चित्रकला
सबसे पुरानी चित्रकला औरंगाबाद की अजंता की गुफाओं की भित्ति चित्रों में पाई गई है। किसी अनजाने अज्ञात बौद्ध भिक्षुक कलाकार द्वारा बनाई गई इन कलाकृतियों से प्राचीन भारत की चित्रकला के विकास का बोध होता है। अभी तक ज्ञात शैलियों की दो शाखाएंँ कांगड़ा घाटी और राजस्थानी शैली पारसी है। मुगल कलाकारों ने भारतीय संगीत की तरह भारतीय चित्रकला में भी पारसी शैली को समन्वित किया है। बौद्ध, हिन्दू और मुगलकालीन आदि चित्रकला शैलियों में चित्रकार पर गहरे धार्मिक प्रभाव का प्रमाण मिलता है।
भले ही लोग विभिन्न धार्मिक त्यौहार या उत्सव मनायें परन्तु सभी धर्म एक ही सिद्धान्त, केवल एक ही ईश्वर है को प्रतिपादित करते हैं। इसलिए जब हम हिन्दू-मंदिर, मुसलमानों की मस्जिद, जैन मंदिर अथवा सिक्खों के गुरुद्वारे को देखते हैं तो सब पर एक प्रभाव सामान्य है। उन सभी में ईश्वर पर विश्वास स्पष्ट दिखाई देता है। दिव्यता परक कला चाहे वह हिन्दू, ईसाई अथवा मुस्लिम शैली की हो सभी एक ही बात को उजागर करते हैं कि ईश्वर केवल एक ही है।