एक अच्छा पड़ोसी
एक अच्छा पड़ोसी
हम जानते हैं कि रंग-रूप के आधार पर संसार में भिन्नता है| कुछ स्थानों पर मनुष्य काले, और सांवले रंग के दिखाई देते हैं| कहीं कहीं श्वेत वर्ण के| यह भिन्नता जन्मगत होती है|
रंग के आधार पर क्या कोई किसी से श्रेष्ठ बन जाता है? क्या हम ऐसा सोच सकते हैं कि एक श्वेत वर्ण वाला व्यक्ति, श्याम रंगवाले से श्रेष्ठ है? इस विषय में तुम्हारे क्या विचार हैं?
यदि हम श्रेष्ठ उपदेशक ईसा मसीह के उपदेश सुनेंगे तो हमें, सबसे एक समान स्नेह या प्रेम करने का ज्ञान प्राप्त होगा| “एक मनुष्य किस देश से आया है या उसका रंग कौन सा है? इस आधार पर प्रेम प्रगट करने में फर्क नहीं होता | हमें सब प्रकार के मनुष्यों को प्रेम से देरवना है|” इसे ही ईसा मसीह ने सिखाया|
इस पर उस युवक ने एक रटा-रटाया जवाब दिया, “भगवान की आज्ञा है कि तुझे अपने भगवान को हार्दिक रुप से प्यार करना है| तुम्हारे पड़ोसी को खुद के समान प्यार करना है|
ईसा मसीह ने कहा, “तुमने सही जवाब दिया है| इसी से तुम संसार में अमर रहोगे|”
पर वह मनुष्य किसी को प्यार करना नहीं चाहता था| ईसा मसीह से उसने पूछा, “असल में पड़ोसी कौन है?” सचमुच पड़ोसी माने कौन? युवक चाहता था कि “तुम्हारा दोस्त ही तुम्हारा पड़ोसी है”- ऐसा ईसा मसीह कहें|
उसके समाधान के लिए ईसा मसीह ने एक छोटी कहानी बताई| वह एक युवक और एक समरिटन के बारे में कहानी थी|
एक बार एक व्यक्ति जेरूसलेम नगर जा रहा था। मार्ग में, अचानक चोरों ने उस पर आक्रमण किया। उसे नीचे गिराकर उसके पैसे और वस्त्रों को छीन लिया| लुटेरों ने उस व्यक्ति को मार मारकर अधमरा कर दिया| उसको ऐसे ही रास्ते में छोड़कर, चोरी किए चीजों को साथ लेकर वे चले गए|
उसी रास्ते से एक पादरी जा रहे थे| उन्होंने उस घायल व्यक्ति को देखा, किन्तु बिना रुके, उसे अनदेखा करके वे वहाँ से चले गए| उन्होंने उसकी कोई मदद नहीं की|
थोड़ी देर बाद वहाँ से कुछ अन्य लोग भी निकले| वे लेविटे जाति के,जेरुसेलम मन्दिर में काम करने वाले लोग थे, ईश्वर में आस्था रखने वाले| परंतु फिर भी वे उस घायल व्यक्ति की मदद के लिए नहीं रुके| उन्होंने भी पादरी के समान ही व्यवहार किया| इसे उचित कार्य कैसे कह सकते हैं|
एक दिन, एक युवक ने आकर ईसा मसीह से एक जटिल प्रश्न किया| उसने सोचा कि ईसा मसीह उसका जवाब नहीं जानतें हैं| उसका प्रश्न था कि संसार में अमर रहने केलिए मुझे क्या करना चाहिए| उस महान गुरू के लिए यह तो एक साधारण प्रश्न था| पर उसका जवाब न देकर उन्होने उससे ही प्रति प्रश्न किया कि हमें क्या करना चाहिए|
अन्त में एक समरिटन उस रास्ते से गुजरा। उसने उस घायल पड़े हुए यहूदी को देखा। प्रायः, समरिटन और यहूदी आपस में मेल-मिलाप नहीं रखते|
क्या अभी जो समरिटन आया वह भी उस घायल यहूदी व्यक्ति की मदद किए बिना चला जाएगा? क्या वह स्वयं से ऐसा कहेगा कि मुझे क्यों किसी एक यहूदी की मदद करना है?
मेरी ऐसी स्थिति होने पर वह मेरी मदद करेगा या नहीं?”
किन्तु यह समरिटन ऐसा नहीं था| उसने रास्ते में पड़े हुए घायल को जाकर देखा| उसे देखकर वह संवेदनशील हो उठा| वह उसको ऐसी स्थिति में ऐसे ही मरने नहीं देगा| समरिटन अपने ऊँट से नीचे उतरा| उसने घायल व्यक्ति के घाव पोंछे। उस पर तेल और द्राक्ष रस डाला। ये ज़ख्म ठीक करने में सहायक होते हैं|
फिर घावों को कपड़े से बाँधा तथा घायल यहूदी को धीरे से उठाकर ऊँट के ऊपर बिठा लिया। दोनों धीरे-धीरे जाने लगे|
चलते-चलते वे दोनों एक भोजन शाला के सामने आकर खड़े हो गए। वहाँ एक कमरा लेकर उसने उस यहूदी युवक की ठहरने की व्यवस्था की| स्वयं भी उसके साथ प्रेम पूर्वक रुका|
प्रभु यीशु ने इस घटना का वर्णन कर, पास में बैठे प्रश्नकर्त्ता से पूछा, “रास्ते पर आए तीनों में, तुम्हारी दृष्टि में कौन अच्छा पड़ोसी है?
उसका जवाब क्या होगा? वह पादरी है? उसके बाद आया लेविटे है? या अन्त में आया समरिटन है?
उस आदमी ने तुरन्त जवाब दिया “समरिटन ही अच्छा पड़ोसी है| क्योंकि उसने घायल की, न केवल मदद की, बल्कि बाद में भी उसकी देखरेख की|
ईसा मसीह ने कहा, “तुमने ठीक ही कहा है| इसलिए तुम भी जाकर ऐसी मदद करके आओ|”
यह कहानी स्पष्ट रूप में समझाती है कि कौन हमारा वास्तविक पड़ोसी है| हमारे पड़ोसी माने सिर्फ हमारे दोस्त ही नहीं हैं| हमारे देशवाले ही नहीं हैं| विश्व के समस्त् लोग हमारे पड़ोसी ही हैं|
इसलिए, जब भी तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति दिखे जिसे तुम्हारी मदद की आवश्यकता है, तो तुरंत उसकी सहायता करो| चाहे वह किसी भी देश का वासी हो, उसका रंग तुमसे भिन्न क्यों न हो| उसे तुम्हारा आश्रय चाहिए, इसे मन में रखकर बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी सहायता करो| अगर तुम सहायता करने में असमर्थ एक छोटे बालक हो तो, एक पुलिस को या एक अध्यापक को सहायता के लिए बुला लो| तब वह भी समरिटन द्वारा की गई सहायता की जैसी हो जाएगी |
इस प्रकार प्रभु ने सबसे प्रेम पूर्ण व्यवहार करने की आज्ञा दी है| ईश्वर भी हमें प्यार करते हैं|
प्रश्न:
- नौजवान ने कौन-सा प्रश्न किया?
- भगवान का कानून क्या है?
- यात्रा पर गए यहूदी को क्या हुआ?
- क्या उस पादरी का व्यवहार सही था?
- क्या समरिटन का काम ठीक था?
- कौन हमारा अच्छा दोस्त है?
- क्यों वह अच्छा पड़ोसी कहा गया?