कवि कालिदास की कथा
कवि कालिदास की कथा
देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। जो कोई भी मन, वचन और कर्म में पवित्रता रखता है और पवित्र हृदय तथा शुद्ध मन रखता है, उसे सरस्वती देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह कहानी है संस्कृत साहित्य के कवि शिरोमणि कालिदास की। वे जन्म से बुद्धिमान नहीं थे। बल्कि पहले वह बहुत मूढ़ थे। एक बार उस राज्य के राजा ने सबसे मूर्ख व्यक्ति की तलाश की। उन्होंने कालिदास को पाया! तब राजा कालिदास को अपने महल में ले आए और उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कालिदास के साथ कर दिया। राजकुमारी बहुत पढ़ी-लिखी और बुद्धिमान लड़की थी। वह अपने मूर्ख पति से बिल्कुल खुश नहीं थी।
हालाँकि उसने उसे सुधारने की कोशिश की, लेकिन वह बद से बदतर होता चला गया। अंत में एक दिन, उससे तंग आकर, उसने उसकी मूर्खता के लिए उसका अपमान किया। कालिदास को बहुत दुख हुआ और उन्होंने उसी क्षण कभी वापस न लौटने का निर्णय करते हुए घर छोड़ दिया। वह सीधे नगर से निकलकर देवी सरस्वती के मंदिर में गये।
उनके चरणों में नतमस्तक होकर उन्होंने प्रार्थना की, “ओह! माता! तुमने मेरे जैसे निकम्मे प्राणी को जन्म क्यों दिया? तुमने मुझे कुछ ज्ञान क्यों नहीं दिया? इस बेकार जीवन का क्या उपयोग है? इससे अच्छा है कि तुम इस जीवन को ले लो!” यह कहकर उन्होंने अपनी तलवार निकाली और अपना सिर काटने के लिए उद्यत हो गए।
तभी उनके समक्ष माता सरस्वती प्रकट हुईं। वह उसकी ईमानदारी और पवित्रता से प्रभावित थीं। माँ सरस्वती ने कालिदास को ज्ञान और बुद्धि का आशीर्वाद दिया। इसके बाद उन्होंने उससे कहा “ओह! मेरे बच्चे, अब से तुम काली के दास, कालिदास के नाम से जाने जाओगे। तुम मेरी सेवा में बने रहोगे। जाओ। तुम्हें सभी के द्वारा सम्मानित किया जाएगा।” उस क्षण से, दुनिया ने एक महान विद्वान कवि कालिदास को देखा। जब वे घर लौटे, तो उनकी पत्नी ने उनसे संस्कृत में सवाल किया, “तुमने क्या हासिल किया?” कालिदास ने संस्कृत में अपनी रचना, कविता का पाठ करना शुरू किया। उन्होंने अपनी पत्नी के प्रश्न के एक शब्द के साथ तीन लंबी कविताओं का पाठ किया। इस प्रकार, संस्कृत साहित्य को चार उत्कृष्ट रचनाएँ मिलीं: कुमारसंभवम्, मेघदूतम, रघुवंशम् और अभिज्ञान शाकुन्तलम्।
देवी सरस्वती के हृदय में अपने सभी भक्तों के लिए मातृवत् स्नेह है। वह उन्हें ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं और उनके मन की जड़ता को दूर करती हैं।
[Illustrations by Sree Darshine. H, Sri Sathya Sai Balvikas Student.]
[Source: Sri Sathya Sai Balvikas Guru Handbook Group I.]