गोकुल अष्टमी का महत्व​

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गोकुल अष्टमी का महत्व​

भगवान श्रीकृष्ण के अवतार दिवस के रूप में, हम गोकुल अष्टमी का दिन मनाते हैं। कृष्ण का अर्थ है- वह व्यक्ति, जो सभी को, आकर्षित कर लेता है। बलराम तथा श्री कृष्ण ने अन्न और धान्य की, वृद्धि करने की प्रक्रिया के रूप में, कृषि उद्द्योग को पवित्र साधना की पत्तल पर परोस दिया है। कृष्ण गोपाल के रूप में पूजे जाते हैं। “गो” शब्द का अर्थ “जीव​” है । अत​: गोपाल का अर्थ है- समस्त जीवों का पालनकर्ता। अत​: जब तुम अन्य जीवों की निष्काम प्रेम से तथा संपूर्ण करूणा के साथ सेवा करते हो, तब तुम, श्री कृष्ण की ही एक प्रकार से, पूजा करते हो; जिसे वह अत्यंत प्रेम से स्वीकार करते हैं, और तुम पर पूर्ण कृपा की वर्षा करते हैं।

[सनातन सारथी सितन्बर १९८५]

समाज को और संसार को, सदा, आदर्श नेता के, स्फूर्तिदायक उदाहरण की आवश्यकता होती है। ऐसे विशिष्ट क्षेत्र में आदर्श के रूप में अनेक व्यक्ति है, किन्तु सर्वांगीण, आदर्शवान व्यक्ति मिलना मुश्किल होता है।

ऐसा आदर्श, केवल परमेश्वर ही हो सकता है ।सामाजिक, राजकीय​, नैतिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में सर्वथा श्रेष्ठ गुण के आदर्श के रूप में, भगवान श्री कृष्ण ही परिलक्षित होते हैं।

आज लोग परमेश्वर की, परमेश्वर के रूप में, पूजा करते है, किन्तु अवतार द्वारा प्रदर्शित, आदर्श मानवीय गुणों को, समझ लेने का प्रयत्न कोई भी नहीं करता। श्रीकृष्ण ने जब मानव के रूप में अवतार लिया, लोगों के बीच रहे, और तब, जिन आदर्श गुणों को उन्होंने प्रकट किया, उनका सही-सही आंकलन करने पर ही मानव जीवन सार्थक हुआ, ऐसा कहा जा सकेगा। क्योंकि लोगों के दोषों का निवारण करते हुए, उन्हें सन्मार्ग का दर्शन कराते हुए, अवतारी पुरुष सभी उपायों से, मानव जाति को प्रगति के सर्वोच्च क्षितिज पर पहुंचाने का प्रयत्न करता है। सर्वप्रथम मनुष्य को परमात्मा के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए, और इस श्रद्धा के सहारे जागृत होने का प्रयत्न करना चाहिए। मानवीय जीवन परमात्मा की देना है। इस पवित्र दिन को उसी प्रकार मूल्यवान समझ कर, पवित्र कार्यों के लिए ही उसका उपयोग करना चाहिए।

[सनातन सारथी सितम्बर १९५७]

जिस श्रीकृष्ण का जन्म हम मनाते हैं, वह कृष्ण अपनी मुरली से लोगों को मंत्र-मुग्ध करने वाला केवल एक गोप बालका ही नहीं था, किन्तु वह आंकलन से परे, एक दिव्य तत्व हैं, नाम स्मरण से प्राप्त होने वाली आत्म का, दर्शन ही कृष्ण है। ऐसा दर्शन-लाभ माता यशोद को प्राप्त हुआ था। अतः हमे भी, उस कृष्ण का निरंतर नामस्मरण करना चाहिए। जब उनका नाम सतत् तुम्हारी जिव्हा पर होगा, तब तुम्हारी जिव्हा से, विष(अपशब्द,बुरी भाषा) नष्ट हो जाएगा। कालिया नाग के फन पर जब कृष्ण ने नृत्य किया, तब कालिया का दुर्गुण दूर हुआ, और वह स्वयं ही बस्ती से दूर चला गया।

