है। यह देखो, इन बूढे बाबा को जल पिला रहा हूँ, यही मेरा पुण्य कार्य है।” ऐसा कहते हुए उसने वृद्ध के गले में पानी डाल दिया। उसी क्षण भगवान शिव और माता पार्वती अपने असली रूप में प्रकट हुए और चोर को दर्शन दिये।
“परोपकार के लिए ही मानव जीवन है, स्वार्थ के लिए नहीं। अब तक तुम ने सब बुरे ही कार्य किये हैं। अब आगे सदा परमार्थ के कार्य करना और सत्य बोलना, सहायता और सहयोग देना। अब से अपना जीवन पवित्रता के साथ बिताना। सत्य से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है। परोपकार से बढ़कर कोई प्रार्थना नहीं है,” ऐसा आशीर्वाद देते हुए भगवान शिव-पार्वती अदृश्य हो गये।
प्रश्न
- शिव और पार्वती के बीच हुए बातचीत का वर्णन कीजिए?
- कृपा पूर्ण भगवान शिव और प्रेमभरी शक्ति माता दोनों ने एकसाथ होकर कौनसी योजना बनाई?
- उनकी सहायता करने को कौन आगे आया? वह कैसे काम करता था?