असली ब्राम्हण कौन?

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असली ब्राम्हण कौन?

एक ब्राम्हण कुल के साधक कई वर्षों, नदी किनारे साधना में रत रहे। वो स्वयं को भक्ति और पुण्यात्मा के श्रेणी में काफी प्रतिष्ठित मानने लगे थे,इतने सालों की साधना के फलस्वरूप। वे सामान्य जनमानस से अपने को दूर रखते यह सोच कर कि, उनकी संगति उनकी साधना के स्तर को कमज़ोर कर देगी। स्वयं अपना भोजन तैयार करना, अपने स्नान दान, मंत्र उच्चारण से स्वयं ही प्रभावित होकर वे अपने आप को उन्हें जागतिक लोगों से अधिक श्रेष्ठ मानते थे ।

उनके मन में किसी के प्रति तनिक भी प्रेम या स्नेह नहीं था। किसी जरूरतमंद की सेवा करना उनकी आदत नहीं थी। उनका हृदय एक गहरी खाई जैसा हो गया था जिसमें करुणा की सूर्य रश्मियाँ प्रवेश ही नहीं करती थीं। इस तरह के जीवन जीने के कारण उनमें क्रोध बहुत था। जो एकबार भड़क जाने पर आसानी से शांत नही होता था।

एक धोबी, जो पड़ोस में नया नया रहने आया था और इस वैरागी से सर्वथा अनभिज्ञ था, अपनी मैली चादर को उसी धारा में धोने के लिए आया था, जिसके पास वह ब्राह्मण उस समय बंद आँखों से अपनी प्रार्थना कर रहा था। धोबी ने कुछ गंदी चादरों को उसी जगह पर धोना शुरू कर दिया, जिस तरफ यह बैरागी ब्राह्मण खड़ा था। फलस्वरूप गंदे पानी के कुछ छींटे ब्राह्मण के ऊपर पड़ गये। अपनी आँखें खोलकर, उन्होंने देखा कि वह एक धोबी, एक चांडाल था, जिसने उनके क्षेत्र में घुसने की हिम्मत की और गंदे पानी के छिड़काव से उन्हें अशुद्ध कर दिया। ब्राह्मण के क्रोध की कोई सीमा नहीं रही।

बैरागी ने क्रोध में धोबी को बहुत गालियाँ दीं और भला-बुरा कहा और फिर, बहुत तेज स्वर में उसे अपने गंदे काम से दूर रहने और तुरंत जगह छोड़ने का आदेश दिया। बेचारा धोबी, जो तन्मयता से अपनी चादर को पीट-पीटकर धो रहा था, उसने सन्यासी की बात नहीं सुनी और अपने काम में लगा रहा। अपनी आज्ञाओं की इस प्रकार अवज्ञा होती देख, साधु ने अपना आत्म-नियंत्रण खो दिया और अपने स्थान से उठकर, धोबी के पास दौड़ा और उसे अपनी मुट्ठी और पैरों से बेरहमी से तब तक पीटा, जब तक कि वह निढाल नहीं हो गया। उसका शिकार अवाक् खड़ा था और खुद पर अचानक हुए इस हमले से चकित भी। लेकिन, यह जानकर कि उसका हमलावर एक पवित्र ब्राह्मण था, वह केवल एक कमजोर विद्रोह कर सका और कहा, “हे भगवान, इस दास ने आपकी नाराजगी के लिए क्या किया है?” साधु ने गुस्से से उत्तर दिया, “क्यों, श्रीमान, आपने मेरे आश्रम के पास आने की तथा मुझ जैसे पवित्र व्यक्ति पर गंदा पानी उड़ाने की हिम्मत कैसे की?”

धोबी को लगा कि उससे, इस निषिद्ध जगह पर आकर गलती हो गई है अतः उसने विनम्रता पूर्वक माफी मांगी और जाने के लिए तैयार हो गया। साधु को अब लगा कि उसने चांडाल के संपर्क में आकर खुद को अशुद्ध कर लिया है और उसे खुद को शुद्ध करना चाहिए। अतएव वह नदी में गया और स्नान कर खुद को शुद्ध किया। धोबी ने भी उनके उदाहरण का अनुसरण किया। वैरागी को इस कार्यवाही का अर्थ समझ में नहीं आया और उसने पूछा कि उसने क्यों स्नान किया? धोबी ने कहा, “महोदय, जिस कारण से आपने खुद को धोया।” साधु ने हैरानी से कहा, “मैंने खुद को धोया क्योंकि मैंने एक नीच धोबी – चांडाल – को छुआ था और इस तरह खुद को अशुद्ध कर लिया था। लेकिन तुम क्यों नहाते हो? निश्चय ही मेरे जैसे पवित्र पुरुष के स्पर्श से कोई अपवित्रता नहीं हो सकती?”

धोबी ने विनम्रता पूर्वक कहा, “महात्मन्, एक चांडाल से भी निकृष्ट भाव ने मुझे छुआ आपके माध्यम से। क्रोध का ज्वालामुखी जो आप में से निकला उसने आपके प्रभावी वंश के गौरव को क्षण भर में निर्मूल कर चांडाल पर हाथ उठाने पर विवश कर दिया।वह चांडाल से भी अपवित्र आपको बना गया इसलिए मुझे स्नान करना पड़ा।”

संन्यासी नज़रें नीची कर,धोबी की, इन बातों पर गौर करने लगे। एक उम्दा सबक ने, उनके पवित्रता और त्याग के अहंकार को चूरचूर करके रख दिया।

जो अपने क्रोध पर विजय पा लेता है, वही सबसे शक्तिशाली और उन्नत गोत्र का होता है। जिसने अपने क्रोध पर विजय नहीं पायी, वह अतिशय चांडाल से भी निम्न कुल का माना जाता है।

तब साधु ने स्वयं का आकलन कर धोबी से तुलना की – अपनी धर्मपरायणता पर गर्व, फिर भी क्रोध तथा हिंसक प्रवृत्ति का गुलाम। धोबी, जो इतने गंभीर उकसावे के बाद भी शांत और अडिग रहा, और पाया कि सामने वाला उससे कितना श्रेष्ठ था और दोनों में से किसने उस वक्त असली चांडाल की भूमिका निभाई थी।

प्रश्न:
  1. संन्यासी धोबी पर क्रोधित होकर क्यों चिल्ला रहे थे?
  2. धोबी ने क्या किया?
  3. धोबी ने क्या स्पष्टीकरण दिया?

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