सहिष्णुता

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सहिष्णुता

Janaka wants to be Sukha's disciple.

महाराज जनक एक महान राजशासक के रूप में प्रसिद्ध थे| लौकिक कर्तव्य जैसे कुशल प्रशासन, प्रजा तथा देशवासियों के प्रति निष्ठापूर्वक कर्तव्य पालन आदि कार्य करते हुए भी भगवद्-भजन, सुमिरन तथा निरंतर ईश्वर पर अटूट ध्यान, उनका सर्वोपरि गुण था| उनकी यह विशेषता एक सर्वश्रेष्ठ परिचिति के रूप में प्रसिद्ध थी|

मिथिला के पास, एक जंगल में श्रेष्ठ शुक ब्रह्मर्षि अपने शिष्यों को कई विषयों के बारे में उपदेश दे रहे थे| उनके यश के विषय मे सुनकर, महाराजा जनक भी उनके शिष्य बनकर पाठ सीखना चाहते थे| इसलिए वन पहुँचकर उन्होंने ऋषि शुक को आदरपूर्वक नमस्कार किया, और उनसे प्रार्थना की, कि उनके अनगणित शिष्यों में, उनको भी शिष्य मान लेने का अनुग्रह करें|

Disciples were made to feel city in fire

अनुमति पाकर, राजा जनक भी शुकमुनि के शिष्यों में से एक बन गये| एक दिन, राजा जनक को आने में कुछ विलंब हुआ| उनके आने तक शुकमुनि पाठ न सिखाकर प्रतीक्षा कर रहे थे| पाठ सिखाने में विलम्ब का कारण, उन्होंने अपने शिष्यों को बताया| गुरू द्वारा इस तरह एक शिष्य के लिए इंतज़ार करने के संबंध में बाकी शिष्य, आपस में बातें करने लगे कि, मुनि के यहाँ, राजा, महान अधिकारी या गरीब ऐसा पक्षपात होगा ये आशा नहीं थी| उस दिन से उनकी गुरू भक्ति तथा, गुरू पर विश्वास कम होने लगा| वे अन्य शिष्य, राजा जनक को भी ईर्ष्या तथा तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगे|

Except Janaka all others running

शुक मुनि अपने शिष्यों के मनोभाव (ईर्ष्या व घृणा युक्त स्वभाव) को समझ गए| उनको वे एक सीख सिखाना चाहते थे| तुरंत प्रतीक्षित अवसर भी आया| उन्होंने ऐसा एक दृश्य रचाया कि शिष्यों को ऐसा, दिखाई दिया कि, जनकपुरी अग्निज्वाला में भस्म हो रही है| तुरंत सब शिष्य विचलित हो गए, कि संपूर्ण नगरी जलेगी तो क्या होगा? कौन सा परिणाम होगा? अपने अपने घर में लोग कैसे पीड़ित होंगे? कुछ मिथिला की ओर दौड़ने का प्रयत्न कर रहे थे| पर मिथिलाधिपति जनक महाराज ऐसी विपरीत अवस्था में भी बिल्कुल विचलित नहीं हुए और शांत अपने स्थान में बैठे रहे| शुकमुनि ने जनक महाराज से कहा, “जलनेवाली आग राज महल में भी फैलेगी, इसलिए तुरंत नगर जाकर राजमहल वालों की रक्षा करना आवश्यक है |”

पर जनक महाराज मुस्कुराकर शांत स्वर में कहने लगे, “ किसी भी,परिस्थिति में ईश्वर की आज्ञा का पालन किया जाएगा| कोई उसे बदल नहीं सकता है।” ईर्ष्यापूर्ण शिष्यगण, मिथिला की ओर दौड़े| पर वहाँ कहीं भी आग का प्रभाव उन्हें नहीं दिखाई दिया| उनको यह मालूम हुआ कि वह तो एक निर्मित स्थिति का माया जाल था| वापस आकर शुकमुनि से, उन्होंने यह बात कही| उस समय वे किसी, बात से विचलित न होकर सहिष्णुता से, दृढ़चित्त विराजे हुए जनक महाराज को देखकर आश्चर्यचकित थे|

तब शुकमुनि ने शिष्यों से कहा, “बिना बुद्धिबल के अनेक शिष्य रहने के बदले जनक महाराज जैसे अनुशासन पूर्ण, चरित्रवान एक शिष्य का होना सर्वोत्तम होगा|”

प्रश्न
  1. राजा जनक से शुकमुनि के शिष्य क्यों ईर्ष्या करने लगे?
  2. शुकमुनि ने शिष्यों को सबक सिखाने हेतु किस स्थिति का चुनाव किया?
  3. जनक महाराज ने क्या किया?
  4. शिष्यों ने,उस परिस्थिति में कैसा व्यवहार किया?

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