21वीं सदी का वेद
21वीं सदी का वेद
तथ्य यह है कि हम भगवान श्री सत्य साई बाबा को युगावतार के रूप में पहचानते हैं, तथा उनके संदेश को सभी आध्यात्मिक विचारों और अभ्यासों के अंतिम संश्लेषण के रूप में मानते हैं। इस संदेश को सभी मानव जाति के लिए मूर्त रूप देने के लिए श्री सत्य साई सेवा संगठनों पर एक विशेष जिम्मेदारी हैं। लाखों परीक्षणों एवं क्लेशों, हजारों सभ्यताओं और राजनीतिक दर्शनों के विकास एवं पतन के पश्चात्, अब हमारे पास पहली बार प्राचीन ज्ञान तथा आधुनिक विज्ञान को आध्यात्मिकता व मानव अस्तित्व की सुसंगत समझ को एकीकृत करने का अवसर मिला है।
अपनी दिव्य योजना के एक भाग के रूप में अपने अनंत ज्ञान में, बाबा ने गुरुओं के माध्यम से इस संदेश को संप्रेषित करने के लिए बाल विकास के बच्चों को ध्यान के केंद्र के रूप में चुना। पिछले तीस वर्षों से, बालविकास गुरू,भगवान बाबा में भक्ति तथा पूर्ण विश्वास के साथ श्री सत्य साईं बाल विकास पाठ्यक्रम को लागू कर रहे हैं। हमने देखा है कि जो बच्चे पाठ्यक्रम से गुजरे हैं वे अपने देशों के अच्छे नागरिक बन गए हैं; गुरुओं को भी कक्षाएंँ संचालित करने में बहुत खुशी मिलती है। हालाँकि, जो कमी थी वह यह थी कि हम उस समय नहीं जानते थे कि ये अच्छे परिणाम क्यों प्राप्त हुए, कैसे शिक्षण पद्धति ने बहुत उत्साहजनक व्यवहार परिवर्तन को जन्म दिया। जब पूछा गया कि ऐसा कैसे होता है, तो हमारा उत्तर था ‘उनकी दिव्य कृपा’ या ‘बाबा का आशीर्वाद’।
अब समय आ गया है जब भगवान बाबा के मार्गदर्शन में हमें शिक्षा के उनके संदेश के आंतरिक महत्व को समझने का प्रयास करना चाहिए, जिसे वे अब हमें पूर्णता, आनंद तथा शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद करने के लिए प्रकट कर रहे हैं।
‘शिक्षा के दो पहलू हैं; पहला बाहरी और सांसारिक शिक्षा से संबंधित है, जो किताबी ज्ञान प्राप्त करने के अलावा और कुछ नहीं है। आधुनिक दुनिया में, हम इस पहलू में कई अच्छे जानकार और उच्च योग्य स्त्रोत पाते हैं। एजुकेयर के नाम से जाना जाने वाला दूसरा पहलू मानवीय मूल्यों से संबंधित है। एजुकेयर शब्द का अर्थ है जो भीतर है उसे बाहर लाना। प्रत्येक मनुष्य में मानवीय मूल्य अन्तर्निहित होते हैं; कोई उन्हें बाहर से प्राप्त नहीं कर सकता। उन्हें भीतर से जगाना होगा। एजुकेयर का अर्थ मानवीय मूल्यों को सामने लाना है। ‘बाहर लाना’ इसका अर्थ है उन्हें कार्यरूप में परिणित करना।’
– श्री सत्य साई (25 सितम्बर 2000)
एजुकेयर, हमारे प्रिय भगवान बाबा द्वारा प्रत्यक्ष शिक्षाओं, प्रवचनों और सहज अनुभवों के माध्यम से हमारे सामने प्रकट जीवन और जीवन का सत्य है। यह भूगोल और इतिहास को एक नया अर्थ, भाषा को एक नई जीवन शक्ति, विज्ञान और गणित को अलौकिक समझ तथा संगीत व कला को एक उन्नत सुंदरता देता है। यह प्रत्येक व्यक्ति के भीतर आंतरिक अंतर्ज्ञान एवं रचनात्मकता की रिहाई है। यह हमारे हृदय में प्रत्येक दिव्य कमल का खिलना है। यह हमें न केवल रिसेप्टर्स बल्कि संपूर्ण सृष्टि के लिए मूल्यों का वाइब्रेटर और रेडिएटर बनने में सक्षम बनाता है।
यह संदेश सृष्टि के सबसे छोटे परमाणु से लेकर ब्रह्मांड की सबसे बड़ी आकाशगंगा तक को व्याप्त करता है। यह समय और स्थान की सीमाओं को पार करता है, उन लोगों के लिए प्रासंगिक है जिनके पास भगवान बाबा की भौतिक उपस्थिति से परे, व्यक्तिगत रूप से उनके साथ बातचीत करने का विशेषाधिकार नहीं है, और भविष्य में भी उनके लिए प्रासंगिक है।
वैश्विक समाज के विभिन्न वर्गों के लिए साई शिक्षाओं के बहुआयामी निहितार्थ और अनुप्रयोग शिक्षा शब्द के पारंपरिक दायरे से कहीं अधिक हैं। इसलिए, भगवान बाबा द्वारा उद्धृत शब्द, ‘एजुकेयर’ को सीखने और मानव विकास के सभी पहलुओं को शामिल करने के लिए एक मास्टर सिस्टम के रूप में अपनाया जाता है। यह संदेश संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रासंगिक तथा लागू है।
मेरा कार्य केवल व्यक्तिगत दुःख को ठीक करना, सांत्वना देना और दूर करना नहीं है; इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण कुछ है। दुःख और संकट को दूर करना मेरे मिशन के लिए आनुषंगिक है। मेरा मुख्य कार्य सभी लोगों के हृदय में वेदों तथा शास्त्रों की पुनः स्थापना करना है।
– श्री सत्य साई(26 नवंबर 1964)
यह ईश्वरीय घोषणा बिना किसी क्षण के एक है; सचमुच, एजुकेयर 21वीं सदी का वेद है। मानव जाति के इतिहास में पहली बार, किसी अवतार ने ज्ञान और क्रिया को सरल तरीके से संश्लेषित किया है, हठधर्मिता और पंथों के पीछे के मिथकों को तोड़ दिया है, और हमें जाति, रंग, धर्म या पंथ से परे ले गया है। बाबा ने कहा है, ‘बाकी सब कुछ जटिल है, केवल भगवान ही सरल हैं।’ और, अपनी असीम कृपा एवं करुणा में, भगवान बाबा, अरबों भक्तों की पुकार और लालसा का जवाब देते हुए, अव्यक्त (निराकार) से प्रकट हुए हैं, ताकि उनका जीवन ही उनका संदेश दे सके।
- श्री सत्य साई एजुकेयर की अवधारणा आध्यात्मिक, सार्वभौमिक और वैश्विक है।
- दिव्यता सभी अस्तित्व का स्रोत और आधार है।
- मूल्य अव्यक्त हैं; उन्हें सिखाया नहीं जाना चाहिए बल्कि प्रकट किया जाना चाहिए।
- शिक्षा जीवन के लिए है, न कि केवल जीविकोपार्जन के लिए।