यीशु मसीह एवं ईस्टर पर स्वामी के सुवचन
यीशु मसीह एवं ईस्टर पर स्वामी के सुवचन
- यीशु की तरह बनने की कोशिश करें। यीशु एक ऐसे मसीहा थे जिनका एकमात्र आनंद दिव्य प्रेम फैलाने, दिव्य प्रेम की पेशकश करने, दिव्य प्रेम प्राप्त करने और दिव्य प्रेम पूर्ण जीवन जीने में ही था। यीशु मसीह एक सर्वोच्च शुद्ध और पवित्र व्यक्ति थे।
– 25 दिसंबर 1979
- यीशु ने उस अंधकार को समाप्त किया था जो संसार में पूरी तरह व्याप्त था। उन्होंने समस्त मानव जाति एवं प्रत्येक मानव हृदय में प्रेम का प्रकाश फैलाया।
– 24 दिसंबर 1972
- यीशुमसीह दया के प्रतीक थे और गरीबों, जरूरतमंदों व शरणार्थियों के आश्रयदाता। लेकिन, कई लोगों ने उनके लिए मुसीबतें खड़ी करने की कोशिश की, क्यों कि उन्हें उनकी पवित्र शिक्षाएँ और गतिविधियाँ पसंद नहीं थीं। यीशु के लिए उनकी नफरत दिन-ब-दिन बढ़ती गई। यहां तक कि पादरी भी यीशु के खिलाफ हो गए क्योंकि वे उनकी बढ़ती लोकप्रियता से ईर्ष्या करने लगे थे। ईर्ष्यावश कई लोगों ने उनके रास्ते में बाधाएं डालीं और यहां तक कि उन्हें मारने की भी कोशिश की।
– 25 दिसंबर 2000
- यीशुमसीह ने अपना जीवन उन लोगों के लिए बलिदान कर दिया, जिन्होंने उन पर अपना विश्वास रखा। उन्होंने इस सत्य का प्रचार किया कि सेवा और त्याग ही ईश्वर है। यदि आप ईश्वर की आराधना में लड़खड़ाते हैं, तो भी जीवित ईश्वर (मानव सेवा) की सेवा मे मत लड़खड़ाओ। भगवान की खातिर अपने प्राणों की भी आहुति देने के लिए तैयार रहें। त्याग की भावना जरूरी है। त्याग की भावना के बिना भक्ति के बारे में बोलना निरर्थक है। यदि आज यीशुमसीह का नाम पूरे विश्व में गौरवान्वित है, तो यह उनके असीम प्रेम के कारण है। उन्होंने गरीब और भटके हुए लोगों की सेवा की और अंत में, उन्होंने बलिदान के रूप में अपना जीवन ही दे दिया।
– 25 दिसंबर: 1970, 1998, 1993
- यीशु के आलोचकों ने उनके खिलाफ प्रधान पादरी से शिकायत की। उन्होंने उनके एक शिष्य को 30 चाँदी के टुकड़ों का प्रलोभन दिया, ताकि उसके हाथों उन्हें धोखा दे सकें। उनके सबसे प्रिय शिष्य जुडास, ने चांदी के कुछ टुकड़ों के प्रलोभन में मास्टर के खिलाफ काम करने का फैसला किया। धन का लालच एक ऐसा दानव है जो दुर्बल व्यक्ति को पकड़ लेता है। यीशु के आलोचकों ने रोमन शासक को बताया कि यीशु स्वयं को राजा बनाने का प्रयास कर रहा था और इसलिए उसे राजद्रोह के लिए दंडित किया जाना चाहिए। पादरी जानता था कि यीशु सच बोल रहा था, लेकिन उसने अपनी स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए उनका समर्थन नहीं किया। उनके आग्रह पर गवर्नर ने उन्हें क्रूस पर चढ़ाने का आदेश दिया।
– 25 दिसंबर 1978, 23 नवंबर 1979, 25 दिसंबर 2001
- यीशु ने उन लोगों के लिए शुभकामनाएँ दीं जिन्होंने उनका अपमान किया और उन्हें घायल किया। वे जानते थे कि सब प्रभु की इच्छा है। इसलिए, यहां तक कि क्रॉस पर भी उन्होंने किसी के प्रति बुरी भावना या कुविचार नहीं किया। वे जानते थे कि ये सभी ईश्वर की इच्छा के उपकरण के रूप में कार्य कर रहे हैं।
– 25 दिसंबर 1982