प्रेम
भगवान बाबा कहते हैं कि आत्म चेतना, हृदय की विशालता एवं सभी के प्रति मन में सहज ही प्रेम पूरित भाव हों तो उसे प्रेम कहते हैं। सभी में ईश्वर है, इस आंतरिक अनुभूति से सबके प्रति प्रेम उत्पन्न होता है।
बाबा कहा करते हैं, ‘निस्वार्थता का होना ही प्रेम है’ और ‘त्याग तथा क्षमाशीलता से प्रेम बना रहता है।’ प्रेम में दूसरों से भी समान भाव एवं एकात्मकता होती है। यथार्थ में ईश्वर से निरंतर प्रेम के कारण, सभी मनुष्यों और प्राणियों में आत्मीयता की प्रतीति होना परम सत्य की अनुभूति है जिसे प्रेम कहा जाता है।
Love is the foundation for all the other four values.
Love in Thought is Truth.
Love in Action is Right Conduct.
Love in Feeling is Peace.
Love in Understanding is Non-violence.