पुरंदरदास

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पुरंदरदास

पुरंदरदास कर्नाटक में एक परिचित नाम है। उन्हें दक्षिण भारतीय संगीत शैली का पितामह माना जाता है। उन्होंने 4,75,000 कीर्तन (दिव्य गीतों) की रचना की। अपने एक कीर्तन में, संत कहते हैं, “केदार से लेकर पवित्र तीर्थस्थलों, रामेश्वर तक की यात्रा करते हुए, मैंने 4,75,000 कीर्तनों की रचना की है, जिनमें भगवान वासुदेव और उनके अवतारों की महिमा और मेरे आध्यात्मिक गुरु व्यासराय की महिमा शामिल है।” पुरंदरदास को कुछ रागों (धुनों) और स्वरों के आविष्कार का श्रेय भी दिया जाता है।

यह सर्वविदित है कि उनके गीतों ने प्रसिद्ध संगीतकार-संत त्यागराज को प्रेरित किया है। प्रत्येक दक्षिण भारतीय संगीतकार अपने गायन की शुरुआत पुरंदरदास की रचनाओं से करता है। संगीत के अलावा, उन्होंने जो साहित्य रचा, वह इतना समृद्ध और उत्कृष्ट था कि इसे आने वाले समय में भी याद किया जाएगा, पढ़ा जाएगा और अभ्यास किया जाएगा। सचमुच वह देश धन्य है, जिसने ऐसे महान संतों को जन्म दिया।

इस संत का जन्म 1480 (1484) ई. में पुणे से अठारह मील दूर पुरंदरगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। वरदप्पा नायक और कमला देवी वह दम्पति थे, जिन्हें पवित्र सात पर्वतों, तिरूपति के भगवान वेंकटेश्वर (विष्णु) की पूजा करने के बाद इस पुत्र का आशीर्वाद मिला था। उन्होंने उसका नाम महान भगवान श्रीनिवास के नाम पर रखा।

बालक की शिक्षा हो चुकी थी। उन्होंने संगीत और संस्कृत सीखी। उनका विवाह सरस्वतीबाई नामक एक कुलीन महिला से हुआ। परंतु हुआ यूंँ कि वह धन संचय करने में इतना मशगूल हो गया कि हर दिव्य गुण को भूल गया। जितना अधिक उसने संचय किया, वह उतना अधिक लालची होता गया। वह भगवान को भूल गया और सोने (धन)की पूजा करने लगा। उन्होंने कभी एक सिक्का भी नहीं छोड़ा और न ही किसी को कुछ दिया। उनकी पत्नी को भी कुछ भी देने की इजाजत नहीं थी। उन्होंने 9 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की और नवकोटि नारायण कहलाए।

हालाँकि, श्रीनिवास नायक के जीवन में जल्द ही एक बड़ा परिवर्तन आने वाला था। भगवान उनकी दुकान पर एक वृद्ध व्यक्ति के भेष में उनसे मिलने आये। उन्होंने उनसे अपने बेटे का जनेऊ संस्कार करने के लिए कुछ सिक्के देने की प्रार्थना की। लालची जौहरी ने वृद्ध व्यक्ति को बिना कुछ दिए यह कहकर भेज दिया कि वह अगले दिन आ सकता है। हर दिन, वह वृद्ध दुकान के द्वार पर दिखाई देता और वापस भेज दिया जाता। ऐसा करीब छह महीने तक हुआ. अब,उस वृद्ध ने एक और युक्ति सोची जिसके माध्यम से वह श्रीनिवास नायक का हृदय परिवर्तन कर सके।

जब सरस्वतीबाई घर में अकेली थी तब बूढ़ा व्यक्ति घर आया और उससे मदद करने का अनुरोध किया। जब बूढ़े व्यक्ति ने उससे अपनी हीरे की नथनी देने की प्रार्थना की, तो वह एक अच्छे कारण के लिए उसे नथनी उपहार में देने से खुद को नहीं रोक सकी। उस भले व्यक्ति ने उसे आशीर्वाद दिया और गायब हो गया।

नायक की दुकान के दरवाजे पर पहुँचकर बूढ़े व्यक्ति ने उसे हीरे की नथनी दी और उससे 400 सिक्के देने का अनुरोध किया। किंतु नायक सिक्के देने में झिझक रहा था। बूढ़ा व्यक्ति बिना कुछ लिए वहांँ से चला गया। नायक ने नथनी को सुरक्षित रूप से अपनी तिजोरी में रख दिया और दुकान में ताला लगा दिया। वह भागता हुआ घर आया और अपनी पत्नी से तुरंत हीरे की नथ दिखाने की मांँग की। वह दौड़कर पूजा कक्ष में गई और भगवान से उसकी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी।

प्रभु की ओर से कोई प्रतिक्रिया न देखकर उसने ज़हर का प्याला अपने होंठों से लगाया और उसे पीने ही वाली थी कि देखो! वह आश्चर्यचकित रह गई, जब उसने भगवान विट्ठल की अदृश्य अंगुली से जहर के प्याले में हीरे की नाक की अंगूठी गिरी देखी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह जल्दी से उस स्थान पर पहुंँची जहांँ उसका पति इंतजार कर रहा था, उसने हीरे की नथ उसे सौंप दी। उसने अपने शरीर से सारे आभूषण और गहने उतार दिए और कहा, “तुम कब तक सोने और धन का लालच करते रहोगे? जब मृत्यु आती है तो हमें खाली हाथ जाना पड़ता है। मुझे भगवान की कृपा के अलावा कुछ भी नहीं चाहिए।” ” ऐसा कहकर उसने अपने सारे आभूषण जमीन पर फेंक दिये।

