सृष्टि में शाश्वत मूल्य

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सृष्टि में शाश्वत मूल्य

प्रत्येक सजीव, जीवन को प्रकट करने और गुणन द्वारा प्रकृति का आनंद लेने का प्रयास करता है। सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ रचनात्मक प्रयासों से आगे बढ़ती तथा फलती-फूलती हैं। प्रत्येक जीवन, अपनी क्षमता की अधिकाधिक अभिव्यक्ति की ओर अग्रसर होता है। मिट्टी में उपस्थित एक बीज, खुद को सूरज की रोशनी की ओर ऊपर की ओर धकेलता है। एक चूजा, बाहरी जीवन का आनंद लेने के लिए अपने चारों ओर के खोल को तोड़ देता है। प्रत्येक रेंगने वाला बच्चा अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने के लिए, बार-बार गिरने के बावजूद खड़े होने का प्रयास करता है। सृष्टि में विविधता, पांँच इंद्रियों का सीमा के भीतर उपयोग किए जाने पर , असीमित आनंद एवं खुशी प्रदान करती है; ये सीमाएँ पाँच शाश्वत मूल्यों प्रेम, सत्य, धर्म, शांति और अहिंसा द्वारा निर्धारित की जाती हैं।

पाँच तत्वों को पाँच गुण इसलिये दिये गये हैं ताकि सृष्टि का आनंद लिया जा सके। यदि सात रंग न होते तो हम सफेद रोशनी में आनंद प्राप्त नहीं कर पाते। यदि स्वाद और गंध की विविधता न होती तो हम सृष्टि की वस्तुओं का आनंद नहीं ले पाते। यह ईश्वर का प्रेम का उपहार है। जब हमारी इंद्रियों का उपयोग संयमित तरीके से किया जाता है तो हम अनेक प्रकार की सुगंधों को सूंघते हैं, विभिन्न प्रकार की आवाजें सुनते हैं, विविध खाद्य पदार्थों का स्वाद लेते हैं एवं प्रकृति की समस्त रंग-बिरंगी सौंदर्य पूर्ण महिमाओं से आनंद प्राप्त करते हैं।

प्रकृति, अनुकरण के लिए असंख्य आदर्श व भूमिकाएँ प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए, एक पेड़ न केवल पृथ्वी, जल, सौर विकिरण और वायु से पोषण प्राप्त करता है, बल्कि यह लाखों जीवाणुओं तथा सूक्ष्म जीवों, पक्षियों और जानवरों को चारा, फल, ऑक्सीजन, छाल एवं लकड़ी के माध्यम से भोजन प्रदान करता है। यदि सूर्य अपनी जीवनदायिनी किरणें बिखेरने में विफल रहा तो यह एक आपदा होगी। यह एक अपंग मधुमक्खी होगी जिसने अपना रस छत्ते के साथ साझा नहीं किया; और यह एक दयनीय आग होगी जिसने जलने और गर्मी देने से इनकार कर दिया। इसी प्रकार, हर बार जब हम कृतज्ञतापूर्वक तथा प्रेमपूर्वक अपना कर्त्तव्य निभाने से विमुख हो जाते हैं तो हम भी हारते हैं; हम त्याग, करुणा और प्रेम के माध्यम से अपने चारों ओर सद्भाव स्थापित करते हैं।

‘ईश्वर ने सृष्टि में आनंद के पर्याप्त अवसर दिए हैं। लेकिन उन्हें साझा करना होगा और आनंद लेना होगा। आप इसमें केवल अपना हिस्सा पाने के हकदार हैं।’

– श्री सत्य साई (22 मई 2000) ।

सूखे क्षेत्र में जल चक्र एक उत्कृष्ट उदाहरण है। हर गर्मियों में, अरबों टन समुद्री जल वाष्प में बदल जाता है; हवा बादलों को हज़ारों किलोमीटर दूर ले जाती है और सूखी ज़मीन पर बारिश और बर्फ़ गिराती है। जैसे ही पानी नदियों और नालों के माध्यम से बहकर समुद्र में मिल जाता है, कई सभ्यताएँ नदियों के किनारे समृद्ध होती हैं। इस प्रकार, पारिस्थितिकी तंत्र में परस्पर निर्भरता है; प्रकृति में उद्देश्य की एकता है। आधुनिक विज्ञान वैयक्तिक चेतना को ब्रह्माण्डीय चेतना से संबंधित बताता है।

बाबा ने कहा है, ‘मैंने स्वयं को स्वयं से अलग कर लिया ताकि मैं स्वयं से प्रेम कर सकूंँ।’ सृजन के इस सत्य में प्रेम वह ऊर्जा है, जो सभी पांँच तत्वों को एक साथ बांँधती है। प्रेम वह गोंद है जो सभी परमाणुओं को एक साथ जोड़कर रखता है, ग्रहों को उनके कक्ष में रखता है, एक व्यक्ति को दूसरे की ओर आकर्षित करता है। इस अर्थ में, संपूर्ण सृष्टि प्रेम की दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण है, जो प्रकृति के सभी तत्वों तथा गुणों को जोड़ती और बांँधती है। वे पूर्ण अनुशासन, धर्म का पालन करते हैं और इस तरह प्रकृति में हमेशा शांति रहती है। जब सृष्टि सहज अनुशासन के परिणामस्वरूप अंतर्निहित शांति प्रदर्शित करती है, तो अहिंसा व्याप्त होती है।

सभी इस बात से सहमत होंगे कि प्रकृति, बिना किसी व्यवधान के, व्यवस्था, सद्भाव और शांति का एक आदर्श उदाहरण है। हम भूमि के बड़े भूभाग को प्राकृतिक भंडार या अभ्यारण्य के रूप में अलग रखते हैं जहाँ प्रकृति प्रचुर मात्रा में अपनी सुंदरता व अखंडता प्रदर्शित करती है। प्रकृति के संसाधनों में आंतरिक शांति, सद्भाव और सुंदरता है। पहाड़ और नदियाँ, जानवर तथा पौधे का साम्राज्य, एक दूसरे को कायम रखते हैं। मांसाहारी जानवर भी तब तक हत्या नहीं करते जब तक वे भूखे न हों। इस प्रकार, धर्म सजीव और निर्जीव जगत के विभिन्न घटकों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने वाला विधान बन जाता है।

और अधिक विस्तार से कहें तो, प्रकृति में ये पंच तत्व अपनी अबाधित अवस्था में सृष्टि में अंतर्निहित मूल्यों की पूर्ण अभिव्यक्ति के कारण पूर्ण सामंजस्य और संतुलन में हैं। प्रकृति अपनी प्राचीन महिमा में पांँच प्रमुख मूल्यों के माध्यम से अनेकता में एकता को प्रकट करती है।

  • प्रेम समस्त सृष्टि का आधार है।
  • मूल्य सम्पूर्ण प्रकृति में अन्तर्निहित हैं।
  • गुण और इंद्रियाँ हमें प्रकृति के संसाधनों का अनुभव करने के लिए दी गई हैं।
  • खुशी और आनंद प्राप्त करने के लिए इंद्रियों का उपयोग संयमित रूप से करना होगा।
  • प्रकृति में पांँच तत्वों का संतुलन वैश्विक शांति सुनिश्चित करता है।

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