भारत में होली का पर्व

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भारत में होली का पर्व

होली का त्यौहार, जिसे रंगों का त्यौहार भी कहा जाता है, कई पौराणिक आख्यानों से जुड़ा हुआ है। यह वसंत ऋतु के आगमन की खुशी में मनाया जाता है, साथ ही इस पर्व को मनाने के पीछे नयी फसल के लिए धन्यवाद का भाव भी होता है।

इस प्रकार यह त्यौहार रंगों, खुशी और कृतज्ञता की प्रार्थना का प्रतीक है। होली भी हमारे लिए एक समय है जब हम प्रकृति के सान्निध्य में अपनी स्वयं की प्रकृति से रूबरू होते हैं और उसे खिलने का अवसर देते हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में होली मनाने के कुछ अनूठे तरीके यहाँ दिए गयें हैं।

गुजरात

गुजरात में, होली दो दिवसीय त्यौहार है। पहले दिन की शाम को लोग अलाव जलाते हैं। लोग कच्चे नारियल और मकई को अग्नि को अर्पित करते हैं।

दूसरे दिन रंग या “धुलेटी” का त्यौहार है, जिसे रंगीन पानी छिड़ककर और एक दूसरे को रंग लगाकर मनाया जाता है।

गुजरात के एक तटीय शहर द्वारका में होली का उत्सव द्वारकाधीश मंदिर में मनाया जाता है और शहर में हास्य एवं संगीत समारोहों का आयोजन किया जाता है।

पश्चिमी भारत में, गुजरात के अहमदाबाद शहर में छाछ का एक बर्तन सड़कों पर लटका दिया जाता है। युवा लड़के एक मानव पिरामिड बनाते हैं और उस तक पहुंचने और उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं। लड़कियाँ कृष्ण और ग्वाल बालों के मनुहार में उन पर रंगीन पानी फेंक कर उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं। लड़कियाँ गोपियों के रूप में काम करती हैं जो कृष्ण और ग्वाल बालों को रोकने की कोशिश कर रही हैं। जो लड़का अंततः मटकी फोड़ने में सफल हो जाता है, उसे होली किंग का ताज पहनाया जाता है।

कानपुर

यहाँ, होली सात दिनों तक रंग के साथ मनाई जाती है। अंतिम दिन, गंगा मेला या होली मेला मनाया जाता है जो एक भव्य मेला है। यह एक अनूठा मेला है क्योंकि इसकी शुरुआत स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी जिन्होंने नाना साहेब के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता संग्राम किया था। यह उन हिंदुओं और मुसलमानों की एकता का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने अंग्रेजों से एकजुट होकर लड़ाई लड़ी।

गोरखपुर

उत्तर प्रदेश के इस उत्तर-पूर्वी जिले में, होली एक विशेष पूजा से शुरू होती है और इस दिन को “होली मिलन” कहा जाता है। यह वर्ष का सबसे रंगीन दिन माना जाता है और लोगों के बीच प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देता है। लोग हर घर में जाते हैं और होली के गीत गाते हैं एवं रंग-गुलाल लगाकर उनका आभार व्यक्त करते हैं।

उत्तराखंड

उत्तराखंड में होली में संगीतमय सम्‍मेलन का आयोजन होता है। लोग कर्णप्रिय मधुर मस्ती भरे अध्यात्मिक पुट लिए गीत गाते हैं। ये गीत अनिवार्य रूप से शास्त्रीय रागों पर आधारित होते हैं। होली पर उपयोग किए जाने वाले रंग प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं और फूलों के अर्क, राख और पानी से बनते हैं।

बिहार / झारखंड

यहाँ होली को स्थानीय भोजपुरी बोली में फगवा के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर ऊँचे स्वरों में लोक गीत गाए जाते हैं और लोग ढोलक की थाप पर नाचते हैं।

ओडिशा

ओडिशा के लोग होली के दिन “डोल” मनाते हैं। जगन्नाथ के देवताओं को डोल मेलाना नामक एक जुलूस में ले जाया जाता है। यहाँ 1560 से पहले ही “डोल यात्रा” का प्रचलन था, जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ “डोलमंडप” पर ले जायी जाती थीं। इस अवसर पर लगभग 64 लोग देवताओं को नैसर्गिक रंग चढ़ाते थे। इसके बहुत बाद ही होली का त्यौहार मनाना शुरू हुआ।

