कैकेयी के दो वरदान

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कैकेयी के दो वरदान

Two Boons of Kaikeyi

अयोध्या लौटने के बाद, श्री राम और सीता आनंद में थे। राम ने लोगों के कल्याण के लिए काम किया। बड़े ही धैर्यपूर्वक हमेशा दूसरों की मदद की। जैसे-जैसे दशरथ आयु के उत्तरार्ध में पहुँच रहे थे, उन्होंने वशिष्ठ से कहा कि वह राम को राज्य सौंपना चाहते हैं और उन्होंने राम के राज्याभिषेक का आदेश दिया। इस समय के दौरान, भरत और शत्रुघ्न अयोध्या से दूर अपने ननिहाल गये हुए थे। राम के राज्याभिषेक के समाचार से तीनों रानियां अति प्रसन्न हुईं। कैकेयी राम को अपने पुत्र के समान प्यार करती थी, लेकिन उनकी दासी मंथरा इस समाचार से दुखी थी। वह भरत को राजा बनाना चाहती थी, इसलिए उसने एक दुष्ट योजना तैयार की। उसने कैकेयी के मन को यह बताने की कोशिश की कि एक बार राम को राजा बना दिया गया, तो कौसल्या सर्व-शक्तिमान हो जाएंगी और कैकेयी को अपना दासी बना लेंगी। अंत में कैकेयी उसकी कुटिल षडयंत्र का शिकार हो गई। उनका मन संदेह से भर गया और वह मंथरा की योजना पर सहमत हो गईं।

गुरुओं द्वारा बच्चों को बोध : कैकेयी मूल रूप से एक अच्छी स्वभाव वाली महिला थीं, लेकिन उनकी दासी की विद्वेषपूर्ण सलाह ने उनके मन भी विषाक्त कर दिया जिसे वह वफादार और समझदार मानती थीं। इसलिए हमें हमेशा उस संगति से सावधान रहना चाहिए जो हम रखते हैं। हमें कभी भी अपने दोस्तों का आँख बंद करके अनुसरण नहीं करना चाहिए और जो कुछ भी वे हमसे कहते हैं या हमें करने के लिए कहते हैं, भले ही वे हमारे सबसे अच्छे दोस्त हों और हम उन पर बहुत भरोसा करते हैं, हमें अपने स्वयं के विवेक का उपयोग करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि वास्तव में हमारे लिए और हमारे आसपास के सभी लोगों के लिए क्या अच्छा है।
समाहित मूल्य : जीवन की एबीसी(Avoid Bad Company)’बुरी संगति से बचो’ और(Always Be Careful) ‘हमेशा पूर्व निर्णय के लिए सावधान रहो’ इसका ध्यान रखना।

मन्थरा ने रानी कैकेयी को उन दो वरदानों की याद दिलाई, जो राजा दशरथ ने उन्हें युद्ध में अपने जीवन को बचाने में मदद करने पर देने का वचन दिया था। जब दशरथ राम के राज्याभिषेक के लिए कैकेयी को सूचित करने गए, तो वह दुःख और गुस्से से भरी हुईं थीं। महाराज ने सारी बात जानना चाही, तब कैकेयी ने उनसे दो वरदान मांगे, जैसा कि उन्होने वचन दिया था। पहला वरदान, कैकेयी ने जोर देकर मांगा कि भरत को राजमुकुट पहनाया जाये और दूसरा वरदान, राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास पर भेजा जाये। यह सुनकर दशरथ अति परेशान हुए और दुख के कारण मूर्च्छित हो गए। अगली सुबह, जब मंत्री सुमन्त्र महाराज को श्रीराम के राजतिलक की भव्य तैयारियों के विषय में सूचित करने के लिए राजमहल में पधारे तब उन्होंने पाया कि राजा दशरथ फर्श पर दुखी अवस्था में पड़े हैं। कैकेयी ने सुमंत्र को तुरंत राम को लाने के लिए कहा। राम ने आकर अपने पिता से उनकी पीड़ा का कारण पूछा, लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी ने उन्हें दशरथ से प्राप्त दो वरदानों के बारे में बताया। राम ने तुरंत मुस्कुराते हुए स्वीकार किया और अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने का वचन दिया। उन्होंने केवल माता कैकेयी से अनुरोध किया कि वे इसका ध्यान रखें कि भरत के शासन से उनके पिता को खुशी मिलेगी|

गुरुओं द्वारा बच्चों को कथा में निहित अंतर्ज्ञान

  1. किसी के वचनों का सम्मान करना बहुत महत्वपूर्ण है। श्री राम ने अपने पिता की बात(वचन) रखने के लिए तुरंत अयोध्या छोड़ने का फैसला किया।
  2. राम ने कैसे समभाव दिखाया। उन्होंने अपना संतुलन नहीं खोया और न ही वरदानों के बारे में सुनकर वे क्रोधित हुए। वे तब भी शांत और प्रकृतिस्थ थे जबकि अन्य सभी परेशान थे।

गुरु बच्चों को मार्गदर्शन दें कि आपको भी हमेशा अपने वादे निभाने चाहिए; हालाँकि आपको वादे करते समय हमेशा सावधान रहना चाहिए क्योंकि एक बार जब आप अपना शब्द देते हैं, तो आप उससे हट नहीं सकते।
प्रतियोगिताओं, खेलों आदि में हारने पर आपको परेशान या क्रोधित नहीं होना चाहिए, इसके बजाय आपको प्रयास करना चाहिए और अपने आप को सुधारना चाहिए।
सीखने योग्य मूल्य: प्रतिकूल समय में भी दिए गए वचन का पालन करना एवं संतुलन बनाए रखना।

श्री राम ने दशरथ और कैकेयी को प्रणाम किया और वे कौसल्या के पास गए। लक्ष्मण ये सब समाचार सुनकर क्रोधित थे, लेकिन राम ने उन्हें समझाया कि उनका कर्तव्य अपने पिता की आज्ञा पालन करना था।

गुरु बच्चों को बताएं कि राम एक आज्ञाकारी पुत्र कैसे थे; उन्होंने न केवल अपने पिता की आज्ञा का पालन किया बल्कि लक्ष्मण को भी सलाह दी कि एक आदर्श पुत्र को कैसे व्यवहार करना चाहिए।
आत्मसात करने योग्य मूल्य – माता-पिता और बड़ों के प्रति आज्ञाकारिता ।
अभ्यास करो और फिर उपदेश दो: “बनो, करो और फिर बताओ।”

कौशल्या राम के साथ वन के लिए प्रस्थान करना चाहती थीं, लेकिन श्रीराम ने कहा कि उनका कर्तव्य अपने पति दशरथ की सेवा करना था। उन्होंने कौशल्या को भरत के राजतिलक के समय उतना ही प्रसन्न रहने को कहा। लक्ष्मण राम के साथ जंगल जाना चाहते थे, राम सहमत हो गए। जब सीताजी ने भी उनके साथ जाने की इच्छा व्यक्त की,तब उन्होंने उन्हें वन में होने वाली कठिनाइयों के बारे में समझाया। परंतु सीता का राम के साथ जंगल में जाने का संकल्प दृढ़ था।

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