अहिंसा
पूर्ण आत्मविकास और अनुभूति अर्थात् सभी में एक उसी परमात्मा का वास है, इस अद्वैत अनुभूति का परिणाम अहिंसा है। यह सभी जीवों, प्राणियों से एकात्मकता की भावना की स्थिति होती है। आध्यात्मिक जागृति का पथ होने से अहिंसा, आत्म ज्ञानियों का प्रमुख गुण एवं लक्षण है। इसमें सर्वत्र सभी प्राणियों में तथा सृष्टि के कण- कण में ईश्वर का दर्शन होता है। अहिंसा में किसी के सभी सुख-दुःख अपने लगते हैं। अहिंसा को मानने वाले अपने पराये का भेद नहीं रखते। आत्मा से निकला व्यापक और निर्मल प्रेम अहिंसा है।
सत्य, धर्म, शान्ति, प्रेम ये चार मूल्य, व्यक्ति परक हैं। इनमें विभिन्न स्तरों पर किसी एक या बहुत से लोगों के साथ हमारा व्यक्तिगत व्यवहार अथवा रवैया कैसा हो, इस पर जोर दिया जाता है। किन्तु अहिंसा में सम्पूर्ण विश्व और समस्त प्राणियों के प्रति हमारा रवैया तथा सामाजिक कर्त्तव्य क्या है इसकी प्रधानता रहती है। इसका सम्बन्ध समस्त संवेदनशील एवं सचेतन प्राणियों के प्रति अपने व्यवहार से है। निष्कर्ष यह है कि इसमें बिना किसी भेद के समस्त प्राणियों के प्रति औदार्यपूर्ण व्यापक प्रेम निहित रहता है।
सभी धर्मों में अहिंसा को परम धर्म माना गया है। यहाँ केवल शारीरिक हिंसा से बचना अहिंसा नहीं होती बल्कि मन, वचन और कर्म इन तीनों ही से किसी के प्रति हिंसा नहीं होना सच्ची अहिंसा मानी गई है।
इन्हीं पाँच मूल्यों के भीतर जीवन के समस्त मूल्य और गुण समाहित हैं। इन्हें अपना आदर्श मानकर यदि हम अपने मन व हृदय को सुसंस्कृत बनायें तथा बुद्धि को संतुलित रखकर उसी के अनुकूल आचरण भी करें तभी हम सत्पथ अर्थात् सन्मार्ग के राही होंगे। इस प्रकार हम स्वयं के हित के साथ ही परोपकार करते हुए दैवी विधान और व्यवस्था के अनुरुप अपना जीवन बिता सकेंगे। वास्तव में यही साई सन्देश है जिसकी वे व्यक्तिगत जीवन में दिन प्रतिदिन के व्यवहार से निरंतर हमें शिक्षा देते रहते हैं।
आओ, हम सब साई पथ के पथिक बनकर उनके चरण चिन्हों पर चलते हुए मुक्ति लाभ प्राप्त करें तथा समाज और विश्व कल्याण हेतु बड़ी विनम्रता के साथ सतत् रूप से अपने छोटे-छोटे विनम्र प्रयास करते रहें।