पश्चिम बंगाल

इस क्षेत्र में होली को “डोल जात्रा”, “डोल पूर्णिमा” या “झूला उत्सव” के नाम से जाना जाता है।

इस अवसर पर भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों को एक पालकी में रखकर शहर या गाँव की मुख्य सड़कों पर घूमते हैं। छात्र भगवा रंग या शुद्ध सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों की सुंदर माला पहनते हैं। वे संगीतमय वाद्ययंत्रों की संगत में गाते हैं और नृत्य करते हैं, जैसे एकतारा, वीणा आदि। भक्तगण बारी-बारी से वाद्य बजाते हैं और महिलाएं भक्ति गीत गाते हुए, नाचती हैं। पुरुष उन पर रंग और गुलाल का वर्षाव करते हैं।

गोवा

कोंकणी में होली को उकुली कहा जाता है। यह गोसरीपुरम मंदिर के आसपास मनाया जाता है।

यह मुख्य रूप से कोंकणी में सिग्मो के रूप में प्रचलित वसंत त्यौहार के हिस्से के रूप में मनाया जाता है। इस होली के उत्सव में देवता को रंग अर्पण करना भी सम्मिलित है।

महाराष्ट्र

यहाँ, होली पूर्णिमा को शिमगा के रूप में भी मनाया जाता है और यह त्यौहार पांच से सात दिनों तक रहता है।

युवा वर्ग जलाऊ लकड़ी और पैसा इकट्ठा करते हैं। शिमगा के दिन, जलाऊ लकड़ी प्रत्येक पड़ोस में एक विशाल ढेर के रूप में एकत्रित की जाती है। शाम को, आग जलाई जाती है। हर घर से अग्नि देवता के सम्मान में भोजन और मिठाई लायी जाती है। पूरन पोली इस अवसर का मुख्य पकवान है और बच्चे “होली रे होली पुरणाचि पोली” चिल्लाते हैं। शिमगा सभी बुराई को खत्म करने का जश्न मनाता है। शिमगा के पांच दिन बाद यहां रंग उत्सव रंग पंचमी के दिन होता है। इस त्योहार के दौरान, लोग हर प्रतिद्वंद्विता को भूलने और माफ करने के लिए प्रयत्न करते हैं और सभी के साथ नए स्वस्थ संबंध शुरू करते हैं।

मणिपुर

यहाँ, रात में युवा लामता (फाल्गुन) की पूर्णिमा की रात थगबल चोंगबा नामक एक समूह लोक नृत्य करते हैं। परंपरागत रूप से यह लोकगीत और देशी ढोल की तालबद्ध ताल के साथ हुआ करता था।

कर्नाटक

कर्नाटक के सिरसी में, होली को “बेदरा वेशा” नामक एक अद्वितीय लोक नृत्य के साथ मनाया जाता है, जो वास्तविक त्यौहार के दिन से पांच दिन पहले शुरू होने वाली रातों के दौरान किया जाता है।

जम्मू और कश्मीर

गर्मियों की फसल की कटाई की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए होली उत्सव एक अति उत्साहपूर्ण त्यौहार है। लोग रंगीन पानी और गुलाल फेंककर जश्न मनाते हैं तथा जी भरकर गायन और नृत्य करते हैं।

पंजाब और हिमाचल प्रदेश

पंजाब में होली के दौरान, ग्रामीण घरों की दीवारों और आंगनों को दक्षिण भारत में रंगोली के समान चित्रों से सजाया जाता है। इस कला को पंजाब में चौक-पुराना के रूप में जाना जाता है और आमतौर पर राज्य की किसान महिलाओं द्वारा किया जाता है। आंगन में, यह कला कपड़े पर खींची जाती है। कला में पेड़ के रूपांकनों, फूलों, फ़र्न, लता, पौधों, मोर, पालकी, रेखीय स्वरूप की आकृतियों के साथ-साथ ऊर्ध्वाधर, क्षैतिज और तिरछी रेखाएं शामिल होती हैं। ये कलाएँ वसंत के आगमन का प्रतीक हैं।

होली के दौरान लोक नाट्यों का भी प्रदर्शन किया जाता है जिसे नौटंकी के नाम से भी जाना जाता है।

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