नाग महाशय
नाग महाशय
नाग महाशय का चरित्र अहिंसा के सन्मार्ग पर चलनेवाले व्यक्तित्व के रूप में एक जीता-जागता उदाहरण है| “हिंसा न करना श्रेष्ठ गुण है”, इस तथ्य का उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक पालन किया था|
नाग महाशय किसी भी जीवजंतु को पीड़ित नहीं देख सकते थे| उनके घर के पीछे एक छोटा-सा तालाब था, जिसमें हर वर्ष बाढ़ के जल द्वारा प्रवाहित अनेक मछलियों के दल आकर समा जाते थे|
एक दिन एक मछुआरा, उस तालाब में मछली पकड़ने आया| और फिर नियमानुसार, तालाब के स्वामी नागमहाशय को उनके हिस्से की मछलियाँ देने आया| टोकरियों मे जीवित रहने के लिये मछलियों को तड़पता देखकर नागमहाशय दुःखी हो गये| उन्होंने तुरंत मछुआरे द्वारा माँगी गई रकम, उसको देकर उन मछलियों को वापस तालाब में छोड़ दिया|
दूसरे दिन एक दूसरा मछुआरा, पासवाले तालाब से मछली पकड़कर, बेचने के उद्देश्य से उनके यहाँ आया| इस बार नाग महाशय ने सभी मछलियों को खरीदकर वैसे ही तालाब में छोड़ दिया| उसके ऐसे अनूठे कार्य को देखकर मछुआरा स्तम्भित रह गया| मछुआरा, मछली के दाम और खाली टोकरियाँ, लेकर दूसरे ही क्षण, पागल को देखो कह कर, तेजी से वहाँ से भाग गया| फिर कभी वह नाग महाशय की सीमा में, अपने जीवन काल में नहीं गया|
अहिंसा-धर्म का पालन करने में वे बहुत दृढ़ थे| एक विषैले सर्प को भी वह मारने नहीं देते थे। एक बार एक विषैला सर्प उनके घर के बाग में, दिखाई दिया| सब लोग उसे देखकर डर गए| उनकी पत्नी भी उसे मारने को बार-बार कहती रही, पर नाग महाशय नहीं माने| नाग महाशय ने स्पष्ट किया, “वन में रहनेवाला यह सर्प ज्यादा विषैला नहीं है, जो मनुष्य के जीवन के लिए खतरनाक है, बल्कि मनुष्य के मन में रहनेवाले बुरे विचार रूपी विषैले सर्प ही मनुष्य के लिए जानलेवा हैं” फिर हाथ जोड़कर उस सर्प के समक्ष जाकर कहा, “आप मनसा देवी का दृष्टिगोचर होनेवाले अवतार हैं, आपका वासस्थान जंगल है, मेरी साधारण झोपड़ी को छोड़कर आपको अपने श्रेष्ठ स्थान जाना चाहिए, आपकी बहुत कृपा होगी|” वह सर्प आश्चर्यजनक रूप में, अपना फन नीचे करके उनके कहे अनुसार जंगल की ओर चला गया|
नाग महाशय अक्सर सबको उपदेश देते थे “बाहरी दुनिया तुम्हारे मन के प्रतिबिंब का ही चल-चित्र है| उस चल चित्र को अगर तुम संसार को देते हो तो, संसार से उसे ही वापस प्राप्त करते हो। वह तो एक दर्पण में, अपने आपको देखने जैसा प्रतिबिंब है| दर्पण में, जैसा तुम्हारा मुख होगा, ठीक वैसा ही दर्पण प्रतिबिंबित करता है न?” वैसे ही हमारे विचार के अनुसार हमारे कर्म होते हैं|
प्रश्न:
सभी जीवजंतुओं के प्रति नाग महाशय के प्रेम का वर्णन करो।