शांति
भगवान बाबा ने कहा है मानवीय मनोविकारों से उत्पन्न उद्विग्नता और उथल पुथल का शमन होना ही शान्ति की स्थिति प्राप्त करना है। मानस सागर के शांत जल में इच्छाओं के कारण क्षोभ एवं अशान्ति उत्पन्न होती है। इच्छा रहित मन में शान्ति हो जाती है।
शांत मन में ही ज्ञानोदय होता है और ज्ञान से अभिभूत ऐसे मन तथा बुद्धि में प्रशान्ति की अवस्था होती है। शान्ति की इस उच्च अवस्था को ही आनंद कहते हैं। क्षमा, सुख-दुःख में समभाव, आत्मा की शांति और विधाता की रक्षा करने की क्षमता पर अटल विश्वास, संसार के प्रति वैराग्य और ईश्वर के प्रति राग का उत्तरोत्तर विकास, प्रतिदिन ईश चिन्तन, मनन व ध्यान करना ये सभी शान्ति की सर्वोच्च अवस्था की प्राप्ति में सहायक हैं।