प्रार्थना

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प्रार्थना

प्रार्थना में प्रेम के मूल्य का संकेत दिया गया है| उसमें एक बालक की ईश्वर भक्ति दर्शायी गयी है, तथा यह दिखाया गया है कि मन से की गई प्रार्थना का प्रतिफल परमात्मा किस प्रकार देते हैं| वस्तुतः जिस प्रकार हम अपने माता-पिता या प्रिय व्यक्ति से वार्तालाप करते हैं, उसी प्रकार प्रार्थना परमेश्वर से किया गया प्रेमपूर्ण प्रामाणिक सम्भाषण है|

किरण अपने माता-पिता का एकमात्र पुत्र था| वह अज्ञाकारी था तथा घर में और पाठशाला में सद्-व्यवहारी था| अपने मधुर और आनन्ददायक व्यवहार से उसने सभी बुजुर्गों और शिक्षकों का प्रेम प्राप्त किया था| किरण यद्यपि केवल दस वर्ष की उम्र का था, किंतु उसे इस बात का ज्ञान था कि उसके माता-पिता क्या करते हैं? उसके पिता जिला न्यायाधीश और अपने न्याय के लिए सुविख्यात थे, उसकी माँ परमात्मा की अनन्य भक्त तथा अत्यंत दयालु और परोपकारी थीं| किरण अपने माता-पिता से बहुत प्रेम करता था और इस बात का उसे गर्व भी था किंतु उसके माता-पिता परमात्मा को इतना महत्व क्यों देते हैं, तथा उनकी इतनी सेवा क्यों करते हैं? यह बात उसकी समझ से परे थी|

वह हमेशा अपनी माँ से पूछा करता था- “माँ पिताजी एक अनपढ ग्रामीण की तरह प्रति रविवार को मन्दिर में जाकर वहाँ के सत्संग में भाग क्यों लेते हैं? रोज सुबह शाम तुम आँखे बन्दकर ध्यान करती हो, इससे तुम्हें क्या मिलता हैं? तुम प्रतिदिन अनेक मंत्रोँ का पाठ तथा प्रार्थना करती हो और इतनी देर तक दुर्गादेवी की पूजा करती रहती हो? तुम्हें अपने खाली समय का उपयोग अधिक उत्तम प्रकार से करना नहीं आता क्या?” किरण की माँ उत्तर देने के बजाय केवल मुस्कुरा देती| उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की, “माँ दुर्गे किरण अज्ञानी है, किंतु निष्पाप हैं| उसपर कृपा करें और उसे श्रद्धा भक्ति प्रदान करें|”

एक दिन सन्ध्या समय किरण पाठशाला से घर लौटा तो उसके पड़ोसियों ने उसे चौंकाने वाली खबर सुनाई कि, उसके पिता को एक तेज रफ्तार मोटर ने रास्ते में धक्का देकर गिरा दिया और वे सवेरे से अस्पताल में बेहोश पडे हैं| किरण जैसे ही अस्पताल जाने के लिये दौड़कर निकला कि उसकी दृष्टि दुर्गादेवी की उस मूर्ति पर पड़ी, जिसका सुन्दर फूलों से उसकी माँ ने श्रृंगार किया था| उसने अपनी माँ को बारम्बार यह कहते सुना था- “दुर्गादेवी शक्ति स्वरूपिणी माँ हैं, जगत-जननी हैं और सर्वशक्तिमयी हैं|”

किरण अश्रुपूर्ण नयनों से हाथ जोडकर मूर्ति के समीप आया और प्रार्थना की, “हे दुर्गा माँ तुम्हें ज्ञात है कि मैं पिताजी के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता| कृपा कर माँ और उनके प्राणों की रक्षा कर”| वह नमस्कार करने के लिये नीचे झुका तो उसने देवी के पैरों पर चढ़ाए गए लाल फूल उठा लिए और अस्पताल पहुँचा| थोड़े समय में किरण पिता के पास पहुँचा| बेहोश पिता को देखकर उसे रोना आया, किंतु जब उसने अपनी माँ की ओर देखा, तो उसका समस्त भय व चिंता गायब हो गया | माँ आँखे मून्दे ध्यानस्थ होकर प्रार्थना कर रही थी|

उनके मुख पर शांति व विश्वास की आशा थी| वह अत्यंत पवित्र दिख रही थी| किरण धीरे से माँ के पास पहुँचा और धीरे से बोला- “माँ, दुर्गामाता के चरण कमलों पर चढ़े ये फूल में पिताजी के लिए लाया हूँ”| जैसे ही माँ ने आँखे खोली, उन्होंने वे फूल पिताजी के माथे पर रख दिये| शीघ्र ही किरण के पिता के होश में आने के लक्षण दिखने लगे| डॉक्टर ने आकर किरण के पिता का परीक्षण किया और बोले- “खतरा टल गया है” इन्हें परमात्मा ने बचाया है| किरण की और उसकी माँ की प्रार्थना का उत्तर मिल गया था| इस अनुभव से किरण को बड़ी शिक्षा मिली| महीने भर बाद जब किरण के पिता अस्पताल से लौटे तो उन्होंने अपने पुत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन पाया| किरण अपनी माँ के साथ ध्यान में निमग्न रहता था, और छुट्टी के दिन उनकी पूजा में सहायता करता था| कभी-कभी वह पिता के साथ मन्दिर जाने लगा| शाला सम्बन्धी अध्ययन समाप्त करने के बाद वह स्वामी विवेकानन्द, ईसा मसीह और गौतमबुद्ध जैसे सत्पुरुषों के चरित्र का अध्ययन करने लगा| उसके ध्यान में यह बात आई कि श्रद्धा, भक्ति एवं प्रार्थना में रोग शमन की शक्ति होती है| उनके कारण हमारे हृदय में आशा, बल व धैर्य आता है| यह कथा हमें सन्मार्ग पर लाती है तथा हमारे अंतःकरण में शांति समाधान और आनन्द व्याप्त होता है|

प्रश्न:
  1. अपने शब्दों में एक अच्छे विद्यार्थी अथवा विद्यार्थियों का वर्णन करो|
  2. हमें श्रद्धा और विश्वास किसलिए चाहिए?
  3. तुम्हें क्या लगता है कि यदि किरण को परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए परमेश्वर की सहायता की आवश्यकता होती तो क्या होता? क्या उसे लगनपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होती?
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