घमंडी को सबक मिला

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घमंडी को सबक मिला

एक समय गाँधीजी एक बड़े विदेशी जहाज में यात्रा कर रहे थे| वे एक परिषद की बैठक में भाग लेने के लिए इंग्लैंड जा रहे थे| सफर करने वाले यात्री में भड़कीले वस्त्र पहने एक यूरोपियन भी था| जब गाँधीजी एक मेज के पास बैठकर पत्र लिख रहे थे, तब यह यूरोपियन उनको अजीब रूप से देखने लगा, क्योंकि जहाज के अन्य यात्रियों की अपेक्षा गाँधीजी बिल्कुल निराले थे| वह धनी घर का पुत्र अपने कमरे में गया और वहाँ से कुछ कागज के टुकड़े लेकर आया और गाँधीजी को अपमानित करने के उद्देश्य से उसने उन कागजों पर गन्दे वाक्य और अजीब चित्र बनाना शुरू किया| अर्द्धनग्न, गंजा, दंतविहीन इस वृद्ध को इंग्लैंड नहीं जाना चाहिए और विदेश जाने की मूर्खता गाँधीजी को छोड़ देना चाहिए आदि| उसने इन कागज के टुकड़ों को व्यवस्थित कर एक पिन में पिरो दिया और कमरे के बाहर आया|

डेक पर बड़े रूआब से चलता हुआ वह उस मेज के पास आया, जहाँ गाँधीजी बैठे लिख रहे थे| गाँधीजी को देखते ही उसने वो कागज़ “काला आदमी” कहकर अनादर व्यक्त करते हुए गाँधीजी के हाथ में थमा दिए| “तुम्हें ये पसन्द आएँगे और तुम्हारे लिए उपयुक्त रहेंगे| पढ़ो और उन्हें अपने पास रखो|” ऐसा उसने गाँधीजी से कहा| फिर वह थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया| वह यह देख रहा था, कि उसने जो कुछ किया उसके सम्बन्ध में गाँधीजी की क्या प्रतिक्रिया होती है|

उसके द्वारा लिखा एक-एक शब्द गाँधीजी ने शांतिपूर्वक पढ़ा| फिर उन्होंने एक क्षण के लिए उस तरुण युवक की ओर देखा| बाद में आराम से उन्होंने उन कागजों की पिन निकाल ली और कागज़ कूड़े दान में डाल दिये| हमेशा के अनुसार मधुर हास्य बिखेरते हुए, उस तरुण युवक की ओर देखकर बोले, “तुमने मुझे जो भी करने को कहा, मैंने बराबर किया है| तुम्हारे द्वारा दी गई पिन मैंने रख ली है| मुझे पसन्द आने वाली और मेरे लिए उपयुक्त एक ही वस्तु तुमने मुझे दी है, तदर्थ, मैं आभारी हूँ|”

उस यूरोपियन नवयुवक को तत्काल अपनी भूल का अनुभव हुआ| उसकी यह अपेक्षा थी, कि उसने जो भी लिखकर दिया, उसे पढ़कर गाँधीजी दुःखी होंगे, और गोरे लोगों को एक अच्छा तमाशा देखने को मिलेगा पर स्थिति पलट गई और गाँधीजी के मन्द हास्ययुक्त वचन सीधे उसके हृदय में घर कर गए| उसे यह समझ में आया, कि गाँधीजी कितने बुद्धिमान, सुसंस्कृत और विनम्र थे| उसने शर्म से गर्दन झुका ली और जिस तरह वह आया था उसी तरह निकल गया| गाँधीजी से मिली शिक्षा के प्रभाव से उसका मिथ्या अभिमान कभी अपना सिर ऊँचा नहीं कर सका|

प्रश्न:
  1. उस यूरोपियन युवक की क्या भूल थी?
  2. गाँधीजी ने उसे कौनसा पाठ पढ़ाया?
  3. कल्पना करो, कि तुम्हारी कक्षा में एक घमंडी विद्यार्थी ने तुम्हें ‘महामूर्ख’ कहा तब तुम क्या करोगे?

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