व्यर्थ ना करो -चाह ना रखो

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व्यर्थ ना करो -चाह ना रखो

प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई उपयोग होता है और उसका कुछ न कुछ मूल्य होता है| साँप द्वारा डसे गए व्यक्ति को साँप का विष ही औषधि बन कर बचाता है| फिर भी अकसर हम देखते हैं, कई बार मनुष्य अपनी मूर्खता से अन्न, द्रव्य, समय और शक्ति का अपव्यय करता है| सभी वस्तुओं का सावधानीपूर्वक तथा बुद्धि के साथ प्रयोग करने को मितव्ययता कहते हैं| मितव्यय न करने पर धनवान मनुष्य भी बिल्कुल थोड़े समय में ही दरिद्र हो जाता है| किंतु किफायत करने वाला व्यक्ति धनवान चाहे न हो, लेकिन धनी व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सुखी जीवन जी सकता है|

महात्मा गाँधी की मितव्ययिता उनके अनुयायियों को कई बार आश्चर्यचकित कर देती थी| एक बार गाँधीजी के आश्रम में रहने वाली मीरा बेन नामक अँग्रेज भगिनी ने महात्मा जी को अपनी कोठरी में कुछ ढूँढते हुए देखा| उनका चिंतायुक्त चेहरा देखकर मीरा बेन ने उनसे पूछा- “बापू, आप क्या ढूँढ रहे हैं? कुछ खो गया है क्या?” बापू ने कहा- “हाँ, पेंसिल गुम हो गयी है|” “कितनी बड़ी थी, नई थी क्या?” खोजने में उनकी सहायता करने की इच्छा से मीरा बेन ने पूछा| बापू ने कहा- “अरी, तेरे अँगूठे के आकार के बराबर छोटी सी थी वह पेंसिल, जिसका मैं हमेशा उपयोग करता था वही| कोठरी में उपस्थित सभी को आश्चर्य हो रहा था कि पेंसिल के इतने छोटे टुकड़े के लिए बापू इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं?

उनमें से एक व्यक्ति नयी पेंसिल लेकर आया| उसने वह पेंसिल बापू को दी| उन्होंने कहा- “मुझे यह पेंसिल नहीं चाहिए, पिछले तीन सप्ताहों से मैं जिस पेंसिल का उपयोग कर रहा था, वही चाहिए|” अतः खोजना जारी रहा और उनकी एक फाइल में पेंसिल का वह गुम हुआ छोटा टुकड़ा मिल गया| बापू के चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ गई, मानो वे किसी भयंकर पाप करने से बच गए हों |

एक बार बापू मीरा बेन के साथ दौरे पर गये थे| वे एक गाँव में ठहरे थे| बापू को भोजन के साथ शहद खाने की आदत थी, किंतु आश्रम से चलते समय मीरा बेन शहद की बोतल लाना भूल गयी थीं| वे बाजार से शहद की नयी बोतल ले आयीं| भोजन की सारी व्यवस्था हो गयी| भोजन के लिए बैठते समय बापू का ध्यान शहद की उस नई बोतल की ओर गया, और उन्होंने मीरा बेन से उस बोतल के बारे में पूछा, जिसका वे उपयोग करते थे| मीरा बेन ने कहा- मैं उसे लाना भूल गयी थी|” बापू ने कुछ नाराजगी से पूछा- “और इसीलिए तुम नई बोतल खरीद लाईं| हम जो पैसे खर्च करते हैं, वह जनता के हैं| हमें उसका अपव्यय नहीं करना चाहिए| मैं जिस बोतल का शहद लेता था, उसके समाप्त होने के पहले मैं यह शहद नहीं खा सकता|” और बापू ने जैसा कहा था वैसा ही किया| दौरा पूरा होने तक उन्होंने शहद नहीं लिया और जब वे वापस आश्रम में आये तब शहद की वह पुरानी बोतल उनकी राह देख रही थी|

प्रश्न:
  1. मितव्यय का क्या अर्थ है? हमें मितव्यय का आचरण क्यों करना चाहिए?
  2. यदि तुम्हें इनाम में 100 रूपये मिले तो तुम उसका क्या उपयोग करोगे?
  3. कई बार लोग पैसा, समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं| प्रत्येक के चार उदाहरण दो|

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