माता द्रौपदी

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माता द्रौपदी

पांडव, पांडु राजकुमारों ने एक आदर्शवादी, उच्चस्तरीय सदाचारी चारित्रिक जीवन व्यतीत किया। वे सनातन धर्म के सिद्धांतों के प्रति दृढ़ संकल्पित तथा न्याय, शौर्य एवं सद्चरित्रता के अवतार थे। वे कृष्ण के परम भक्त थे और जीवन के हर क्षेत्र में उनसे मार्गदर्शन पाते थे। शांति, धैर्य और दृढ़ता उन भाईयों की विशिष्टता थी। पांडवों की सहचरी भी कम सद्गुणी नहीं थी।

महाभारत युद्ध के दौर में कौरव शिविर के एक योद्धा अश्वत्थामा ने, पांडवों के सभी पुत्रों (जो उपपांडव कहलाते थे) का वध उस समय किया, जब वे अपने शिविर में रात्रि निद्रा में सो रहे थे। अश्वत्थामा पांडवों के गुरू द्रोणाचार्य का पुत्र था, पांडवों के गुरू जिन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या सिखा कर उसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाया। परंतु नींद में सोए हुए शत्रु के बालकों की हत्या अत्यंत ही निर्मम और घृणित कार्य था।

सभी पांडव भ्राता दुःख में डूबे थे और समझ नहीं पा रहे थे कि इस भयंकर (दारूण) घटना का दुःखद समाचार द्रौपदी तक कैसे पहुँचाया जाए। उन्होंने अश्वत्थामा को द्रौपदी के समक्ष लेकर आना उचित समझा ताकि वह स्वयं ही अश्वत्थामा को यथोचित सजा दिए जाने का उपयुक्त अवसर प्राप्त कर सके। पूर्णतः क्रोधाग्नि से पूरित होकर और घृणा तथा बदले की भावना से कंपित भीम ने उसे उसके सामने पटकते हुए चिल्ला कर कहा, “ओह! उपपांडवों की माता यहाँ तुम्हारे पुत्रों का निर्मम हत्यारा है। उसे आपके सामने लाया गया है ताकि आप उसे यथोचित संभावित तरीके से सजा दे सकें |”

द्रौपदी अब तक अपने पुत्रों की हत्या की खबर सुन चुकी थी। उसके दुःख और पीड़ा की सीमा नहीं थी और उसे नियंत्रित करना कठिन था। उसका दुःखी प्रलाप और रोना वहाँ उपस्थित प्रत्येक को उद्वेलित कर रहा था। उसकी इस घोर प्राण पीड़ा की तड़पन को देख कोई भी उसे सांत्वना देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

परंतु जब अश्वत्थामा को उसके समक्ष प्रस्तुत किया गया उसने स्वयं को नियंत्रित किया और पल भर दयनीय दृष्टि से उसकी तरफ देखा और घोर व्यथित स्वर में कहने लगी, जिसको सुनकर एक हत्यारे का हृदय भी द्रवित हो गया। बहुत धीमी और बहुत कठिनाई पूर्वक, वह बोली, “मेरे बच्चों ने तुम्हारा क्या अहित (बुरा) किया था? तुमने उन्हें तब मार डाला जब वे गहन निद्रा में सोए हुए थे। तुम पांडवों के गुरू-पुत्र हो। तुम तो उपपांडवों के गुरू बनने की स्थिति में थे। ऐसा क्या हुआ कि जिससे तुम्हें मेरे भोले भाले कोमल उम्र वाले बच्चों की हत्या करने जैसा जघन्य और घृणित काम करना पड़ा? उन्होंने तुम्हें कभी कोई हानि (नुकसान) नहीं पहुंचाई। क्या तुम्हारा ऐसा करना उचित था?” द्रौपदी को अश्वत्थामा से इतनी शांतिपूर्वक वार्तालाप करते देख कर भीम और अर्जुन अधीर (व्यग्र) हो रहे थे। द्रौपदी के शांतिपूर्वक आचरण (व्यवहार) से भीम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सोचा सभी बच्चों को खो देने के दारुण आघात के फलस्वरूप उसकी मानसिकता प्रभावित हो गई है। अन्यथा, वह समझ नहीं पा रहा था कि एक सच्ची माता जिसके सामने उसके सभी बच्चों का हत्यारा खड़ा है, कैसे ऐसा धीरज (धैर्य) दिखा सकती है।

अपने क्रोध और दुख के अनियंत्रित होने से वे उसे तभी और वहीं मार डालना चाहते थे। परंतु द्रौपदी ने उन्हें रोक दिया। उसने भीम को अश्वत्थामा के समीप जाने से रोका और हृदयस्पर्शी (मर्मस्पर्शी) शब्द कहे, जिसने संपूर्ण विश्व को ही आश्चर्य में डाल दिया, कि, शत्रु को मार डालो शरीर से नहीं अपितु सोच (मानसिकता) से। उसका मातृत्व जाग उठा था जिसने उसे उसके अपराधी के प्रति क्या व कैसा व्यवहार करना, इसका मार्गदर्शन किया। द्रौपदी का विवेक स्थिर एवं जागरूक था। वह अन्य किसी भी माता की पीड़ा सोच भी नहीं सकती थी, जिसने अपने पुत्रों को खो दिया हो।

बहुत कठिनाई के साथ वह भीम से बोली, “ओह, भीम कृपया उसे मत मारो। उसकी माता कृपि पहले ही अपने पति द्रोणाचार्य के दुःखद निधन के शोक से व्याकुल है। अश्वत्थामा को मार डालने का मतलब तुम केवल उसकी माता को ही दण्डित कर रहे हो, जिसका कोई अपराध ही नहीं है, और न कि उसको। यह कृत्य एक अबोध माता के दुःख में अभिवृद्धि करने जैसा ही होगा। ऐसा कोई भी अवांछनीय कार्य करना अनुचित है। उसे उजाड़-बीहड़ (जंगल) में, उसके बुरे कर्मों के फल भुगतने और उसके घोर पाप के प्रति पश्चाताप के लिए, अकेला छोड़ दो।”

पुनः उसने भीम से कहा, “तुम्हें ऐसे व्यक्ति को नहीं मारना चाहिए जो कि तुम्हारे गुरू का पुत्र है। जो भीरु (डरपोक) हो तथा तुम्हारी शरण में आया हो, एक व्यक्ति जो कि सो रहा हो अथवा एक व्यक्ति जो कि शराबी और स्वयं को ही भूल जाने वाला हो।”

द्रौपदी एक ऐसी महान नारी (स्त्री) थी कि न्यायसंगत आचरण की सुरक्षा के लिए उसने अपने पतियों का भी विरोध किया। किसी को भी अपने कर्मों द्वारा चोट (पीड़ा) पहुँचाना नहीं चाहती थी।

द्रौपदी के अंतर्मन स्थित मातृत्व ने उस अश्वत्थामा को क्षमादान दे दिया जिसने बेरहमीपूर्वक, जघन्य रूप से उपपांडवों की हत्या की थी।

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