नुकीले कंटक

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नुकीले कंटक

मेरे प्यारे बच्चों!

काँटों को देखो। यदि हम तुम्हें इसे छूने के लिए कहते हैं, तुम झिझकते हो। क्यों? क्योंकि तुम्हें पता है कि काँटें चुभते हैं। अब अपनी आंँखें बंद कर लें।

बगीचे में नंगे पाँव धीरे से चलें। आपको एक अच्छा रोएँदार कुत्ता मिलता है, जो अपनी पूँछ हिलाता है। आप उसे छूने के लिए दौड़ें। लो! आपके दाहिने पैर में काँटा चुभ गया। तुरंत हाथ नीचे चले जाते हैं‌ उन आँखों को पोंछने के लिए जिनमें आँसू हैं तथा मुँह से हा निकलता है।

यह एक स्वाभाविक घटना बन जाती है जिससे प्रत्येक अंग, प्रभावित स्थान की सहायता के लिए दौड़ पड़ता है।

हम एक समाज में रह रहे हैं। कांँटे क्या हैं? डकैती करना, समय बर्बाद करना, तोड़फोड़ करना और नकारात्मक सोचना आदि कांँटे हैं।

खुद को बुरी चीजों से दूर रखकर, बाबा के वेदों का पालन करके हम इससे बच सकते हैं। कांँटा तो दर्द ही देता है लेकिन तुम कभी किसी को दुख मत दो। सबकी सेवा करो। सबसे प्रेम करो। सबकी सहायता करो।

अब धीरे-धीरे अपनी आंँखें खोलो।

प्रश्न:
  1. आप बगीचे में कैसे गए?
  2. आपको क्या चुभा और आपको दर्द कैसे महसूस हुआ?
  3. आप “सहायता” को कैसे परिभाषित करते हैं?

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