रूप अनेक हैं – ईश्वर एक है
रूप अनेक हैं – ईश्वर एक है
ईश्वर की विभिन्न संज्ञाओं के अर्थ
ॐ – अपरिवर्तनीय, शाश्वत, सार्वभौमिक, सर्वोच्च ईश्वर का श्रव्य प्रतीक।
तत् – वह जो ऐंद्रिक अनुभूति, मानसिक कल्पना और बौद्धिक जिज्ञासा से परे है, यानी, तीनों से परे है।
सत् – वह सत्य जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है, और जो संपूर्ण सृष्टि को धारण और व्याप्त करता है। ओम तत् सत् वेदांत दर्शन का सार है।
श्री – लक्ष्मी या धन, प्रतिष्ठा, वैभव, तथा धार्मिक रीतियों से अर्जित शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
नारायण – ”सर्वभूतान्तर्यामि” – नर रूप में प्रकट होने वाले भगवान को नारायण कहा जाता है।
जब जनमानस श्रेष्ठ विचारों के साथ एकत्रित होते हैं, तो उन्हें नारायण की शक्ति प्राप्त होती है और कठिन कार्य भी पूरे हो जाते हैं।
‘नारायण’ यह शब्द दो शब्दों की संधि है। “नीर + अयन = नीर – जल, अयन नेत्र”। जल पर विश्राम करने वाले नारायण, वह आनंद स्वरूप भगवान हैं, परमानंद का स्वरूप, जिसका अनुभव करने पर खुशी के आंँसू आ जाते हैं। जब कोई उस स्थिति का अनुभव करता है, तो वह भगवान नारायण का अनुभव करता है।
पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम, ‘राग’ और ‘द्वेष’ से मुक्त, सर्वाधिक श्रेष्ठ व्यक्ति, सबसे प्रमुख और प्रथम जो भ्रम और संदेहों के दायरे से परे रहता है। वह पुरूषोत्तम है।
गुरू – स्वयं पूर्ण होकर ही दूसरों को पूर्णता की ओर ले जाने में सक्षम व्यक्ति गुरू होता है। गुरू दत्तात्रेय के अनुयायियों के बीच यह ईश्वर के लिए एक पदवी है। उपदेशक (गुरू) जो आत्मा को प्रकट करता है और व्यक्ति को उसके वास्तविक स्वरूप के प्रति सचेत करता है। उसका सिख पूजा पद्धति में सर्वोच्च स्थान है। गुरू की शिक्षाओं का संग्रह – जिसे ग्रंथ साहिब कहा जाता है, सिखों द्वारा प्रशंसित और पूजनीय है।
सिद्ध – अनुभूत, जैन पंथ का सर्वोच्च लक्ष्य।
बुद्ध – जागृत व्यक्ति, बौद्ध पंथ का लक्ष्य।
स्कंद – पूर्णता के रास्ते में आने वाले दोषों को दूर करने वाला। दक्षिण भारत में एक पंथ भगवान को ‘स्कंद’ नाम से संबोधित करता है।
विनायक – भगवान गणेश का नाम जो उनके उपासकों को बहुत प्रिय है।
सविता – सूर्य जो सबमें क्रियाशीलता अथवा ऊर्जा का संचार करता है। कुछ लोग भगवान के प्रतिनिधि के रूप में सूर्य की पूजा करते हैं।
ईश्वर का अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा और अन्य सभी रूपों में सार्वभौमिक अस्तित्व है। वह अग्नि है जो सबको प्रकाशित करती है। वह वर्षा है जो पौधों को पोषण देती है और जीविका प्रदान करती है। इसलिए उन्हें अग्नि (अग्नि देव) या वायु (पवन देव) या वर्षा (वरुण) के रूप में पूजा जा सकता है क्योंकि उन्होंने कृपापूर्वक इन सभी कल्याणकारी रूपों को धारण किया है।
पावक – अग्नि, पारसी लोग ईश्वर के प्रतिनिधित्व के रूप में अग्नि की पूजा करते हैं।
ब्रह्म – सर्वव्यापक, निराकार, निर्गुण सत्य जिससे संपूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है और जिसमें यह पुनः विलीन हो जाती है।
मज़्द – अहुर मज़्द। पारसी धर्म में ईश्वर के लिए पदवी।
यह्व – जेहोवा – यहूदी धर्म में ईश्वर का नाम।
शक्ति – शक्ति उपासकों द्वारा भगवान की पूजा काली, चंडिका, महिषासुर मर्दिनी आदि रूपों में की जाती है।
येशु पिता – ईसाई धर्म में प्रभु यीशु ने परमेश्वर को स्वर्ग में हमारा पिता बताया।
प्रभु – सर्वोच्च भगवान।
रुद्र – शैव मत में ईश्वर को संबोधित नाम जो आपको संसार के बंधनों में बांधता है और जब आप उसके प्रति समर्पण करते हैं तो मुक्त भी करता है।
विष्णु – सर्वव्यापी सार्वभौमिक चेतना।
राम – धर्म का अवतार।
कृष्ण – प्रेम का अवतार।
रहीम – दयालु। इस्लाम धर्म में ईश्वर का संबोधन।
ताओ – ईश्वर को चीनी ताओ कहकर संबोधित करते हैं।
वासुदेव – जो सभी प्राणियों में वास करते हैं, वैष्णव उस ईश्वर को वासुदेव के नाम से बुलाते हैं। गो – गाय – ईश्वर की प्रकाशमान शक्ति।
गो – रक्षा ब्राह्मण पंथ का आह्वान करती है।
विश्वरूप – गीता का कथन है कि हम संसार में जो कुछ भी देखते हैं, उसमें सर्वत्र कृष्ण आत्मरुप में व्याप्त हैं। यह भगवान ही है जो मनुष्य को आदेश देते हैं कि वह राग और द्वेष से मुक्त हो और समस्त मानव जाति को एक एकीकृत दृष्टि से देखे।
चिदानन्द – आत्मा, उस परम सत्ता की सबसे सच्ची प्रतिनिधि है। यह सत्-चिद-आनंद अर्थात् शाश्वत, आनंदमय, चैतन्य स्वरूप है।
अद्वितीय – एकमात्र वास्तविकता जो इस बहुलता का आधार है। जैसे सरसों में तेल, दूध में मक्खन, धरती में पानी, लकड़ी में आग, ईश्वर मौजूद है लेकिन दिखाई नहीं देता।
अकाल – सिख धर्म के अनुसार जो समय से परे है।
निर्भय – भयरहित, जो अपने भक्तों को भी निर्भय बना देती है।
आत्म लिंग – आत्मा सर्वोच्च देवत्व का प्रतीक है।
शिव – मंगलकारी। उपरोक्त दोनों शैव पदवी हैं।
सत्य साई संगठन का सर्व धर्म प्रतीक ‘सभी धर्मों के सामंजस्य’ का प्रतीक है। सभी धर्मों की एकता और सभी दृष्टिकोणों की स्वीकृति।