प्राणीमात्र के प्रति दया
प्राणीमात्र के प्रति दया
जो व्यक्ति छोटे बड़े सभी प्राणियों से उत्कृष्ट प्रेम कर सकता है, वही सर्वोत्तम प्रार्थना करता है। इसका कारण है कि जो परमेश्वर हमसे प्रेम करता है वही सबकी सृष्टि करता है और सबसे प्रेम करता है। सभी महान व्यक्तियों ने प्राणियों से दया व प्रेम का व्यवहार किया है। ऐसे दो विशेष व्यक्तियों के उदाहरण इस सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य हैं, दक्षिण भारत के श्री रमण महर्षि तथा अँग्रेज वैज्ञानिक सर आइजेक न्यूटन।
श्री रमण महर्षि का प्रेम केवल उनके निकटस्थ अथवा दूरस्थ भक्तों के लिए ही नहीं था अपितु उनके प्रेम से पशु पक्षी भी आकर्षित होते थे। उनका आश्रम कुत्ते, गिलहरी, गाय, बन्दर, मोर तथा अन्य पशु-पक्षियों का घर था। उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए आने वाले लोगों के प्रति उनका जितना प्रेम था उतना ही प्रेम तथा ध्यान वे जानवरों पर भी देते थे। किसी भी जानवर का उल्लेख वे नपुंसक लिंग में नहीं करते थे, किंतु हमेशा वे उन्हें स्त्री लिंग अथवा पुल्लिंग के प्रतीकों का सम्बोधन देते थे। “आज बच्चों को भोजन दिया क्या ?” ऐसे प्रेम भरे शब्द वे कुत्तों के लिए बोलते थे। आश्रम का यह नित्य नियम था कि भोजन के समय पहले कुत्तों को भोजन दिया जाता था, फिर भिखारियों को और सबसे अंत में भक्तों का भोजन होता था। एक बार एक बन्दरिया अपने बच्चे को लेकर महर्षि के पास आयी। भक्तों ने उसे भगा देने का प्रयत्न किया क्योंकि उन्हें लगा कि उसके कारण प्रार्थना मन्दिर की शांति भंग हो जाएगी। किंतु महर्षि बोले, “उसे आने दो, उसे मत रोको। वह भी तुम्हारे समान अपनी बच्ची को मुझे दिखाने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मेरे पास आयी है।”
आश्रम में एक गाय थी। महर्षि ने उसका नाम ‘लक्ष्मी’ रखा था। भक्तों की भीड़ में किसी भी तरफ ध्यान न देकर वह सीधे महर्षि के पास जाया करती थी। उसे यह विश्वास था कि, महर्षि ने उसके लिये केले अथवा अन्य फल तैयार रखे होंगे। सभी आश्रमवासियों के लिए वह सबसे प्यारी प्राणी हो गयी थी। लक्ष्मी ने महर्षि के जन्मदिन के अवसर पर तीन बछड़ों को जन्म दिया था। समय के साथ लक्ष्मी बूढ़ी हुई, बीमार हुई और उसका अंतिम समय आता दिखाई पड़ने लगा। उसी समय महर्षि उसके पास गये और बोले- “हे माता! क्या तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे पास बैठूँ?” ऐसा कहकर वे उसके पास बैठ गये। उसका सिर अपनी गोद में रखा, एक हाथ उसके मस्तक पर रखा और दूसरे हाथ से उसे दुलारने लगे। उसके थोड़ी देर बाद ही लक्ष्मी ने प्राण त्याग दिये| मनुष्य की तरह ही उसका सम्पूर्ण दाहसंस्कार किया गया और उसकी समाधि वहीं बनाई गई, जहाँ आश्रम के परिसर में ही एक कौआ, एक हिरण और एक कुत्ते को दफनाया गया था। उसकी समाधि के पास एक चौकोर पत्थर रखा गया और उस पर लक्ष्मी के समान दिखने वाली गाय की मूर्ति स्थापित की गई। ऐसा था महर्षि का जानवरों के प्रति दया, प्रेम तथा आदर का भाव।
प्रश्न:
- इस उदाहरण में रमण महर्षि ने भक्तों को क्या सिखाया?
- उन जानवरों की मृत्यु के पश्चात उनकी समाधि क्यों बनवाई गयी?
- जानवरों के प्रति मनुष्य के प्रेम का कोई अन्य उदाहरण विस्तार में लिखो, जिसे तुमने देखा सुना अथवा पढ़ा हो।