भगवान श्री राम एवं सीता का पवित्र विवाह
भगवान श्री राम एवं सीता का पवित्र विवाह
राजा जनक की एक पुत्री थी जिसका नाम सीता था। एक बार बाल्यकाल में सखियों के साथ खेलते समय सीता का खिलौना लुढ़क कर उस बड़े संदूक के नीचे चला गया जिसमें शिव धनुष रखा हुआ था। सभी ने इसे निकालने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। सीता ने अपने कोमल हाथ से संदूक को एक तरफ धकेल दिया और अपने खिलौने को निकालकर जनक को विस्मय में डाल दिया। इसलिए जनक ने फैसला किया था कि जो कोई भी धनुष को तोड़ेगा, सीता का हाथ उसी के हाथ मे होगा। जब धनुष लाया गया, तो जनक ने उन लोगों को आमंत्रित किया जो धनुष को तोड़ने की उच्च क्षमता रखते थे। विश्वामित्र के आदेश पर, राम ने अपने बाएं हाथ से धनुष का आवरण हटा दिया।
गुरू द्वारा बच्चों को मार्गदर्शन: भगवान राम की तरह, जब हम स्कूल में अपने शिक्षकों या अन्य किसी भी जगह पर बड़ों के साथ होते हैं, तो कुछ भी करने के पहले हमें अपने शिक्षकों की , बड़ों की अनुमति का हमेशा इंतजार करना चाहिए।
आत्मसात करने के लिए मूल्य: गुरुजनों एवं बड़ों के प्रति आज्ञाकारिता और श्रद्धा रखना।
अपने दाहिने हाथ से, उन्होंने आसानी से धनुष उठा लिया और उस पर बाण लगाया । जैसे ही उन्होंने छोड़ने के लिए प्रत्यंचा खींची, एक गर्जना के साथ धनुष टूट गया। जनक विश्वामित्र के पास गए, उनके चरणों में गिर गए और स्वीकार किया कि राम के पास दिव्य शक्ति है और उन्होंने विश्वामित्र से अनुरोध किया कि वे राम से उनकी बेटी सीता का विवाह करने की सहमति प्रदान करें। दशरथ को तुरंत सूचना दी गई। उन्होंने सहर्ष अपनी सहमति दे दी और स्वजनों के साथ मिथिला आ गए।
गुरू द्वारा बच्चों को बोध : जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले, हमें अपने माता-पिता से इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए और उनकी अनुमति और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
समाहित मूल्य: माता-पिता के प्रति आज्ञापालन और श्रद्धा का भाव रखना।
चार भाइयों का विवाह एक ही समय में संपन्न हुआ। राम का सीताजी के साथ, लक्ष्मण का सीता की बहन उर्मिला तथा भरत और शत्रुघ्न का विवाह क्रमशः मांडवी एवं श्रुतकीर्ती से हुआ, जो राजा जनक के भाई की पुत्रियाँ थीं। सभी लोग आनंदित हुए।