चित्त चोरा

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दिव्य प्रवचनों का संकलन
भगवान कृष्ण का आकर्षण

वह अपनी दिव्या क्रीड़ा और चमत्कारी शक्तियों से सभी के हृदय को मोह लेता है, और अपने प्रेम द्वारा हमारे मन को संवेदी इच्छाओं से दूर करता है | बाबा कहते हैं कि यह आकर्षित करने की अभिवृत्ति दैवत्व की विशेषता है तथा देव हमें परिवर्तित, पुनर्निर्मित एवं दोषनिवृत्त करने हेतु आकर्षित करता है, न कि छल या गुमराह करने हेतु|

कृष्ण भाव को विकसित करना

‘कृष्ण’ शब्द का मूल रूप है ‘कृष’, अर्थात खेती करना | अतः ‘ कृष्ण ‘ का अर्थ है, ‘वह जो मानव हृदय से नकारात्मक प्रवृत्ति रुपी अपतृण को निकालकर, श्रद्धा, साहस तथा हर्ष जैसे सकारात्मक गुण के बीज बोता हो | कृष्ण अपने भक्तों के हृदय में प्रसन्नता के फसल विकसित कर उन्हें अपने सत्-चित्-आनन्द होने से अवगत कराते हैं | राधा केवल एक नारी ही नहीं है, अपितु प्रभु की चरणों में समर्पित होने वाला प्रत्येक मनुष्य राधा है |

नवनीत–चोरम्

भगवान कहते हैं, “श्री कृष्ण को ‘नवनीत चोरा’ (माखन चुराने वाल) कहा जाता है | वह कौन सा माखन है जिसे कृष्ण ने चुराया? वह माखन है भक्तों का हृदय | भक्त अपना हृदय कृष्ण को अर्पित करता है और कृष्ण उसे स्वीकारते हैं | इसे कैसे चोरी कहा जा सकता है? किसी के जानकारी के बिना उसकी वस्तु ले लेने को ही चोरी कहा जाता है | परन्तु कृष्ण तो तुमसे प्रेम माँगते हैं और तभी प्राप्त करते हैं जब तुम उन्हें अपना प्रेम सहर्ष देते हो | ‘चोर’ शब्द का प्रयोग भक्तों का कृष्ण के प्रति अथाह प्रेम के कारण होता है | इसका कोई अपमानजनक अर्थ नहीं है | अपनी-अपनी समझ और भक्ति के अनुसार भक्त अपने भगवान का वर्णन अलग-अलग तरीके से करता है | ये सारे भक्त के व्यक्तिपरक अनुभव के अभिव्यक्ति हैं | भगवान सारी सीमाओं और गुणों से परे हैं|

स्वामी ‘हृदयस्तेन’ हैं (दिल चुराने वाले)

स्वामी कई अवसर पर श्री सत्य साई उच्च माध्यमिक विद्यालय जाते थे | छात्रों द्वारा बनाये गए हर एक प्रतिरूप (मॉडल ) के सामने स्वामी रूककर छात्रों से उसके बारे में प्रश्न करते और समझाने को कहते | १९९४, ९५ व ९६, तीनों वर्षों की प्रदर्शनी देखने स्वामी गए और उन्होंने वहाँ कई घंटे बिताए |

ऐसी ही एक प्रदर्शनी में वह प्रसिद्द ‘चोर अलार्म’ लीला घटी | जिस छात्र ने ‘चोर अलार्म’ का प्रतिरूप बनाया था, उसने स्वामी से आग्रह किया की वे अपना हाथ प्रतिरूप के आर-पार करें | ऐसा करने पर घंटी बजती | परन्तु स्वामी के हाथ रखने पर भी घंटी बजी नहीं | फिर स्वामी ने उस छात्र को अपना हाथ रखने को कहा | और घंटी बजी! ऐसा दो बार हुआ | छात्र हैरान था | फिर स्वामी ने मुस्कराते हुए कहा, “मैं चोर नहीं, चित्तचोर हूँ(हृदय चुराने वाला)|”

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