सार्वजनिक स्थान

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शीर्षक: सबमें ईश्वर देखें।
व्यवस्थापन: सार्वजनिक स्थान (बाज़ार और मंदिर)
पात्र: रवि, अजीत, उनकी माँ तथा 2 भिखारी।
संबंधित मूल्य: देखभाल और साझा करना।
दृश्य:
माँ: चलो मंदिर में चढ़ाने के लिए कुछ मिठाइयाँ, फल और फूल खरीद लें। भगवान की कृपा से तुम दोनों अगली कक्षा में जा रहे हो।
(खरीदने के बाद वे मंदिर के गेट तक पहुंँचने ही वाले हैं कि एक गरीब महिला अपने बेटे के साथ दौड़ती हुई उनके पास आती है)
रवि: अरे! दूर जाओ। ये भगवान को अर्पण करने के लिये हैं।
(बेचारी महिला वहीं खड़ी है)
अजीत: तुम लोग अभी भी यहीं खड़े हो। मम्मी, देखो वे बस फलों को घूर रहे हैं। उन्हें विदा करो।
दोनों: हमने पूरे दिन खाना नहीं खाया है, तो हम बहुत भूखे हैं।
माँ:  ये फल ले लो।
दोनों: भगवान तुम्हें आशीर्वाद दें, अम्मा!
अजीत: मम्मी, आपने क्या किया?  फल मन्दिर के लिये मोल लिये, परन्तु उन्हें दे दिये। ऐसे ही भीख मांँगना उनकी आदत है।.
रवि: अपना वादा पूरा न करने के कारण भगवान हमसे नाराज होंगे।
माँ:  नहीं रवि, बल्कि भगवान हमसे खुश होंगे।
रवि:  खुश? मुझे ऐसा नहीं लगता। कैसे मम्मी?
माँ:  यदि हमने उनकी उपेक्षा की होती और ये फल मन्दिर में चढ़ा दिये होते तो हम उन्हें अप्रसन्न कर देते।
अजीत: लेकिन ऐसा क्यों?
माँ:  मान लो तुम रवि को अनदेखा कर दो और मुझसे कहो कि एक आइसक्रीम खाओ, तो क्या मैं खुश हो जाऊँगी?
अजीत: नहीं, आप तो हम पर नाराज़ होंगीं।
माँ:  बिलकुल. ईश्वर भी ऐसा ही है।  इसके अलावा वे दोनों बहुत भूखे लग रहे थे। याद रखना! हर एक में भगवान का वास है... हर किसी में भगवान को देखो।
रवि और अजीत: सच्ची माँ। अब हम समझ गए कि हर प्राणी में ईश्वर को कैसे देखा जाए।

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