पत्थर को भगवान समझो, भगवान को पत्थर न समझो
पत्थर को भगवान समझो, भगवान को पत्थर न समझो
“टूटे हुए विग्रह को दूर फेंक दो, और एक नया बनाकर पूजा आराधना करो|” “ऐसा कैसे कर सकते हो?” रामकृष्ण ने जवाब दिया| उन्होंने पूछा, “क्या, तुम्हारे साथ रहनेवाला कोई अपना, अथवा रिश्तेदार, अपना पैर तोड़ लेगा तो, क्या तुम उसे दूर फेंक दोगे?”
दक्षिणेश्वर मंदिर के बाजू में राधा-गोविंद जी का मंदिर और बारह शिवजी के मंदिर हैं| हर मंदिर में नित्य अलग-अलग पुरोहित जी, वन्दना और पूजा किया करते थे|
श्री रामकृष्ण ने माता काली की पूजा करने का काम हाथ में ले लिया| उसके बाद अचानक एक दुर्घटना हुई| उस दिन ‘नंदोत्सव’ नाम से श्री कृष्ण का जन्मदिन बड़े धूम-धाम से मनाया गया| उस दिन की पूजा के बाद राधा-गोविन्द के मंदिर से गोविन्द के विग्रह को बिस्तर पर लिटाने के लिए पुरोहित जी उसे ले गए| जाते समय मूर्ति उनके हाथ से फिसलकर नीचे गिर पड़ी, और तुरंत उनका एक पैर टूट गया|
खंडित मूर्ति पूजा के लिए योग्य नहीं, ऐसी परिस्थिति में क्या उचित होगा, ये प्रश्न सामने था। मधुर बाबू और रानी रासमणि देवी को यह खबर भेजी गई| उन्होंने पंडितों को बुलाकर उनकी राय माँगी| पंडितों ने मिलकर विचार किया, उन्होंने अपना मत प्रकट किया कि टूटी मूर्ति को गंगा में फेंक कर, नया विग्रह बनवाकर पूजा करनी चाहिए|
तब मधुरबाबू को श्री रामकृष्ण से मिलकर, भी चर्चा करने की इच्छा हुई, और वे उनसे पूछने गए, जवाब के रूप में श्री रामकृष्ण ने उनको उपदेश दिया– “अगर रानी के भतीजों में से एक विपत्ति में अपने एक पैर को तोड़ लेता, तो क्या उसे दूर फेंककर एक और भतीजे को उनके सामने खड़ा करोगे, और क्या रानी उसे स्वीकार करेंगी? या कोई एक वैद्य को बुला लाकर टूटे हुए पैर को जोड़ने का प्रयत्न करेंगी? वैसा ही काम अभी, विग्रह के लिए करना चाहिए| मूर्ति के टूटे पैर को जोड़कर दुरुस्त करके फिर पूजा करने में लग जाइये|” उनका कहना सब लोग समझ गए। यह सच है न? हम को भगवान को अपने निकट [करीब] रहनेवाले और हमारा प्यारा मानना चाहिए| हमें भगवान को एक माँ, एक पिता, एक बच्चा मानकर प्रेम सहित उनकी सेवा करनी चाहिए| लेकिन वे लोग भगवान् को एक पत्थर का स्वरूप मान रहे थे| बाद में श्री रामकृष्ण ने ही टूटे पैर को जोड़ने का काम स्वीकार करके उसे बहुत सुन्दर रूप में बना कर दिया|
प्रश्न:
- श्रीकृष्ण की खंडित प्रतिमा को लेकर पंडितों का क्या विचार था?
- रामकृष्ण जी के इस विषय में क्या विचार थे?
- इस घटना से हमें क्या सीख मिली?