यशोदा माँ जिस मटकी में दही मथती थीं, उस मटकी को कृष्ण ने फोड़ दिया, और जो दही बिखर गया, उस दही पर से चलने के कारण, बाल कृष्ण के पदचिन्ह जमीन पर उभरते थे, और उन्हीं चिन्हों के सहारे यशोदा माँ, कृष्ण को खोज लेती थीं। यह भी एक प्रतिकात्मक कथा है । मानव मन से “मैं” वाली अहंकार की प्रवित्ति का नाश करने के लिए, भगवान​, मनुष्य को हमेशा याद दिलाने वाले स्मृति चिन्ह प्रस्तुत करते हैं। जैसे- सूर्योदय की शोभा, इन्द्रधनुष की मौज, पक्षियों का मधुर चहचहाना, हिमाच्छादित पर्वत शिखर और इन स्मृति चिन्हों से हमें परमेश्वर के अस्तित्व का आभास होता है।परमेश्वर आनन्द रस युक्त होने से, आनंदस्वरूप है। तुम अपने हृदय में उनका आनंद स्वरूप तथा आनंद दायक राम के रूप में, स्वागत करो, अथवा अपने आनंदकोष से आनंद का दान, तुम्हें देकर आकर्षित करने वाले कृष्ण के रूप में उसका स्वागत करो, और अपनी आयु का प्रत्येक पल​, ध्यान​, पूजा, जप, सारे के सारे उन्हें अर्पण करों। इसके फलस्वरूप ज्ञान एवं मोक्ष के द्वारा खुल जायेंगे। यह बुद्धिमानी का लक्षण है, और जो इसकी अपेक्षा करते हैं, वे अंधेरे में रहने वाले व्यक्ति के समान भटकते रहेंगे, और अपनी आयु का प्रत्येक पल निरर्थक तथा खोखली बातों में, खेल तथा कपट व्यवहार में गवां देते हैं।

[बाबा, बालविकास पत्रिका, अगस्त १९८५]

वृन्दावन का अर्थ है- जीवन की उलझनों का जंगल। श्री कृष्ण द्वारा रखी गई गाये, अन्य कुछ और नहीं होकर, माधव के संरक्षण तथा मार्ग​-दर्शन के अभाव में असहाय होने वाले मनुष्य ही है। गोकुल​-मनुष्यों के रहने का एक प्रदेश है। कृष्ण का रंग नीला है। इसका अर्थ है कि, वे आकाश एवं सागर के समान अंतहीन है। गोकुल के सीधे-सादे, एवं सरल हृदय ग्वालों ने, कृष्ण को प्रत्येक झाड़ी के पीछे और लताकुंजों में खोजा, क्योंकि उन्हें कृष्ण का आकर्षण अनुभव होता था। यद्यपि वह हमेशा उनसे दूर रहते थे। परमात्मा की खोज का वर्णन करने की केवल एक यही पद्धति है।

वह हमारे हृदय में रहते हैं, और फिर भी उनकी मधुरता में डूब जाने के हमारे प्रयत्नों को वह झटक देते है। कृष्ण तुम्हारे हृदय के अन्तर्भाग में ही, छिपे हुए हैं। वहीं उन्हें खोजकर, दृढ़तापूर्वक पकड़ कर रखना चाहिए। वे भाग जाते है, किन्तु बिखरे हुए दही में, भरे उनके पैरों के चिन्ह बनाते जाते है, क्योंकि हमारी सीमा से परे, जाने की उन्हें जल्दी रहती है। प्रत्येक सत्कर्म में, कृतज्ञता के प्रत्येक अश्रु में, सहानिभूति की प्रत्येक अनुभूति में, उनके पग चिन्ह पहचानो, और प्रेम की सुगंध, तथा सदगुणों के प्रकाश से परिपूर्ण, तुम्हारे हृदय कुंज में खोज निकालो।

[सत्य साई वचनामृत खण्ड ७ पृष्ठ ८७।८८]

कृष्ण के कपाल पर कस्तूरी तिलक, ज्ञान प्राप्ति का सूचक है।उनकी गर्दन में उलझी पड़ी चार लाल मालाएं, समस्त प्राणियों के लिए किये गये व्रतों की सूचक हैं। सज्जनों का उद्धार​, दुर्जनों का नाश​, धर्म​-रक्षा तथा शरणागतों की पाप मुक्ति अनेक व्रत हैं।’

[सत्य साई वचनामृत खण्ड- पृष्ठ १०५]

कृष्ण के उपदेशानुसार आचरण करना ही, उनका जन्मोत्सव आयोजित करने का सच्चा मार्ग है।

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