भक्ति योग
भक्ति योग
भक्ति योग में मनुष्य ईश्वर के प्रति, प्रेम से प्रेरित होता है। भक्त बहुत भावुक होते हैं, उनकी सभी भावनाएंँ तथा संवदेनाएंँ उनके इष्टदेव पर ही केन्द्रित होती हैं। उन्हें इष्टदेव (ईश्वर) के पूजन में ही आनन्द प्राप्त होता है। जब उसकी भक्ति परिपक्व होती है तो उसे सम्पूर्ण विश्व में ईश्वर के ही दर्शन होते हैं।
दृष्टांत
यह कहानी भगवान बाबा ने सुनाई है।
एक समय की बात है, ज्ञानदेव और नामदेव एक साथ तीर्थयात्रा पर गए, यद्यपि ज्ञानदेव भी भक्त थे, परन्तु उनका झुकाव ज्ञानमार्ग की ओर अधिक था। नामदेव भावुक स्वभाव के थे। वे भक्तिमार्ग पर चल रहे थे। पंढरपुर के विट्ठल ही उनके इष्टदेव थे और वे ही उनके लिए माता, पिता तथा सर्वस्व थे।
एक दिन चलते-चलते वे बहुत थक गये और उन्हें प्यास लगी। खोजते- खोजते उन्हें एक कुआंँ दिखाई दिया। कुआंँ बहुत गहरा था और उसमें नीचे थोड़ा सा पानी था। न तो कुएंँ पर कोई रस्सी बाल्टी थी, न कोई अन्य साधन कि पानी निकालकर प्यास बुझा ली जाए।
ज्ञानदेव ध्यानस्थ हो गए। कुछ ही क्षणों में अपने योग बल से उन्होंने स्वयं को एक पक्षी बना लिया। वह पक्षी उड़कर कुएंँ में गया, पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और उड़कर ऊपर आ गया। इसके पश्चात् उन्होंने अपना मूल रूप धारण कर लिया।
नामदेव ऐसे महान योगी नहीं थे और ना ही उन्हें कोई सिद्धियाँ प्राप्त थीं। वे तो बस अधीर हो विठ्ठल को ही पुकारना जानते थे। उन्होंने विठ्ठल को पुकारा और देखा, कुएंँ का पानी ऊपर चढ़ने लगा और ऊपर तक आ गया। नामदेव ने चुल्लू में भर-भर पानी पी लिया और उनकी प्यास शान्त हो गई। यह दृश्य देखकर ज्ञानदेव को भक्ति का महत्व समझ में आ गया और उन्हें ज्ञात हो गया कि भक्तिमार्ग ही सर्वश्रेष्ठ है।