नायक कुछ भी सुनने के लिए इंतजार नहीं कर सका। वह दुकान पर गया, दरवाज़ा खोला, अंदर प्रवेश किया और तिजोरी खोली। उसे बहुत आश्चर्य हुआ, जब उसे हीरे की नथ वहाँ नहीं मिली।

इस चमत्कार ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। वह असीम वेदना के साथ घर लौटा और अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा। उसने सिसकते हुए कहा, “सरस्वती, मैं वह अभागा हूंँ, जिसने सर्वशक्तिमान ईश्वर के साथ अन्याय किया है। मेरी गलतियांँ अक्षम्य हैं। मेरा सिर चकरा रहा है; मेरे हृदय को मानो किसी ने निचोड़ लिया है। तुम वास्तव में ऐसा त्याग कर धन्य हो। कृपया मुझे बताओ कि तुम्हें वह हीरे की नथ कैसे मिली, जो मैंने दुकान में बक्से में रखी थी? क्या तुमने वह अंँगूठी उस बूढ़े आदमी को दी थी? कृपया मुझे वह सब बताओ जो हुआ था।”

सरस्वती ने उसे सारा वृत्तांत बताया कि कैसे उसने हीरे की नथ उस वृद्ध को दीऔर उसके बाद वह कैसे अंतर्ध्यान हो गया। उसने कहा, “वह बूढ़ा व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि भगवान पांडुरंग थे।” यह सुनकर नायक अपना माथा पीट-पीटकर फूट-फूटकर रोने लगा। “ओह, मैं उन्हें दोबारा कब देख सकता हूंँ? मैं उस महान भगवान का अपमान करने में कितना पापी हूंँ, जो छह महीने तक बिना थके मेरी दुकान पर आए। मुझे क्या करना चाहिए? मैं उनके दर्शन कैसे प्राप्त कर सकता हूंँ?” वह लगभग अचेत हो गया।

वह उस स्थान पर बैठा, जहांँ सरस्वती ने अपनी हीरे की नथ भगवान को दी थी, जो एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में आए थे। वह और उसकी पत्नी दोनों ने गहरी भक्ति के साथ तीन दिनों तक उपवास और प्रार्थना की। महान ईश्वर ने सरस्वती को दर्शन दिए और कहा कि उनके पति को सब कुछ त्याग देना चाहिए और हरिदास (भगवान श्री हरि का सेवक) बनना चाहिए तभी उन्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।

नायक, जो भगवान की आवाज़ सुन सकता था लेकिन भगवान के दर्शन से धन्य नहीं हुआ था, उसने उसी समय अपनी संपत्ति गरीबों में बांँटने और सब कुछ त्यागने का फैसला किया। वास्तविक वैराग्य ने उसके हृदय पर कब्ज़ा कर लिया और उन्होंने सब कुछ त्याग दिया तथा अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ सत्य की खोज में निकल पड़ा। अंततः भगवान बूढ़े व्यक्ति के रूप में उसके समक्ष प्रकट हुए और उसे महान गुरू व्यासराय से दीक्षा लेने की सलाह दी। दीक्षा के बाद पंढरपुर में भगवान ने उन्हें दिव्य दृष्टि देने का वादा किया।

नायक हम्पी पहुंँचे, चक्रतीर्थ के पवित्र जल में स्नान किया और महान गुरू, स्वामी व्यासराय के मठ में प्रवेश किया। उन्होंने गुरू को प्रणाम कर दीक्षा की याचना की। उन्हें किसी से उधार न लेने, भगवान जो भी भेजे उसी में संतुष्ट रहने, कल के लिए संचय न करने की प्रतिज्ञा के साथ स्वामी हरिदास के शिष्य रुप में स्वीकार किया गया।

गुरू ने उन्हें तुलसी की माला, एक जोड़ी घुंघरू, एक जोड़ी झांझ और एक तार वाला वाद्ययंत्र देकर आशीर्वाद दिया। गुरू ने उन्हें पुरंदर विट्ठल नाम भी दिया और उनसे अपने गीत भगवान को समर्पित करने को कहा। उन्होंने नायक को ‘पुरंदरदास’ की उपाधि प्रदान की।

पुरंदरदास ने महान तीर्थस्थलों की यात्रा की। उनके रहस्यमय दर्शन और अनुभवों का सजीव वर्णन मानवता को उसके लक्ष्य की दिशा प्रदान करते हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक वैराग्य और भक्ति, अहंकारी जीवन की निरर्थकता – ये सब और इससे भी अधिक – उनके गीतों में वर्णित है, जो उन्हें धार्मिक इतिहास में एक जाज्वल्यमान प्रकाशक बनाते हैं। अभिव्यक्ति की स्पष्टता, विचार की उदात्तता, उनके चित्रण की भव्यता सभी उनके गीतों में अद्भुत है।

“त्याग, पवित्रता और ईमानदारी व्यक्ति को ईश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम की ओर ले जाती है। वह प्रेम मुक्ति की ओर ले जाता है।” यही उनकी शिक्षाओं का सार है।

पुरंदरदास को ऋषि नारद के अवतार के रूप में जाना जाता है।

पांडुरंग विट्ठल हम सभी को आशीर्वाद दें।

प्रश्न:

  1. पुरंदरदास किस राज्य से संबंधित हैं? उनका मूल नाम क्या था?
  2. वह कैसे व्यक्ति थे?
  3. बूढ़े व्यक्ति ने सरस्वतीबाई से क्या पूछा?
  4. किस घटना ने श्रीनिवास नायक का जीवन बदल दिया?
  5. वह एक महान संगीतकार और गायक कैसे बने?

Illustrations: A. Harini, Sri Sathya Sai Balvikas Student.
[Source: Stories for Children II, Published by Sri Sathya Sai Books & Publications, PN]

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