संत कबीर
संत कबीर
एक बार कबीर के मामूजान ने, इस्लाम धर्मावलंबियों के एक प्रमुख उत्सव के उपलक्ष्य में एक वृहद् भोज का आयोजन किया| उसमें रिश्तेदार, मित्रों तथा सभी परिचितों को आमंत्रित किया गया किन्तु कबीर को नहीं। कबीर, इस आयोजन तथा उसमें उनके माता-पिता के आमंत्रण के विषय से एकदम अनभिज्ञ था। अपने अम्मी अब्बू को ढूँढते हुए कबीर मामूजान के घर पहुँचा वहाँ खूब सारे मुसलमान, मौलवी, काज़ी और धनाढ्यों का समागम एकत्रित था भोज के लिए।
कबीर ने उस घर मे देखा, एक नन्हा सा बछड़ा एक खूँटे से बँधा हुआ था, वह खूँटा फूलमालाओं से सजा था और बछड़े के गले में भी माला थी। उस बछड़े के चारों ओर, कुछ दर्जन भर मौलवी साहब उसको घेर कर कुछ कलमा पढ़ रहे थे। एक उलमा के हाथ में चाकू था,जो धूप में चमक रहा था। बछड़े की आँखों से अश्रु बह रहे थे। कबीर को तुरंत सारा माज़रा समझ आ गया। इस बछड़े को अल्लाह के नाम पर कुर्बान किया जा रहा था। वह दौड़ कर मौलवी साहब के पास गया और बोला “हे पवित्र आत्माओं, कृपया रुक जाइए, इस नादान बछड़े को मत मारिये।”
एक बुजुर्ग मौलवी साहब गुस्से से उस पर बरस पड़े। “कौन हिमाकती बालक है यह। क्या तुम्हें इल्म नहीं कि यह अल्लाह ताला के लिए कुर्बान हो रहा है? पैगम्बर साब के विरुद्ध बोलने की हिम्मत कैसे हुई?”
“नहीं, नहीं, मुझे एक प्रश्न पूछने की इजाज़त दें कृपया”कबीर बोला।” पहले ये बताएँ, किसने आपको, आपके घरवालों को, स्त्री बच्चों को बनाया?
“अल्लाह ने ही हमें बनाया, ऐसे बेतुके प्रश्न क्यों पूछ रहे हो?”
कबीर बोला, “इस बछड़े को किसने बनाया?”
“और किसने? अल्लाह ने|”
“फिर उसको क्यों मार रहे हैं आप?”- कबीर बोला।
“अल्लाह ने कितने खूबसूरत कायनात की रचना की है। उसमें बसनेवाले इंसान को इनके बीच रहने की सहूलियत दी है, और उनके सही इस्तेमाल की इजाज़त|” एक और मुस्लिम अतिथि बोले।
“जी आप बिलकुल दुरुस्त फरमा रहे हैं, हमको इनका सही उपयोग करना चाहिए उनका कत्ल नहीं|”
कबीर बोला, “कृपया पवित्र कुरान को पढ़ें,और पैगम्बर साब की कही बात पर गौर करें। क्यों इस निरीह बछड़े को मारना चाहते हैं? उसने आप सबका क्या बिगाड़ा है, कृपया उसे मुक्त कर दें|”
कुछ उपस्थित मुसलमान अतिथियों ने, यह सुनकर कबीर का विरोध किया। हमको गाय से दूध मिलता है, क्या वो पीना भी अनुचित हैं?” एक वृद्ध मुसलमान बहस के उद्देश्य से बोले।
“जैसे हम अपने अम्मी के दूध पीकर बड़े होते हैं, उसी तरह हम गाय को माँ मानकर उनका दूध पीते हैं। इसलिए उन्हें मारना उचित नहीं है” – कबीर ने उत्तर दिया।
सभी उपस्थित व्यक्ति खामोश रह गए। उन सबने एक दूसरे की ओर देखा। इस तर्क पर वे अचंभित थे और गर्वित भी। सभी व्यक्ति समझदार थे। इतने दिन उन्होंने इस पक्ष में नहीं सोचा था।कबीर ने उन्हें अहिंसा के बारे में समझा दिया था, इसलिए बछड़े की कुर्बानी रोक दी गई।
कुछ मेहमान उत्तम स्वादिष्ट भोज के नहीं मिलने पर नाराज होकर चले गए। सभी कबीर को दोषी मान रहे थे। परन्तु कबीर के अम्मी अब्बू अपने बेटे की, कट्टर ज्ञानियों के समक्ष जीत से प्रसन्न थे।
प्रश्न:
- कबीर ने अपने मामूजान के घर क्या देखा? दृश्य का वर्णन करो।
- कबीर का उलेमाओं से, पहला प्रश्न क्या था?
- उनका उत्तर क्या था?
- संक्षिप्त में बताओ, कबीर ने किस तरह ज्ञानी मुसलमानों को अहिंसा का पाठ सिखाया।